संगीतकार और प्रसिद्ध वायलिन वादक उत्तम सिंह अपने आपको काफी भाग्यशाली मानते हैं कि उन्हें संगीत के क्षेत्र के धुरंधरों के साथ काम करने का मौका मिला है। उत्तम सिंह का मानना है कि एक दौर में हर संगीतकार का अपना एक टोन होता था और पांच सेकेंड गाना बजने के बाद ही पता चल जाता था कि फिल्म की धुन किसने बनाई है। लेकिन,आज की तारीख में किसी भी संगीतकार का अपना टोन नहीं है। आज किसी का भी म्यूजिक सुनिए, कहीं ना सुना सुनाया लगता है। उत्तम सिंह 25 मई को अपना जन्मदिन मानते हैं, अपने जन्मदिन के अवसर पर उन्होंने ने अमर उजाला से ये एक्सक्लूसिव बातचीत की।
आपकी शुरुआत तमिल फिल्मों के दिग्गज संगीतकार इलैयाराजा के सहायक के तौर पर हुई। एक संगीतकार के तौर पर उनके संगीत का कितना प्रभाव आप पर रहा है?
इलैयाराजा की जो शख्सियत हैं, उनके बारे में बात करना समझ लीजिए, किसी शब्दकोश के बारे में बात करना है। किसी इंस्टीट्यूशन, किसी ऐसे कॉलेज के बारे में बात करना जहां सब कुछ है। वह शब्दकोश भी हैं, इंस्टीट्यूशन भी, कॉलेज भी और स्कूल भी हैं। एक म्यूजिक डायरेक्टर को जैसा होना चाहिए वैसे वह हैं। उनका मेरा साथ करीब 40 साल का हो गया है। 1982 में उनके साथ मिक्सिंग इंजीनियर के तौर पर मैंने काम शुरू किया। उनकी कई फिल्मों में मैंने वायलिन भी बजाई। उनकी फिल्म ‘पा’ का संगीत बहुत चला। फिल्म भी बहुत चली। उसमें मैंने वायलिन बजाई है। हमारा ऐसा प्यार है कि छह-सात घंटे अगर साथ में बैठे हैं, तो हम लोग बात नही करते हैं। मुझे वह जी कह कर बुलाते थे, सिर्फ इतना ही कहते थे कि जी कल 9 बजे। इतनी सी बात में सब कुछ आ गया। यह आत्मा और संगीत की भाषा है।
इसे भी पढ़ें- Bhuvan Bam: भुवन बम के हाथ लगी एक और बड़ी सफलता! आगामी एक्शन थ्रिलर फिल्म में निभाएंगे लीड रोल
नौशाद और रोशन की फिल्मों में भी आपने वायलिन बजाई। दोनों के संगीत निर्देशन में ऐसी क्या खास बात नजर आती है आपको?
आप बीते दौर के किसी भी संगीतकार का नाम लेंगे, मैंने साथ में काम किया है। दोनों में फर्क यह है कि हर आदमी का अपना स्कूल था। उनकी अपनी आवाज, उसका अपना संगीत का एक तरीका, उसका अपना टोन। म्यूजिक का अपना एक टोन होता है जो उस समय हर संगीतकार अपना अलग होता था। चाहे वह शंकर जयकिशन साहब हो, ओपी नैय्यर साहब हो या फिर नौशाद साहब, मदन मोहन साहब, रोशन जी या फिर चित्रगुप्त जी हो, सी रामचंद्र जी हों, सबका अपना अपना टोन होता था। म्यूजिशियन वही होते थे। वे हर जगह म्यूजिक बजाते थे। आज के संगीत की बात करें तो आज कोई टोन है ही नहीं। आज टोन ‘की- बोर्ड’ का टोन है। आज की तारीख में किसी भी संगीतकार का अपना टोन नहीं है।
मदन मोहन और सी रामचंद्र के साथ भी आप लंबे समय तक जुड़े रहे…
इन लोगों के साथ इतना काम किया है लेकिन कोई खास बात याद नहीं है। सुबह सी रामचंद्र, दोपहर मदन मोहन तो शाम को नौशाद साहब या कोई और है। सबके साथ काम चलता रहता था। मैं अपने आप को भाग्यशाली मानता हूं कि उस समय के जितने भी संगीतकार रहे हैं, सबके साथ काम करने का मौका मुझे मिला है। अभी भी मैं काम कर ही रहा हूं। हाल ही में मेरी हरियाणवी फिल्म ‘दादा लखमी’ रिलीज हुई है, इस फिल्म के गाने लोग खूब पसंद कर रहे हैं।
जगदीश खन्ना की साझेदारी में आपने कई फिल्मों में संगीत अरेंज किया, साझेदारी में काम करते समय विशेष ध्यान क्या रखना होता है?
जब आप किसी के साथ काम कर रहे होते हैं, तो सबसे पहले जो बात होती है वह यह कि एक दूसरे को समझना। फिर, एक दूसरे के प्रति सफाई रखना। सफाई रखने का मतलब यह हुआ कि हाथ साफ, आंख साफ और जुबान साफ। अगर ये तीनों चीजें आपके साथ हैं, तो आप का ग्रुप कभी टूट ही नहीं सकता है। जब आप यह कहेंगे कि यह काम तो मैने किया है, तुमने क्या किया है? बस वहीं दरार पड़नी शुरू हो जाती है।