सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ कल यानी गुरुवार को महाराष्ट्र राजनीतिक संकट पर फैसला सुना सकती है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) ने कहा कि कल हम दो मामलों में फैसला सुनाएंगे। कहा जा रहा है कि दिल्ली सरकार बनाम एलजी मामले पर भी सुप्रीम कोर्ट कल फैसला सुना सकता है।
मामले में उद्धव ठाकरे गुट के सांसद संजय राउत ने कहा कि कल फैसला होगा कि ये देश संविधान से चलता है कि नहीं। देश में लोकतंत्र जीवित है कि नहीं। कल ये भी फैसला होगा कि हमारी न्याय व्यवस्था किसी दबाव में काम कर रही है या नहीं। ये देश संविधान से चलता है और जो देश संविधान से नहीं चलता तो आप पाकिस्तान की हालत देख लीजिए। हम चाहते हैं कि ये देश संविधान से चले है, हमारी न्याय व्यवस्था स्वतंत्र रहें।
उन्होंने कहा कि कल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मुंबई में आएंगे और मातोश्री में उद्धव ठाकरे जी के साथ उनकी मुलाकात है। ये मुलाकात करीब एक बजे है और लगभग डेढ़ घंटा वो मातोश्री में रहेंगे। नीतीश कुमार जी ने जो प्रयास शुरू किया है कि देश के सभी विपक्ष को एक साथ लाने का उसमें उद्धव ठाकरे जी भी शामिल हैं।
पहले जानते हैं महाराष्ट्र सियासी संकट पर सुनवाई के बारे में…
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने महाराष्ट्र राजनीतिक संकट के संबंध में प्रतिद्वंद्वी गुटों उद्धव ठाकरे और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली थी। याचिकाओं के एक बैच पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 16 मार्च को आदेश सुरक्षित रख लिया था।
किस-किस ने की पैरवी?
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने उद्धव और शिंदे दोनों गुटों और राज्यपाल के कार्यालय की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। न्यायमूर्ति एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की सदस्यता वाली पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, देवदत्त कामत और अधिवक्ता अमित आनंद तिवारी की दलीलें सुनने के बाद सुनवाई पूरी की थी। शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल, हरीश साल्वे, महेश जेठमलानी और अधिवक्ता अभिकल्प प्रताप सिंह की दलीलें भी सुनीं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले में राज्यपाल कार्यालय की पैरवी की।
नौ दिन की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा
पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने नौ दिन की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इन याचिकाओं पर सुनवाई 21 फरवरी से शुरू हुई थी। इससे पहले 17 फरवरी को शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र में जून 2022 में पैदा हुए सियासी संकट संबंधी याचिकाओं को सात न्यायाधीशों की पीठ को भेजने से इनकार कर दिया था। इनमें 2016 के नबाम रेबिया फैसले पर पुनर्विचार का आग्रह किया गया था।
क्या था अरुणाचल प्रदेश के नबाम रेबिया केस का फैसला?
न्यायालय ने 2016 में अरुणाचल प्रदेश के नबाम रेबिया के मामले पर फैसला दिया था कि यदि विधानसभा अध्यक्ष को हटाने के लिए नोटिस सदन में पहले से लंबित हो, तो वह विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए दी गई अर्जी पर कार्यवाई नहीं कर सकता। दरअसल, 29 जून 2022 को महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट चरम पर पहुंच गया था, जब शीर्ष अदालत ने ठाकरे के नेतृत्व वाली 31 महीने पुरानी एमवीए सरकार का बहुमत परीक्षण कराने के राज्यपाल के निर्देश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना-भाजपा सरकार बनी थी।
राज्यपाल का 2022 का आदेश रद्द करने की मांग
इस बीच शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट ने 16 मार्च को सुप्रीम कोर्ट से महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के जून 2022 के आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया था, जिसमें मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए कहा गया था। ठाकरे गुट ने कहा था कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा। ठाकरे गुट की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ से आदेश को रद्द करने की अपील की। इससे एक दिन पहले उच्चतम न्यायालय ने महज शिवसेना विधायकों के बीच मतभेद होने पर बहुमत परीक्षण का आदेश देने के लिए कोश्यारी के व्यवहार पर सवाल उठाए थे।