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Sudhir Pandey Interview:‘शक्ति’ में मेरा रोल कटा तो बहुत दुखी हुआ, अक्षय कुमार ने खुद से जो सीखा, वह नजीर है – Sudhir Pandey Speaks To Amar Ujala First Break Akshay Kumar Mission Raniganj Shakti Shaan Buniyad Dhuan

हिंदी सिनेमा के चरित्र अभिनेताओं में सुधीर पांडे का नाम बहुत इज्जत से लिया जाता है। पुणे के फिल्म प्रशिक्षण संस्थान से अभिनय सीखने वाले सुधीर बीते पांच दशक से हिंदी सिनेमा में सक्रिय हैं और हाल ही में रिलीज फिल्म ‘मिशन रानीगंज’ में भी उनके अभिनय की खूब तारीफें हो रही हैं। अक्षय के साथ शुरुआती दिनों से फिल्में करते रहे सुधीर ने उनका वह दौर भी देखा है जब वह ठीक से संवाद भी नहीं बोल पाते थे। सुधीर को इस बात का मलाल भी है कि रमेश सिप्पी की फिल्म ‘शक्ति’ में उनके किरदार को फिल्म की रिलीज से ठीक पहले पूरी तरह हटा दिया गया। वह उन दिनों की भी यादें अपने दिल में संजोए हुए हैं जब निर्माता, निर्देशक, अभिनेता देव आनंद ने उन्हें अपनी फिल्म के लिए खुद फोन किया था। सुधीर पांडे से ‘अमर उजाला’ की एक खास मुलाकात…



आकाशवाणी के दिग्गज उद्घोषक देवकी नंदन पांडेय के बेटे को अभिनय का स्वाद कैसे लगा?

मेरे पिताजी आकाशवाणी के लीजेंड तो थे ही, एक्टर भी वह बहुत कमाल के थे। जब वह अल्मोड़ा में पढ़ते थे तो वहां भी नाटक किया करते थे। अल्मोड़ा साहित्य का केंद्र था। आजादी के बाद साल 1948 में आकाशवाणी का समाचार वाचक बनने के लिए करीब तीन हजार लोगों ने आवेदन किया, जिसमें से डैडी का चयन हुआ। मेरी आवाज और भाषा मुझे डैडी से विरासत में मिली। उनका मानना था कि हमारे देश में कला की कोई कद्र नहीं है। मेरे पिता जी चार भाई थे। दो चाचा भी ड्रामा के बहुत बड़े कलाकार थे। उनके रेडियो नाटक मैं सुनता था। मुझे ऐसा लगता था कि दूसरे आदमी के साथ जो बीत रही है, उसे महसूस करके उसकी अभिव्यक्ति कर सकता हूं।


शुरुआत कहां से हुई?

शुरुआत रेडियो से ही हुई। रेडियो नाटक के लिए ऑडिशन देता रहता था और छोटे मोटे रोल भी मिलते रहते। जब मैं दसवी में पहुंचा तो आल इंडिया रेडियो में पूरी तरह से नाटक करने लगा। ड्रामा आर्टिस्ट के तौर पर मान्यता भी मिल गई। अमृत लाल नागर के पुत्र कुमुद नागर के साथ जब मैंने नाटक करना शुरू किया तो वह मुझे बहुत ही प्रोत्साहित करते थे। मैं अपने भीतर एक अभिनेता को जन्म लेते देख रहा था। 12वीं पास कर चुका था और उस समय मेरे सामने दो विकल्प थे। दिल्ली का नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा और दूसरा पुणे का फिल्म इंस्टीट्यूट।


फिर क्या विकल्प चुना आपने?

पुणे एफटीआई से उस वक्त जया भादुड़ी और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे लोग इंडस्ट्री में कदम रख चुके थे। फिल्म इंस्टीट्यूट का नाम भी काफी हो गया था। उस समय 12वीं पास होने के बाद वहां एडमिशन मिल जाता था। लेकिन डैडी ने कहा कि पहले ग्रेजुएट हो जाओ फिर चले जाना। शायद वह सोच रहे थे कि जब तक  ग्रेजुएशन करेगा तब तक शायद मन बदल जाए। लेकिन ग्रेजुएशन पूरी करने के एक साल तक दिल्ली में ही नाटक वगैरह करना शुरू करता रहा औऱ उसके बाद 1974 में एफटीआई ज्वाइन कर लिया। हमारे बैच में ओम पुरी और राकेश बेदी थे।


सबसे पहला मौका किस फिल्म में और कैसे मिला ? 

1976 में कोर्स खत्म करके मुंबई आ गए थे लेकिन दो साल के बाद मुझे दुलाल गुहा की फिल्म ‘धुंआ’ में सबसे पहले काम करने का मौका मिला। इस फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती, रंजीता और राखी थे। रेडियो नाटक का बैकग्राउंड तो था ही इसलिए मुंबई में भी रेडियो और नाटकों से जुड़ गया। पृथ्वी थियेटर की शुरआत ही मेरे नाटक ‘बकरी’ से हुई। दो साल तक मैंने खूब नाटक किए। मेरा एक नाटक ‘कलंक’ दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था जिसे दुलाल गुहा ने देखा था और उस नाटक में देखने बाद मुझे ‘धुंआ’ में एक इंस्पेक्टर की भूमिका दी। 


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