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Studios Of Bombay 2: धूल और गुबार में खोया बॉलीवुड का नगीना फिल्मिस्तान, भुगत रहा अशोक कुमार की बेवफाई की सजा – Amar Ujala Originals Series Studios Of Bombay Mumbai 2 Filmistan Studio Sashdhar Ashok Kumar Chunnilal

प्राइम वीडियो की वेब सीरीज ‘जुबली’ में हिंदी सिनेमा के पहले स्टूडियो बॉम्बे टाकीज के मालिकों हिमांशु रॉय और देविका रानी की कहानी से प्रेरित काल्पनिक कथा लोग बहुत चाव से इन दिनों देख रहे हैं। बॉम्बे टाकीज का इन दिनों जो हाल है, वह हमने आपको अपनी इस सीरीज की पहली कड़ी में बताया। आज बारी है फिल्मिस्तान स्टूडियो की। अपने भीतर हिंदी सिनेमा के इतिहास की तमाम अनमोल धरोहरों की यादें संजोए ये स्टूडियो भी समय की मार से धीरे धीरे अपनी पहचान खो रहा है। चलिए जानते हैं इस फिल्मिस्तान स्टूडियो का इतिहास और जानते हैं कि क्या है इसका वर्तमान…

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स्टेशन के सबसे नजदीक स्टूडियो

मुंबई के उपनगर गोरेगांव पश्चिम में स्थित फिल्मिस्तान स्टूडियो पहुंचने के लिए गोरेगांव रेलवे स्टेशन सबसे नजदीकी स्टेशन है। वहां से बस पांच-सात मिनट पैदल रास्ता और पहुंच जाएंगे फिल्मिस्तान। स्टेशन से निकलकर एसवी रोड पर आते ही पहला दाहिना मोड़ आपको स्टूडियो तक ले आएगा। लेकिन, स्टूडियो को पहचानने के लिए आपको चौकन्ना बहुत रहना होगा क्योंकि गेट पर जो नाम लिखा है वह फिल्मिस्तान के इतिहास जितना ही पुराना और धुंधला हो गया है। देश दुनिया से आने वाले फिल्म प्रशंसकों को आसानी से यहां अंदर जाने की अनुमति नहीं मिलती और न ही दर्शकों के लिए गेट पास आदि की अलग से कोई व्यवस्था ही यहां है। शहर के अलग अलग स्थानों से संचालित होने वाली मुंबई दर्शन बसें भी यहां नहीं ठहरतीं।


फिल्मिस्तान का इतिहास 

बॉम्बे टॉकीज के मुखिया हिमांशु रॉय की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी देविका रानी ने बॉम्बे टॉकीज की कमान संभाली तो उसके बाद बॉम्बे टॉकीज के शेयर धारकों में विवाद उभरने लगे। झांसी से आए सशधर मुखर्जी ने इस बगावत की अगुआई की और अपनी पत्नी के भाई अभिनेता अशोक कुमार के अलावा कुछ और लोगों को साथ लेकर अपना अलग स्टूडियो बनाने की तैयारी शुरू कर दी। 1943 में जन्म हुआ फिल्मिस्तान प्रोडक्शन हाउस का लेकिन कुछ समय बाद ही इसे स्टूडियो में तब्दील कर दिया गया। स्टूडियो में काम की जिम्मेदारी संभाली थी सशधर मुखर्जी ने और इसका आर्थिक प्रबंधन देखते थे, बॉम्बे टाकीज से उनके साथ आए चुन्नीलाल कोहली (संगीतकार मदन मोहन के पिता)। स्टूडियो के प्रमुख अभिनेता की कमान संभाली अशोक कुमार ने। यह स्टूडियो 4.5 एकड़ में फैला हुआ है और जानकारी के मुताबिक इसमें 14 सेट्स हैं।

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फिल्मिस्तान के गौरव तारे

1943 में अपनी स्थापना के बाद जो पहली फिल्म यहां बनी उसका नाम है ‘चल चल रे नौजवान’। इस फिल्म में अशोक कुमार और नसीम मुख्य भूमिका में थे। 1940 और 50 के दशक में यहां कई बड़ी फिल्मों की शूटिंग हुई। 14 सेट वाले इस स्टूडियो में करीब 60 हिट फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। फिल्मिस्तान में ‘शहीद’, ‘नागिन’, ‘नास्तिक’, ‘मजदूर’, ‘शबनम’ और ‘सरगम’ जैसी कई बड़ी फिल्में बनी हैं। फिल्मों के अलावा यहां कई बड़े धारावाहिकों और रियलिटी शोज की शूटिंग भी होती आई है।


फिल्मिस्तान से छिटके अशोक कुमार

साल 1943 में  फिल्मिस्तान बनने के बाद देविका रानी टूट चुकी थीं। उन्होंने फिल्म ‘हमारी बात’ के बाद बॉम्बे टॉकीज को बेच दिया और फिल्मी दुनिया से दूरी बना ली। अशोक कुमार का बॉम्बे टॉकीज से प्रेम इतना था कि वह कई बार फिल्मिस्तान की बनाई फिल्मों में भी उसकी छाप छोड़ देते थे। जब उनको पता चला कि देविका रानी अब बॉम्बे टॉकीज छोड़ चुकी हैं तो 1947 में उन्होंने फिल्मिस्तान से विदा लेकर बॉम्बे टॉकीज का फिर से कार्यभार संभाल लिया। साल 1950 में चुन्नीलाल की मृत्यु हुई जिसके बाद फिल्मिस्तान की सारी जिम्मेदारी सशधर मुखर्जी पर आ गई। आर्थिक प्रबंधन की जानकारी न होने के चलते सशधर को स्टूडियो संभालना मुश्किल लगा तो उन्होंने इसे एक सूती मिल के मालिक तोलाराम जालान को बेच दिया।


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