हिंदी मनोरंजन जगत के निर्माण व निर्देशन में सक्रिय रहे भाइयों में आनंद भाइयों में चेतन, विजय और देव, कुमार भाइयों में अशोक और किशोर, दर्शन भाइयों में धर्मेश व सुनील और बर्मावाला भाइयों में अब्बास, मुस्तन और हुसैन से लेकर एक लंबी श्रृंखला रही है। लेकिन, मुंबई मायानगरी में प्रयागराज से आए दो शुक्ला बंधुओं की भी कहानी कम रोचक नहीं है। ये शुक्ला ब्रदर्स हैं प्रभाकर शुक्ला और अनुपम शुक्ला। दोनों की कंपनी अब तक 600 से ज्यादा विज्ञापन फिल्में अपने दौर के सुपरस्टार कलाकारों के साथ बना चुके हैं। खास ‘अमर उजाला’ के पाठकों के लिए पिछली बार हमने एडगुरु प्रभाकर शुक्ला से सक्सेस मंत्र जाने थे, इस बार बारी है उनके छोटे भाई अनुपम शुक्ला की…
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रक्षा बंधन पर बनाए आपकी कंपनी के सरसों के तेल के एक मशहूर ब्रांड के विज्ञापन की चर्चा सोशल मीडिया पर अब तक हो रही है, इसकी वजह आप क्या मानते हैं?
फिल्में हमेशा से समाज का दर्पण रही हैं। विज्ञापन फिल्म भी इससे अछूती नहीं है। मेरा ख्याल है कि फिल्मों से ज्यादा दर्शकों पर विज्ञापन फिल्में असर डालती हैं। इनकी पंचलाइन दशकों तक लोगों को याद रहती हैं। अरसे तक वनस्पति घी को लोग डालडा कहकर ही बुलाते रहे। वाशिंग पाउडर खरीदना हो तो लोग निरमा बोलते थे। अब समय बदला है। तकनीक के विकास ने ऐसी फिल्मों को लोगों तक पहुंचाने के माध्यम बढ़ा दिए हैं। ये फिल्में एक संदेश देती हैं। लोग इन्हें आसानी से देख पाते हैं और अच्छा लगे तो अपने दोस्तों से साझा भी करते हैं। रक्षाबंधन फिल्म ने ये दिखाया कि एक पारिवारिक मूल्य को आज के परिवेश में भी कैसे जीवित रखा जा सकता है। इसी भावना को को लोगों ने बहुत पसंद किया। इसे हमारे बड़े भाई और कंपनी के क्रिएटिव डायरेक्टर एड गुरु प्रभाकर शुक्ला ने बहुत ही खूबसूरती से पर्दे पर उतारा।
अच्छा ये बताइए, विज्ञापनों के जरिये नई पीढ़ी पारिवारिक संस्कारों के करीब किस तरह आ रही है?
अगर आपने हाल के तमाम विज्ञापनों को देखा हो तो उनमें एक बात गौर करने लायक है। फिल्में और ओटीटी जो काम नहीं कर पा रहे, वह काम ये विज्ञापन कर रहे हैं। इन विज्ञापनों ने हमारे संस्कारों को बहुत ही सुंदर रूप से दिखाना शुरू किया है। कई ऐसे भी विज्ञापन हैं जो ज्वलंत मुद्दों और सामाजिक कुरीतियों को भी सामने लाते हैं। मुझे लगता है कि इस भाग दौड़ की जीवन शैली मे कई विज्ञापन झटपट अपनी बात करने मे सक्षम हो रहे हैं और सामाजिक मूल्यों को भी पोषित कर रहे हैं। यह हम सबके लिए एक शुभ संकेत है।
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क्षेत्रीय ब्रांड का अपने क्षेत्रों से निकलकर राष्ट्रीय पहचान बनाने में आपकी कंपनी के विज्ञापनों का अब तक कितना योगदान रहा है?
हमारी कंपनी के बनाए विज्ञापनों की खासियत यही रही है कि ये ब्रांड और उपभोक्ता के बीच एक भावुक रिश्ता कायम करती है। पी एंड ए मीडिया वेंचर्स तमाम अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय ब्रांड्स को अपनी सेवाएं देती रही है। हमारा काम पारदर्शी है और हमारी नीतियां बहुत ही सरल है। हम अपनी ग्राहक के साथ ग्रो करने में विश्वास रखते हैं। यही कारण है कि आज इतने लंबे समय से सारे ग्राहक हमसे जुड़े हैं और हमारे साथ है। कई सारी सक्सेस स्टोरीज भी इनमें छिपी हुई हैं। एक ब्रांड कैसे क्षेत्रीय पहचान से बढ़कर राष्ट्रीय पहचान पा लेता है, ऐसा हमने अपनी कई विज्ञापन फिल्मों के जरिये होते देखा है।
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एमडीएच मसालों के विज्ञापन आप लगातार बनाते आ रहे हैं, इसकी नई पीढ़ी से आपकी कंपनी के संबंध कितने प्रगाढ़ हैं?
हमारा सौभाग्य रहा है कि हम महाशय धर्मपाल गुलाटी जी के साथ काम कर पाए और आज हम महाशय राजीव गुलाटी जी के साथ काम कर रहे हैं। एमडीएच एक इंटरनेशनल ब्रांड है जो 100 से भी अधिक वर्षों से अपने हर एक ग्राहक की अपेक्षा पर खरा उतरा है। साथ ही उनका अपने हर एक सहयोगी के साथ भी अटूट रिश्ता रहा है। मुझे लगता है कि मजबूत व्यक्तिगत संबंध एक सफल व्यावसायिक यात्रा का अभिन्न अंग होते हैं।
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