हिंदी सिनेमा के लिए आजादी की सालगिरह एक खास मौका होता है बड़े बजट की बड़े सितारों की फिल्में रिलीज करने का। इस साल 11 अगस्त को रिलीज हुई दोनों फिल्में ‘गदर 2’ और ‘ओएमजी 2’ दर्शकों को पसंद आ रही हैं। 15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई कालजयी फिल्म ‘शोले’ की यादें भी दर्शकों के दिलो दिमाग पर आज भी ताजा हैं। और, सिर्फ दर्शक ही नहीं इस फिल्म के सितारे भी ‘शोले’ का नाम सुनते ही एकदम से खिल जाते हैं। फिल्म के निर्देशक रमेश सिप्पी ‘अमर उजाला’ के साथ एक खास मुलाकात में बताते हैं, ‘मैंने हमेशा इस चुनौती को स्वीकार किया कि मेरी अगली फिल्म मेरी पिछली फिल्म से बिल्कुल हट कर हो। ‘शोले’ के वक्त हमें एक माहौल नजर आया कि ऐसा वातावरण हो। वेस्टर्न फिल्में देखते थे उस वक्त। डकैत हों। हमारे यहां उन दिनों चंबल घाटी के डकैतों के चर्चे थे। स्क्रिप्ट बनाते वक्त हमने सब रख दिया कि डकैत हों और ये सब हो। हम सब इस पर सहमत थे एक बिग स्क्रीन एंटरटेनमेंट के बारे में।’
मनमोहन देसाई के पास गई थी ‘शोले’
लेकिन, फिल्म ‘शोले’ की कहानी पहले निर्माता-निर्देशक मनमोहन देसाई के पास गई थी। रमेश सिप्पी बताते हैं, ‘सलीम-जावेद के पास एक आइडिया था। एक स्टोरीलाइन थी। चार लाइन जो उन्होंने मनमोहन देसाई को सुनाई थी। उन्होंने हां भी कह दिया था। लेकिन, वह इसे लेकर बहुत सहज नहीं थे। क्योंकि ये उनके टाइप की फिल्म नहीं थी। फिर, सलीम-जावेद ने ये कहानी मुझे सुनाई। उन्होंने उस वक्त बताया नहीं था कि वे इसे मनमोहन देसाई को सुना चुके हैं। मुझे भी सिर्फ फिल्म का खाका सुनाया कि एक पुलिस ऑफिसर है। एक डकैत को पकडता है। उस वक्त गब्बर वगैरह नाम कुछ नहीं तय नहीं था। फिर वह डकैत आकर उसके पूरे परिवार को मार देता है और ये दो लड़कों को बुलाता है जिनके साथ कहीं उनकी मुलाकात हुई थी। लेकिन, तब उनकी कहानी में ये पुलिस ऑफिसर नहीं था, वह एक आर्मी ऑफिसर था। उनके साथ में दो लड़के थे जो शरारती थे और अनुशासन से जिनका कोई लेना देना नहीं था। और जब अफसर के हाथ कट जाते हैं तो वह दोनों लड़कों को बुलाता है।’
सबसे पहले धर्मेंद्र के पास गए सिप्पी
रमेश सिप्पी की फिल्म ‘सीता और गीता’ के सुपरहिट होने के तुरंत बाद फिल्म ‘शोले’ की तैयारी हुई। सबसे पहले इसे लेकर रमेश सिप्पी उस समय के सुपरस्टार धर्मेंद्र के पास ही गए। वह बताते हैं, ‘वही उस वक्त के नंबर वन स्टार थे। वह थोड़े कन्फ्यूज थे कि इसके रोल कौन करेगा। मैं अगर वीरू हूं तो फिर जय कौन है और ये ठाकुर कौन है। उन्होंने पूछा कि मैं ठाकुर का रोल कर लूं। मैंने मना नहीं किया। फिर उनको गब्बर का रोल भी असरदार दिखा। वह उसे भी करने को लालायित दिखे। तब मैंने कहा, ये सब छोड़िए ये देखिए कि बसंती यानी कि हेमा मालिनी किसको मिलेंगी। बस मेरी इसी बात पर वह फिसल गए कि हीरो तो वही है जिसको हीरोइन मिलेगी।’
हेमा ने सिप्पी को रोककर पूछा, मैं कहां हूं?
वहीं बात जब बसंती के किरदार की आई तो इस बारे में हेमा मालिनी ‘अमर उजाला’ से एक खास बातचीत में कहती हैं, ‘रमेश सिप्पी ने बसंती का रोल मुझे बहुत ही अजीब तरीके से ऑफर किया। फिल्म ‘सीता और गीता’ करने के बाद एक दिन रमेश सिप्पी आकर इसके बारे में बोलते हैं। फिल्म ‘सीता और गीता’ में तो मेरी ही सबसे ज्यादा अहमियत थी। धरम जी और संजीव कुमार तो साइड में थे। टाइटल रोल मेरा ही था। तो शायद रमेश जी ने इन दोनों को वादा किया होगा कि आपका बहुत बड़ा रोल मैं अगली फिल्म में करने वाला हूं और हेमा मालिनी का छोटा रोल होगा। ऐसा करते हैं डायरेक्टर। मैं किसी फिल्म की शूटिंग कर रही थी तो मुझसे टाइम लिया कि आकर बात करूंगा। एक पिक्चर बना रहा हूं। तो वह आए। कहानी सुनाई। कहानी सुनाते समय मेरा नाम ही कहीं नहीं था। जय है, वीरू है, ठाकुर है, यही बोलते जा रहे थे तो मैंने उन्हें रोककर पूछा, मैं कहा हूं? एक तरफ मैंने फिल्म ‘सीता और गीता’ की है और ठीक अगली फिल्म मे मेरा रोल है ही नहीं। वह कहने लगे, नहीं ये वो, ये वो, तांगेवाली का रोल है उसमें। आप कर लेना। अच्छा रोल है। अच्छा रहेगा।’
अगर वह फोन न आता तो बसंती हां न करती
हेमा मालिनी ने भी पहले तो यही मन बनाया था कि उन्हें ‘शोले’ नहीं करनी है। वह बताती हैं, ‘मैंने उनको तो ना नहीं कहा। बस यही कहा कि सोच के बताती हूं। मैं सोच रही थी कि फिल्म ‘सीता और गीता’ करने के बाद ये ‘शोले’ का ऑफर आ रहा है और क्या है, एक तांगेवाली का रोल है। मैं पूछ रही हूं कि रोल में है क्या? तो कहते हैं कि मैं बाद में बताता हूं। रमेश जी कहने लगे कि वह बहुत बात करती है, ऐसा ही है बस। चार पांच सीन हैं। मैंने कहा, चार पांच सीन हैं! उन्होंने ये भी याद दिलाया कि हमने साथ में ‘अंदाज’ की, ‘सीता और गीता’ की, इसमें थोड़ा छोटा रोल है तो क्या हुआ, कर लेना। मुझे बहुत गुस्सा आया कि ये कैसा ऑफर है।’ फिर रमेश सिप्पी ने एक दिन हेमा मालिनी के घर पर फोन कर दिया और उनके फोन उठाते ही पूछा, ‘कर रहे हैं कि नहीं।’ हेमा बताती हैं, ‘मम्मी मेरी बात सुन रही थीं। मम्मी ने ही कहा कि करो। तुमको करना चाहिए। रोल छोटा होने से क्या होता है, इन्होंने इतनी अच्छी पिक्चरें तुम्हारे साथ की हैं। दो-दो पिक्चर, इसको भी तुम कर लो। न मत कहो। तब मैंने कहा कि ओके ठीक है। मम्मी ने कहा, तो फिर न कैसे कह सकते हैं। मम्मी की बात सुनना जरूरी होता है।’