Anurag Kashyap:खून खराबा दिखाने वाले अनुराग को रियल लाइफ में हिंसा से लगता है डर! बोले- बेहोश हो जाता हूं – Anurag Kashyap Kennedy Director Opens About His Fear Of Violence Claims If See Blood In Real Life Faints

अनुराग कश्यप भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध निर्देशकों में से एक हैं। निर्देशक इन दिनों अपनी फिल्म ‘केनेडी’ के लिए चर्चा में बने हुए हैं। दरअसल, ‘कैनेडी’ भारत की एकमात्र फिल्म है, जिसका प्रदर्शन इस साल कान फिल्म फेस्टिवल में होने वाला है। ऐसे में अनुराग कश्यप का चर्चा में बने रहना तो बनता है। ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘नो स्मोकिंग’, ‘ब्लैक फ्राइडे’ और ‘देव डी’ से लेकर ‘रमन राघव 2.0’, ‘गुलाल’ और ‘मनमर्जियां’ तक अनुराग कश्यप की ज्यादातर फिल्मों में खूब खून खराबा होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि निर्देशक को असल में खून खराबे से डर लगता है? अगर नहीं तो यह बात बिल्कुल सच है और इस बात का खुलासा अनुराग कश्यप ने खुद किया है।
हिंसा से होने वाली कॉम्प्लिकेशंस को बताते हुए अनुराग कश्यप ने कहा, ‘हिंसा मुझे बहुत प्रभावित करती है। असल जिंदगी में मैं खून देखलूं, तो बेहोश हो जाता हूं। एक्सीडेंट देखता हूं, तो बेहोश हो जाता हूं। मुझे अंतिम संस्कार में शामिल होने से डर लगता है। मेरा हिंसा के साथ बहुत कठिन रिश्ता है, यही वजह है कि मेरी फिल्मों में हिंसा चरम पर होगी, लेकिन ऑफ-स्क्रीन मेरा उससे कोई नाता नहीं है। मैंने हमेशा हिंसा को अपनी जिंदगी से बाहर रखा है। प्वाइंट ऑफ इंपैक्ट हमेशा ऑफ स्क्रीन रहा है… रमन राघव, अग्ली, पांच वगैरह में… आप सिर्फ रोष देखते हैं, असर नहीं। मेरी पूरी बात यह है कि दर्शकों की कल्पना इतनी विशद है, कि यह और भी डरावनी होगी। अगर हम इसे स्क्रीन पर रखते हैं, तो हम इसे सीमित कर रहे हैं। जब हम इसे स्क्रीन पर नहीं उतारते हैं, तो उनकी कल्पना इसे और डरावना बना देती है।’
‘कैनेडी’ में हिंसा का जिक्र करते हुए कश्यप ने कहा, ‘इस फिल्म में आप एक ऐसे व्यक्ति से बात कर रहे हैं, जो हिंसा का इतना आदी हो गया है कि यह उसके लिए एक शारीरिक कार्य बन गया है। यह सिर्फ एक स्वचालित प्रतिक्रिया है। हमारा समाज ऐसा ही हो गया है..। यहां मैं कोई लेक्चर नहीं दे रहा हूं या कुछ भी करने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। मैं सिर्फ एक कहानी सुना रहा हूं जब हम उसकी दुनिया में रहते हैं, हम उसका अकेलापन और उदासी देखते हैं…। वह इंसान बिल्कुल भी नहीं है, जिसके साथ हमदर्दी की जाए। फिर भी, आप उसके साथ सहानुभूति रखते हैं, जो एक बहुत ही कॉम्पलिकेटेड बात है। लोगों को ऐसा लग रहा है कि मैं इस आदमी के साथ सहानुभूति रखने वाला नहीं हूं, लेकिन मैं ऐसा क्यों महसूस कर रहा हूं? और तभी लोग खुद से सवाल करते हैं।’