करीब 300 से अधिक फिल्मों में कॉस्ट्यूम डिजाइन कर चुकी फैशन डिजाइनर नीता लुल्ला ने अगले हफ्ते 14 अप्रैल 2023 को अखिल भारतीय स्तर पर रिलीज होने जा रही फिल्म ‘शाकुंतलम’ में कॉस्ट्यूम डिजाइन किए है। इस फिल्म में नीता लुल्ला के लिए कॉस्टयूम डिजाइन करना बहुत ही चैलेंजिंग रहा है। मुंबई में आयोजित इस फिल्म के प्रेस कांफ्रेंस के दौरान नीता लुल्ला ने इस बात का खुलासा किया कि इस फिल्म में कॉस्ट्यूम डिजाइन करने के लिए उन्हें किस तरह की तैयारियां करनी पड़ी।
फिल्म ‘शाकुंतलम’ कालिदास द्वारा लिखित नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम पर आधारित है। इस फिल्म में राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कहानी को दिखाया गया है। नीता लुल्ला कहती हैं, ‘ऐसी कहानी सुन -सुन कर हम लोग बड़े हुए हैं। बचपन में मैं अमर चित्र कथा पढ़ती रहती थी और कहानी पढ़ते ही हम अपने दिमाग में सोच लेते थे कि उस दौर में किस तरह के कपड़े लोग पहनते रहे होंगे। पूरी कहानी दिमाग में एक फिल्म की तरह चलती थी। उसी सोच और कुछ पत्रिकाओं के फोटो के आधार पर मैंने इस फिल्म के लिए कॉस्टयूम डिजाइन किए हैं।
फिल्म ‘शाकुंतलम’ का निर्माण बहुत भव्य स्तर पर हुआ है। इस फिल्म में समंथा प्रभु शकुंतला की भूमिका निभा रही हैं, तो वहीं राजा दुष्यंत की भूमिका में देव मोहन हैं। नीता लुल्ला कहती हैं, ‘इस तरह की कहानियों को जानने का माध्यम मेरे लिए सिर्फ अमर चित्र कथा की किताब थी। चंदा मामा की भी कहानियां खूब पढ़ती थी। आज की युवा पीढ़ी को अमर चित्र कथा और चंदा मामा के बारे में नहीं पता होगा। ऐसी कहानियों को लोगों तक पहुंचाने का माध्यम अब सिनेमा ही रहा है। आज के बच्चों को इस फिल्म के माध्यम से उस दौर की सुंदरता और उस जमाने के पहनावे के बारे में पता चलेगा।’
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फैशन डिजाइनर नीता लुल्ला अब तक करीब 300 फिल्मों में कॉस्ट्यूम डिजाइन कर चुकी हैं, जिनमें ‘खुदा गवाह’, ‘देवदास’, ‘जोधा अकबर’, ‘फैशन’, ‘मिशन कश्मीर’ आदि प्रमुख फिल्में हैं। नीता लुल्ला कहती हैं, ‘शाकुंतलम’ में मैंने इस बात की पूरी कोशिश की है कि इस फिल्म में कलाकारों के जो कॉस्ट्यूम हैं, वो उस दौर को याद दिलाए। इसमें मैने अपनी कल्पना और पत्रिकाओं से मिले रेफरेंस के आधार पर कॉस्ट्यूम डिजाइन किए हैं। जब आप कोई कहानी पढ़ते हैं, तो उस किरदार के भेषभुसा आपके दिमाग में बैठने लगते थे। हालांकि बचपन में जब अमर चित्र कथाएं पढ़ती तो मम्मी से बहुत डांट भी मिलती थी, इस लिए मैं वो किताबे बिस्तर के नीचे छुपाकर रखती थी।’
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कहानी के हिसाब से फिल्म का कॉस्ट्यूम परफेक्ट होना बहुत ही जरूरी होता है। देखा जाए तो कॉस्टयूम भी एक किरदार की तरह होते हैं। जिस तरह से फिल्म में अगर किसी किरदार की कास्टिंग गलत हो जाए, तो फिल्म पर बहुत फर्क पड़ता है, उसी तरह से अगर किरदार के कॉस्ट्यूम परफेक्ट ना हो तो दर्शक उस किरदार से खुद को रिलेट नहीं कर पाते हैं। नीता लुल्ला कहती हैं, ‘जब मुझे पहली बार फिल्म के निर्देशक गुनासेखर ने मुझे इस फिल्म के बारे में बताया उसी समय मेरे दिमाग में पूरी पिक्चर स्पष्ट थी कि किस तरह के कॉस्ट्यूम इस फिल्म में डिजाइन करना हैं।
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