नए संसद भवन के उद्घाटन में जिस बात की सबसे ज्यादा चर्चा है, वो है सेंगोल, जिसे सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर पेश किया जा रहा है। भाजपा का आरोप है कि आजादी के समय पंडित नेहरू को यह सेंगोल सौंपा गया था लेकिन उसके बाद हिंदू परंपरा के प्रतीक इस सेंगोल को म्यूजियम में रख दिया गया। जिसे अब पीएम मोदी को सौंपा जाएगा। हालांकि कांग्रेस ने भाजपा ने दावे को सिरे से खारिज कर दिया है और कहा है कि सेंगोल सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक नहीं है और इसे लेकर कोई दस्तावेजी सबूत भी उपलब्ध नहीं हैं।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट करते हुए आरोप लगाया कि ‘राजदंड का इस्तेमाल अब प्रधानमंत्री और उनके समर्थकों द्वारा तमिलनाडु में अपने राजनीतिक फायदे के लिए किया जा रहा यह इस ब्रिगेड की खासियत है, जो अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए तथ्यों को उलझाती है। असल सवाल ये है कि नई संसद भवन के उद्घाटन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को क्यों नहीं आमंत्रित किया गया है।’
जयराम रमेश यहीं नहीं रुके और उन्होंने लिखा कि ‘इस बात का कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है कि माउंटबेटन, राजाजी और नेहरू ने इस राजदंड को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक कहा था। इसे लेकर जो भी दावे किए जा रहे हैं, वो गलत हैं। यह कुछ लोगों के दिमाग में आया और फिर व्हाट्सएप पर फैला दिया गया और अब भाजपा समर्थकों द्वारा मीडिया पर इसे फैला रहे हैं। सी राजगोपालाचारी के बारे में जानने वाले दो विद्वानों ने भी इस दावे पर हैरानी जताई है।’
जयराम रमेश ने दावा किया कि तत्कालीन मद्रास प्रांत के एक धार्मिक प्रतिष्ठान ने अगस्त 1947 को पंडित नेहरू को यह राजदंड सौंपा था लेकिन माउंटबेटन, राजाजी और नेहरू ने इस राजदंड को अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में वर्णित नहीं किया था। इस बात का कोई दस्तावेजी सबूत भी नहीं है।
20 विपक्षी पार्टियां कर रहीं कार्यक्रम का बहिष्कार
बता दें कि 28 मई को नए संसद भवन की इमारत के उद्घाटन के मौके पर मदुरै के पुजारियों द्वारा सेंगोल को पीएम मोदी को सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में सौंपा जाएगा। इसके बाद इस सेंगोल को लोकसभा स्पीकर के आसन के पास स्थापित कर दिया जाएगा और विशेष मौकों पर ही इसे निकाला जाएगा। वहीं विपक्षी कांग्रेस समेत 20 राजनीतिक पार्टियां नए संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम का बहिष्कार करेंगी। विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि राष्ट्रपति मुर्मू को पूरी तरह से दरकिनार कर प्रधानमंत्री द्वारा नए संसद भवन का उद्घाटन करना ना सिर्फ अपमानजनक है बल्कि यह लोकतंत्र पर भी सीधा हमला है।
किसने क्या कहा?
नए संसद भवन परिसर के उद्घाटन को लेकर खूब राजनीति हो रही है। विपक्षी पार्टियों ने कार्यक्रम के बहिष्कार का एलान किया है। इस पर केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि ’28 मई को प्रधानमंत्री नए संसद भवन को राष्ट्र को समर्पित कर भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में नया अध्याय जोड़ने जा रहे हैं। नया संसद भवन भारत के लोकतांत्रिक संकल्प के साथ 140 करोड़ भारतीयों के स्वाभिमान और उनकी आकांक्षाओं की भी अभिव्यक्ति है। संसद भवन का उद्घाटन एक एतिहासिक अवसर है जो 21वीं सदी में फिर नहीं आएगा। हमें संवैधानिक सत्र और सार्वजनिक समारोह में अंतर समझना चाहिए। मैं आग्रह करूंगा कि जिन राजनीतिक दलों ने बहिष्कार का निर्णय लिया है वे अपने फैसले पर राजनीतिक लाभ हानी से परे जाकर फिर विचार करें।’
भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने कहा कि ‘मुझे लगता है कि संसद भवन का उद्घाटन लोकतंत्र का एक उत्सव है और हमें उसी तरह इसे लेना चाहिए। ये विवाद का विषय नहीं बनना चाहिए। अगर ये विवाद का विषय बनता है तो ये दुर्भाग्य है। कुछ लोगों की ये कोशिश चल रही है लेकिन हमें इस उत्सव को मिलकर मनाना चाहिए।’
वहीं विपक्षी और शिवसेना (उद्धव ठाकरे) नेता संजय राउत ने कहा कि ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे लेकिन उनके आमंत्रण पत्र में राष्ट्रपति जी का नाम ही नहीं है। कम से कम उन्हें आमंत्रित तो कीजिए। उन्होंने उपराष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपति को भी आमंत्रित नहीं किया है तो क्या ये एक पार्टी (बीजेपी) का कार्यक्रम है। इसके बारे में वो लोग कुछ नहीं बोल रहे। इस पर उन्हें जवाब देना चाहिए। विपक्ष का विरोध देश के सम्मान के लिए है।’