यह हफ्ता देश की राजनीति में काफी सक्रियता वाला रहा। इस हफ्ते लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया। संसद में वह प्रस्ताव गिर गया, लेकिन इसका जनता में क्या संदेश गया? साथ ही राहुल गांधी की संसद सदस्यता बहाली और विपक्षी एकता भी सुर्खियों में रही। मणिपुर मुद्दे पर क्या विपक्ष सरकार को घेर पाया या विपक्ष ने मौका गंवा दिया, यह भी चर्चा का विषय रहा। इन सभी मुद्दों पर चर्चा के लिए खबरों के खिलाड़ी की इस नई कड़ी में हमारे साथ वरिष्ठ विश्लेषक प्रेम कुमार, अवधेश कुमार, पूर्णिमा त्रिपाठी, समीर चौगांवकर और संजय राणा मौजूद रहे। आइए जानते हैं विश्लेषकों की राय….
पूर्णिमा त्रिपाठी
‘अविश्वास प्रस्ताव तो गिरना ही था। यह सभी को पता था, लेकिन विपक्ष पीएम से सवाल करना चाहता था और इस प्रस्ताव से विपक्ष को यह पूरा मौका मिला। इस प्रस्ताव के बहाने विपक्ष भविष्य के लिए गोलबंदी करना चाहता था और विपक्ष इस गोलबंदी में भी सफल रहा। वहीं भाजपा ने अपने जवाब में विपक्षी एकता को ही निशाने पर लिया। इस अविश्वास प्रस्ताव से साफ हो गया है कि 2024 के चुनाव में क्या स्थिति रहने वाली है। मणिपुर पर सरकार की तरफ से गृहमंत्री और प्रधानमंत्री ने अपनी बात रखी तो प्रस्ताव का मकसद कामयाब रहा।’ संसद में असंसदीय भाषा के इस्तेमाल पर पूर्णिमा त्रिपाठी ने कहा कि ‘आज राजनीति युद्ध का मैदान बनी हुई है और यही तल्खी राजनेताओं के भाषणों और शारीरिक भाषा में भी दिखती है। संबोधन के दौरान सत्ता पक्ष के नारायण राणे ने जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया, उसकी भी आलोचना होनी चाहिए।’
प्रेम कुमार
‘आज देश में किसी एक मुद्दे पर सबसे ज्यादा ध्यान है तो वो मणिपुर का मुद्दा है। पहले मणिपुर को इतनी तवज्जो नहीं मिल रही थी लेकिन अविश्वास प्रस्ताव के बाद यह चर्चा के केंद्र में आ गया है। यह देश के सबसे चर्चित मुद्दों में से एक बन गया है और यह विपक्ष की सफलता है। पीएम का मणिपुर पर बोलना ही विपक्ष की जीत है। गृहमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि तीन मई को हिंसा हुई तो चार मई को हमने सेना भेज दी और अन्य सभी कार्रवाई की। एक तरह से गृहमंत्री ने मणिपुर हिंसा को कानून व्यवस्था से ऊपर का मामला बताया। वहीं, पीएम ने कहा कि यह कानून व्यवस्था का मसला है। उन्होंने इसकी तुलना राजस्थान और छत्तीसगढ़ की घटनाओं से की। इस तरह पीएम और गृहमंत्री के बयान में विरोधाभास नजर आया। सदन में जो बोला जा रहा है, उसे देश देख रहा है। नेता प्रतिपक्ष को निलंबित कर दिया गया, लेकिन पीयूष गोयल ने विपक्ष को गद्दार कहा, उस पर कुछ नहीं हुआ। इस तरह विपक्ष के नेता जो बोलते हैं, उन पर कार्रवाई होती है, लेकिन सत्ता पक्ष को कुछ नहीं बोला जाता!’
अवधेश कुमार
‘अगर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए बैठे हैं तो जवाब भी तो उसी पर दिया जाएगा। सरकार ने तो मणिपुर पर चर्चा की बात पहले ही की थी। राहुल गांधी खुद अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा में सरकार को विभिन्न मुद्दों पर घेर रहे थे। यह अविश्वास प्रस्ताव अहम था क्योंकि विपक्षी गठबंधन होने के बाद एकता दिखाने का यह पहला बड़ा मौका था लेकिन विपक्ष की तैयारियों में कमियां दिखीं। गौरव गोगोई ने अविश्वास प्रस्ताव दिया था। गौरव गोगोई ने भी अपने भाषण में ऐसे तर्क नहीं दिए, जो सरकार घिर जाए। राहुल गांधी संसद सदस्यता बहाली के बाद पहली बार संसद में बोल रहे थे, लेकिन राहुल गांधी अपने संबोधन से बिल्कुल भी प्रभावित नहीं कर सके। अविश्वास प्रस्ताव ने 2024 के लोकसभा चुनाव की ध्वनि और संकेत दे दिया है।’
‘विपक्ष को मणिपुर पर चर्चा को केंद्रित रखना चाहिए था और उनके पास कोई तथ्य नहीं था। विपक्ष ने यह बहुत बड़ा अवसर गंवाया है। विपक्ष में ऐसा कोई माद्दा नहीं दिखा, जिससे सरकार को कोई परेशानी होती। तभी सरकार को अपनी बात रखने का मौका मिल गया और सरकार ने इसका फायदा अच्छी तरह लिया।’ सांसदों की कार्रवाई पर अवधेश कुमार ने कहा कि ‘हमें पदों की गरिमा रखनी होगी। अगर हर पद पर सवाल उठाए जाएंगे तो फिर क्या विश्वसनीय बचेगा? राघव चड्ढा का मामला बिल्कुल अलग है और इसकी जांच होनी चाहिए। बगैर सांसदों की सहमति के कोई सदस्य सभापति के पास प्रतिवेदन देता है तो ये गलत है।’
समीर चौगांवकर
‘राहुल गांधी और विपक्षी एकता के लिए संसद का यह मानसून सत्र बेहद अहम था कि वह किस तरह से सरकार को घेरते हैं। राहुल गांधी को संबोधन के लिए समय भी मिला क्योंकि पहले गौरव गोगोई ने बोला। राहुल गांधी बेहतर तैयारी से सरकार को घेर सकते थे लेकिन राहुल गांधी इसमें चूक गए। विपक्ष नियम 267 के तहत सत्र चलाने की मांग कर रहा था, जिसके लिए सरकार तैयार नहीं थी, सरकार नियम 176 के तहत बहस चाहती थी। विपक्ष को तैयार हो जाना चाहिए था ताकि चर्चा तो होती और अगर विपक्ष चर्चा से असंतुष्ट होता तो फिर वह अविश्वास प्रस्ताव ला सकता था। गृहमंत्री ने अपने संबोधन में मणिपुर की स्थिति को बेहतर तरीके से सदन में रखा और बताया कि म्यांमार में तख्तापलट से भी मणिपुर समस्या जुड़ी हुई है। विपक्ष उन्हें काउंटर करने में चूक गया। पूरे देश का ध्यान राहुल गांधी, पीएम मोदी के भाषणों पर था, लेकिन मुझे लगता है कि गौरव गोगोई ने अपने भाषण से प्रभावित किया।’
संजय राणा
‘संसद में किस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है, वह कहीं न कहीं निंदनीय हो जाता है। संसद में नीति निर्माण पर चर्चा होनी चाहिए और वहां भाषा का ध्यान रखा जाना चाहिए। अविश्वास प्रस्ताव 26 जुलाई को आया और चर्चा 9 अगस्त से शुरू हुई। विपक्ष के पास होमवर्क का काफी समय था, लेकिन विपक्ष मणिपुर मुद्दे पर कोई तथ्य नहीं रख पाया। अधीर रंजन चौधरी बंगाल से आते हैं और अगर उनकी हिंदी सही नहीं है तो उन्हें बंगाली में बोलना चाहिए, लेकिन असंसदीय शब्दों के इस्तेमाल से बचना चाहिए। चर्चा के दौरान मणिपुर के मुद्दे उठाए ही नहीं गए। विपक्ष जनता का विश्वास खो चुका है। जहां तक विपक्षी एकता की बात है तो मुझे उसमें कोई एकता नजर नहीं आती। कांग्रेस यह समझनी लगी है कि राहुल मतलब इंडिया। बीते नौ साल के कार्यकाल में कई ऐसी चीजें हैं, जो सरकार गिना सकती है, लेकिन कांग्रेस के पास गिनाने के लिए बहुत कुछ नहीं है। आज देश को बड़े बदलाव की जरूरत है, लेकिन कांग्रेस पुराने ढर्रे पर चलना चाहती है। जो दूरदर्शी नहीं है, वो नेता नहीं है। विपक्षी तो पुराने समय में ही जीना चाहते हैं।’