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Karnataka:कांग्रेस में शामिल हुए कर्नाटक के पूर्व Cm जगदीश शेट्टार, लिंगायत नेता को क्यों नहीं रोक पाई Bjp? – Karnataka: Former Cm Jagadish Shettar Joined Congress, Why Bjp Could Not Stop Lingayat Leader?

कर्नाटक में भाजपा को तगड़ा झटका देते हुए पार्टी के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार सोमवार को कांग्रेस में शामिल हो गए। लिंगायत समुदाय के प्रभावी नेता शेट्टार ने 16 अप्रैल को ही भाजपा से इस्तीफा दिया है। इससे कर्नाटक के टर्फ पर पहले ही मुश्किलों में घिरी पार्टी की मुश्किलें बढ़ गई हैं। इसके पहले लक्ष्मण सावदी ने भी पार्टी छोड़कर उसकी मुश्किलें बढ़ाई थीं। बड़ा प्रश्न है कि भाजपा ने कर्नाटक में बेहद प्रभावी लिंगायत समुदाय को अपने हाथ से क्यों निकल जाने दिया?

जगदीश शेट्टार हुगली सीट से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन भाजपा ने उन्हें टिकट देने से इनकार कर दिया था। इसके बदले उन्हें केंद्र सरकार में मंत्री और उनके परिवार के किसी सदस्य को विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए ऑफर दिया गया था। लेकिन शेट्टार अपनी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए पूरी तरह मन बना चुके थे। कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा ने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन अंततः उन्होंने भाजपा का दामन छोड़ दिया।

शेट्टार को क्यों नहीं रोक पाई भाजपा

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 से ही एक लंबी रणनीति के अंतर्गत ओबीसी और दलित जातियों को अपने साथ जोड़ने की रणनीति अपनाई है। ओबीसी और दलित जातियों को न केवल भाजपा संगठन में, बल्कि केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल में प्रभावी भूमिका में सामने लाकर इन समुदायों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की गई है।

माना जा रहा है कि भाजपा की इस चुनावी रणनीति का बड़ा कारण समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड और दक्षिण भारत की उन राजनीतिक पार्टियों को अप्रभावी करना है, जो जाति-समुदाय विशेष के समर्थन के बल पर उसे सफल चुनौती देती हैं। अपने प्रचंड हिंदुत्व और कट्टर राष्ट्रवाद के बाद भी भाजपा इन राजनीतिक दलों का जातीय वर्चस्व अब तक तोड़ नहीं पाई है।

जातीय राजनीति में अपनी दखल बढ़ाकर भाजपा इन दलों को बेहतर टक्कर देने की रणनीति पर चल रही है। जिस तरह नीतीश कुमार सहित अन्य विपक्षी दल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले जातीय जनगणना का दांव फेंका है, उसे देखते हुए भी भाजपा की यह रणनीति ज्यादा प्रासंगिक हो गई है। भाजपा के इस चुनावी दांव को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी समर्थन हासिल है, जो विभिन्न जातियों को एक साथ लाकर वृहद हिंदू राष्ट्र बनाने की बात कहती रही है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अपने पिछले कई बयानों में जातिगत बंधनों को तोड़ते हुए स्वयं को केवल हिंदू या भारतीय बताने की वकालत की है। उनके इन बयानों को भाजपा के इस कार्ड से जोड़कर देखा जाता है।

लिंगायत पर वोक्कालिगा को बढ़त क्यों

दरअसल, कर्नाटक की राजनीति में लगभग 17 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाला लिंगायत समुदाय बहुत प्रभावी माना जाता है। माना जाता है कि यह वर्ग जिस राजनीतिक दल के साथ रहता है, कर्नाटक में उसे स्वाभाविक बढ़त हासिल हो जाती है। 1980 के दशक तक यह वर्ग पूरी तरह कांग्रेस के साथ रहता था, लेकिन राजीव गांधी ने एक लिंगायत नेता को पद से हटाकर दूसरे को प्राथमिकता दे दी, जिसके बाद अपमानित लिंगायत समुदाय ने कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा का दामन अपना लिया था। बीएस येदियुरप्पा ने इसी समय कर्नाटक में भाजपा का कद बढ़ाना शुरू किया था। लिंगायतों के उनके साथ जुड़ने से भाजपा राज्य में एक बड़ी सियासी ताकत बन गई।

यह भी पढ़ें: कर्नाटक में भाजपा को बड़ा झटका!: कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार, उभरा BJP छोड़ने का दर्द

लेकिन लिंगायतों का यह साथ भी भाजपा को अकेले दम पर कर्नाटक में सरकार में आने में सफलता नहीं दिला पा रहा था। कभी उसे जेडीएस तो कभी बागियों का सहारा लेकर कर्नाटक में अपनी सरकार बनानी पड़ी। यही कारण है कि अपनी जीत को पूरी तरह अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा ने राज्य के वोक्कालिगा समुदाय को अपने साथ जोड़ने की कोशिश शुरू कर दी।

लगभग 15 फीसदी मतदाता वर्ग वाला वोक्कालिगा समुदाय इस समय जेडीएस के साथ जुड़ा माना जाता है। इस विधानसभा चुनाव में इस वर्ग के जेडीएस से बिछड़कर दूसरे दलों में जाने के कयास लगाए जा रहे हैं। भाजपा जेडीएस के इस खिसकते वोट बैंक को अपने साथ लाने की कोशिश कर रही है। वहीं कांग्रेस भी इस किसान-मजदूर वर्ग पर अपनी दावेदारी जताने से नहीं चूक रही है। जिस दल को यह बढ़त हासिल होगी, कर्नाटक चुनाव में उसे स्वाभाविक बढ़त मिल सकती है।

यही कारण है कि पूरी रणनीति के साथ भाजपा ने इस बार वोक्कालिगा पर दांव लगाने का निर्णय किया। पार्टी को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, हिंदुत्व और अन्य मुद्दों के कारण इन लिंगायत नेताओं की नाराजगी के बाद भी इस वर्ग का बड़ा मतदाता उसके साथ जुड़ा रहेगा। लेकिन यदि वोक्कालिगा उसके साथ आ जाते हैं, तो उसकी दूसरे दलों पर निर्भरता हमेशा के लिए समाप्त हो सकती है। यही कारण है कि भाजपा ने जगदीश शेट्टार की नाराजगी को भांपने के बाद भी वोक्कालिगा के साथ जाने का निर्णय किया।

उलटा पड़ सकता है दांव

राजनीतिक विश्लेषक धीरेंद्र कुमार के अनुसार दक्षिण भारत की राजनीति बुरी तरह जातीय ध्रुवों में बंटी हुई है। लेकिन इसके बाद भी वहां पार्टीगत राजनीति से ज्यादा यहां चेहरों का महत्त्व होता है। येदियुरप्पा के भाजपा छोड़ने के बाद राज्य में पार्टी को जो करारा नुकसान उठाना पड़ा था, उसका बड़ा कारण यही माना जाता है कि लिंगायत समुदाय के बड़े मतदाता उनके साथ चले गए थे। अंततः भाजपा को अपनी भूल का एहसास हुआ और पार्टी ने उन्हें अपने साथ दोबारा वापस लिया।

उन्होंने कहा कि जगदीश शेट्टार येदियुरप्पा के बाद लिंगायत समुदाय के दूसरे सबसे प्रभावी नेता हैं। वे पूर्व मुख्यमंत्री भी रहे हैं, लिहाजा समाज में उनका बड़ा असर है। यदि उनके कारण लिंगायतों का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस की तरफ वापस लौटा तो भाजपा का यह दांव उलटा पड़ सकता है।

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