भारत के जी-20 शेरपा अमिताभ कांत ने कहा कि अफ्रीकी संघ को जी-20 का स्थायी सदस्य बनाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्ताव को समूह की ओर से जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली है। कांत ने पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि जी-20 समूह की भारत की अध्यक्षता में अफ्रीकी महाद्वीपीय निकाय को जी-20 में स्थायी सदस्यता मिलने की नई दिल्ली को काफी उम्मीद है।
प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले महीने जी-20 देशों के नेताओं को पत्र लिखकर नई दिल्ली में सितंबर में होने वाले आगामी शिखर सम्मेलन में अफ्रीकी संघ को समूह की पूर्ण सदस्यता देने का प्रस्ताव रखा है। इस प्रस्ताव को 13 से 16 जुलाई तक कर्नाटक के हम्पी में हुई जी-20 शेरपाओं की तीसरी बैठक में नेताओं की घोषणा के मसौदे में औपचारिक रूप से शामिल किया गया था। नई दिल्ली में सितंबर में समूह के शिखर सम्मेलन में अपनाई जाने वाली नेताओं की घोषणा को आकार देने के लिए शेरपाओं ने सभा के दौरान व्यापक रूप से चार बैठकें कीं। बता दें कि अफ्रीकी संघ (एयू) एक प्रभावशाली संगठन है जिसमें 55 सदस्य देश शामिल हैं।
कांत ने कहा कि अफ्रीकी संघ को जी-20 की सदस्यता देने के प्रधानमंत्री के प्रस्ताव को व्यापक समर्थन मिला और समूह की भारत की अध्यक्षता का उद्देश्य बड़े पैमाने पर अफ्रीकी महाद्वीप सहित वैश्विक दक्षिण को लाभ पहुंचाना है। उन्होंने कहा, हमारा पूरा दस्तावेज वास्तव में ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ’ शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री द्वारा 125 देशों के साथ की गई बैठक के आधार पर तैयार किया गया है। वहां से जो सामने आया है, वह हमारे दस्तावेज (नेताओं की घोषणाओं का मसौदा) का मूल आधार है।
कांत ने कहा, प्रमुख मुद्दों में से एक यह है कि प्रधानमंत्री ने सभी नेताओं को पत्र लिखकर कहा था कि अफ्रीकी संघ को स्थायी सदस्य बनाया जाना चाहिए। हमने शेरपा बैठक में इस प्रस्ताव को रखा था। उन्होंने कहा, मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि शेरपा बैठक के तीसरे दौर में भारत के प्रधानमंत्री के इस प्रस्ताव पर हमें जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली है। इसलिए हमें पूरी उम्मीद है कि प्रधानमंत्री के प्रस्ताव के आधार पर भारत की अध्यक्षता के दौरान अफ्रीका को जी20 में एक स्थायी स्थान मिल जाएगा।
अधिकारियों के अनुसार, जी20 आम सहमति के सिद्धांत के तहत काम करता है और नेताओं के शिखर सम्मेलन में कोई भी असहमतिपूर्ण आवाज मुश्किलें पैदा कर सकती है। कांत ने कहा कि शिखर सम्मेलन में भारत की प्राथमिकताएं सतत विकास, सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) का त्वरित कार्यान्वयन, डिजिटल परिवर्तन और हरित विकास हैं। उन्होंने कहा कि भारत का रुख रहा है कि विकासशील देशों को एसडीजी और जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में आवश्यक कार्रवाई के लिए संसाधन उपलब्ध कराने की जरूरत है।
कांत ने कहा, यदि आप जलवायु (परिवर्तन से निपटने के लिए आवश्यक) कार्रवाई को लेकर महत्वाकांक्षी होने की कोशिश कर रहे हैं, तो वित्त संबंधी व्यवस्था के संदर्भ में भी कदम उठाए जाने चाहिए। ऐसा नहीं हो सकता कि विकसित दुनिया हमें जलवायु कार्रवाई पर महत्वाकांक्षी होने के लिए कहे और फिर जलवायु संबंधी वित्त में कटौती कर दे। यह संभव नहीं है।
कांत ने कहा कि दुनिया में धन की कोई कमी नहीं है। उन्होंने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग ब्याज दरों पर प्रकाश डालते हुए कहा, निजी क्षेत्र के पास 3,50,000 अरब अमेरिकी डॉलर उपलब्ध हैं, जबकि संस्थागत निवेशकों के पास 1,50,000 अरब अमेरिकी डॉलर और निजी क्षेत्र के पास पेंशन फंड है। उन्होंने कहा, लेकिन वे वहां निवेश नहीं करेंगे, जहां जोखिम बहुत अधिक है। अब चुनौती यह है कि आपके सामने अलग-अलग देशों के लिए अलग-अलग जोखिम हैं।
कांत ने विकासशील देशों या ‘वैश्विक दक्षिण’ के सामने आने वाली चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि उभरते बाजारों के कारण विकास हो रहा है और यह विकास उनकी युवा जनसांख्यिकी की वजह से हो रहा है, जबकि पश्चिमी देशों की अधिकतर आबादी उम्रदराज है और ऐसा पिछले डेढ़ दशक से देखा जा रहा है। कांत ने कहा, विकसित दुनिया में विकास कम हो रहा है और उभरते बाजारों का विकास बढ़ रहा है, इसलिए यदि युवा जनसांख्यिकी के कारण उभरते बाजार का तेजी से विकास हो रहा है, तो आपको उभरते बाजारों के लिए अधिक संसाधन मुहैया कराने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, लेकिन व्यवस्था इसके विपरीत है। कांत ने संकेत दिया कि भारत इन मुद्दों का समाधान ढूंढने पर जोर देगा।
जी20 दुनिया की प्रमुख विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं का एक अंतरसरकारी मंच है। 20 देशों का समूह एक प्रमुख संगठन है जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 85 प्रतिशत, वैश्विक व्यापार का 75 प्रतिशत से अधिक और विश्व की लगभग दो-तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व करता है। इस समूह में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) शामिल हैं।