कभी इंटीरियर डिजाइनिंग में अपना करियर बनाने शिमला से मुंबई पहुंची अपर्णा सूद की गिनती अब हिंदी सिनेमा के दिग्गज प्रोडक्शन डिजाइनर्स में होती है। सिनेमा में प्रोडक्शन डिजाइनर एक ऐसा तकनीशियन होता है जो निर्देशक की कल्पना के अनुसार नई दुनिया रचता है। हाल के दिनों में रिलीज वेब सीरीज में ‘जुबली’ एक ऐसी सीरीज रही है जिसकी दुनिया बहुत आकर्षक है। इस सीरीज के सेट्स, इसके कलर पैलेट और इसकी डिजाइनिंग के प्रेरणा स्रोतों पर प्रोडक्शन डिजाइनर अपर्णा सूद से ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल की एक्सक्लूसिव मुलाकात।
वेब सीरीज ‘जुबली’ के कालखंड को रचने के लिए आपकी पहली प्रेरणा क्या रही?
ये कहानी जैसे ही मेरे पास आई तो मेरा सबसे पहले ध्यान फिल्म ‘कागज के फूल’ पर गया। सीरीज की निर्देशन टीम ने भी हमको संदर्भ के लिए यही फिल्म सुझाई। इसके बाद उस कालखंड में जितनी भी फिल्में देश-विदेश में बनी, वे सारी हमारी टीम ने देखीं और समझा कि हमें रचना क्या है।
इस सीरीज में जो कुछ भी दिखता है, जाहिर सी बात है कि वह अब कहीं मौजूद नहीं है। गिनती की जाए तो तकरीबन कितने सेट हैं पूरी सीरीज में?
पूरी सीरीज में छोटे, बड़े सब मिलकर तकरीबन 50 सेट हैं। एकदम सही गिनती तो मुझे भी अब याद नहीं है लेकिन 50 के करीब सेट रहे हैं। दो तीन लोकेशन हमने दिल्ली जाकर शूट की और सीरीज में स्टेशन के जितने दृश्य हैं, वे सब श्रीलंका में फिल्माए गए क्योंकि भाप वाला रेलवे इंजन हमें वहां पर आसानी से मिल रहा था।
शहरों और उनकी इमारतों को दिखाने में इस सीरीज में एक खास शैली का प्रयोग खूब हुआ है, इसके लिए किस तरह का शोध किया गया?
ये शैली उस समय की है जब मुंबई को लोग बॉम्बे के नाम से जानते थे और यहां 1929 के आसपास आर्ट डेकोर नामक स्थापत्य कला का बाहुल्य रहा। अब भी माटुंगा, दादर के आगे की आप पुरानी इमारतें देखेंगे तो वे सब आर्ट डेकोर बिल्डिंग हैं। मेरे हिसाब से मयामी के बाद मुंबई दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शहर है जहां आर्ट डेकोर शैली की इमारतें हैं। रॉय टॉकीज का लोगो, इसके दरवाजों के हैंडल, गेट सब आर्ट डेकोर शैली के ही हैं।
तो इतने विशालकाय सेट बनाने के लिए आपको मुंबई में जगह कहां मिली?
मुंबई में हमने बोरीवली में एक खाली मैदान तलाश किया। काफी बड़ी जगह थी और वहीं हमने इस सीरीज के सेट बनाए। हम लोगों को पुराना बंबई, रॉय टॉकीज और लखनऊ सब एक ही जगह बसाना था तो तलाशने पर हमको ऐसी एक जगह मिल गई। एक नई दुनिया रचने का आनंद ही कुछ और है।