Amar Ujala Samvad 2024 Manu Bhaker Olympian Shooter Interview Read Here Manu Bhaker Interview – Amar Ujala Hindi News Live – Samvad 2024:मनु भाकर बोलीं
विस्तार
अपनी 75वीं सालगिरह से स्वर्णिम शताब्दी की ओर बढ़ रहा ‘अमर उजाला’ 26 और 27 फरवरी को लखनऊ में ‘संवाद : उत्तर प्रदेश’ का आयोजन कर रहा है। इस मौके पर देश के अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़ी हस्तियां आयोजन में शिरकत कर रही हैं। कार्यक्रम के पहले दिन भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष पीटी उषा और दिग्गज बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल मंच पर नजर आईं। अब भारत की स्टार निशानेबाज मनु भाकर दूसरे दिन (मंगलवार) कार्यक्रम का हिस्सा बनीं। इस दौरान उनसे खेल से जुड़ी कई दिलचस्प घटनाओं पर चर्चा हुई।
सवाल: एक ओलंपिक आप खेल कर आ चुकी हैं। वो माहौल जी चुकी हैं। अब एक और चुनौती है। आपकी तैयारी कितनी है? उस तैयारी की कोई इनसाइड स्टोरी शेयर कर सकें?
जबाव: अमर उजाला का बहुत बहुत शुक्रिया। ओलंपिक की जब बात आती है तो पूरा देश इकट्ठा हो जाता है। टोक्यो ओलंपिक मेरा पहला था। मैंने उस तरह का प्रेशर कभी नहीं झेला था। मैं बहुत ज्यादा नर्वस थी। मेंटल ट्रेनिंग योगा कर रही हूं। जो पिछली बार परेशानी हुई थी वो परेशानी इस बार न हो। उसकी पूरी तैयारी कर रही हूं। आपकी आशाओं के साथ मैं तिरंगा लहरा सकूं।
सवाल: टेनिस खेला, स्केटिंग की, एथलेटिक्स किया। ये सब इन्होंने स्कूल में किया। उनकी मां भी यहां मौजूद हैं। एथलेटिक्स इनके लिए बहुत सीरियस था। एक बार यह सेकंड आई थीं तो गुस्सा थीं कि सेकंड क्यों आईं। जब इतना खेल रही थीं तो आपको कैसे लगा कि शूटिंग में ही आपको करियर बनाना है?
जबाव: बहुत ही फनी स्टोरी है। शूटिंग मुझे ऐसे मिली कि मैं क्लास बंक करती थी। इंग्लिश हिंदी सोशल साइंस बंक करती थी या फिर मुझे क्लास से बाहर कर दिया जाता था। जब मुझे क्लास से बाहर किया जाने वाला था तो मैं खुद ही बाहर चली जाती थी। स्कूल में ही शूटिंग रेंज खुली थी। जब भी मैं किसी को बताती थी कि मैं शूटिंग कर रही हूं तो दादी पूछती थीं कि कौन सी फिल्म की शूटिंग कर रही हो। फिर मैं शूटिंग रेंज जाना शुरू कर दिया। फिर कोच ने ध्यान देना शुरू किया। मैं पेरेंट्स की बहुत आभारी हूं। उन्होंने कभी मुझे किसी चीज के लिए मना नहीं किया। अभी मैं वायलिस सीखना चाहती हूं। परसों ही मेरे लिए टीचर ढूंढा गया है। जब से नीरज जी ने मेडल जीता है तो काफी लोग स्पोर्ट्स के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। शूटिंग एक बहुत ही ट्रांसपेरेंट गेम है। इसमें ऐसा नहीं होता कि ज्यूरी किसी को जिता देंगे। तो इसलिए मैं इस खेल से ज्यादा जुड़ी। ये जो स्पोर्ट्स हैं जूडो या कराटे वो इसलिए क्योंकि मेरी स्कूल में लड़ाई बहुत होती थी। मेरा भाई था तो मैं ये सबको कहती थी कि इसको किसी ने परेशान किया तो मैं छोड़ूंगी नहीं। तो सब ने कहा इस गुस्से को चैनलाइज किया। फिर वो सही जगह लगी।
सवाल: अक्सर ये होता है कि मैंने कोई चीज शुरू की तो हम उसे बेहतर करने की कोशिश करते हैं। आपको अलग खेलों में मेडल मिले फिर भी क्यों छोड़ दिया?
जबाव: हम सभी की लाइफ में एक चीज होती है डेस्टिनी। हर चीज में होती है। मैं भी इसमें विश्वास करती हूं। हमारे बॉक्सिंग के कोच बहुत सख्त थे। वो रूटीन को लेकर सख्त थे। हम लेट हुए या कुछ मिस किए तो डांट डपट पड़ती थी। तो मैं बोर हो गई थी। यही मेरे साथ भी हुआ कि एक ही चीज बार-बार करते करते बोर हो गई थी। जब मैंने मार्शल आर्ट्स शुरू किया और तीन बार चैंपियन बन चुकी थी, एक बार ओपन और दो बार स्कूल में तो हमारे एकेडमी ने कहा कि हम लड़कियों को नहीं ट्रेन कर सकते तो ये चीज मुझे बहुत बुरी लगी। फिर मैंने कराटे शुरू किया और इसमें ट्रेन किया। फिर शूटिंग में आई तो कराटे पीछे छूट गया।
सवाल: कौन सा मेडल खास था?
जबाव: मेरे लिए सबसे खास 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स का मेडल था। मैं 16 की थी। मैंने गोल्ड जीता था कॉमनवेल्थ गेम्स रिकॉर्ड के साथ। सबने मुझे कॉल किया और बधाई दी कि आपने बहुत अच्छा किया। तब मुझे रियालाइज हुआ कि स्पोर्ट्स को कितना रिकॉगनाइज किया जाता है। मैंने जाना कि स्पोर्ट्स सबको एकजुट कर सकता है सब एक साथ इकट्ठा होकर टीम इंडिया को चीयर करते हैं। इसलिए मैं स्पोर्ट्स की तरफ झुकी क्योंकि इसमें थ्रिल है।
सवाल: आपका संघर्ष कैसा रहा है, कुछ ऐसी चीज हैं जो हम नहीं जानते हैं, किस तरह आपने खुद को तैयार किया?
जबाव: मैं मानती हूं किसी खिलाड़ी का सफर उसके घर उसके मां से शुरू होता है। अगर पेरेंट्स उसके अपॉरचुनिटी नहीं देंगे तो कैसे होगा। अगर कल को मैं अपने घर पर जाऊं और कहूं कि यह स्पोर्ट्स छोड़कर पढ़ाई करना चाहती हूं तो वो सोचेंगे कल ही तो मेडल जीता आज फिर क्यों। लेकिन मेरे पेरेंट्स ने कभी ऐसा नहीं किया। उन्होंने मुझे मेरी मर्जी से चीजें करने दीं। दूसरी चीज है डिसिप्लिन। अगर कुछ हासिल करना है तो जिंदगी में अनुशासन होनी चाहिए। कोई कल नहीं आता। आपको इस चीज को पकड़ कर रखना है कि कोई चीज करनी है तो करनी है। दृढ़ संकल्प लीजिए। आप अपने स्ट्रगल के बारे में निगेटिव मत सोचिए, बस अपने लक्ष्य के पीछे जाइए। ये सोचिए की जो आप सफर कर रहे हैं वो आगे चलकर आपकी कहानी बनने वाली है। तो बस अपने लक्ष्य के पीछे लग जाएं।
सवाल: कल आपने रबड़ी जलेबी खाई। चीट आपने भी किया। डाइट को लेकर परेशानी कितनी होती है?
जबाव: मैंने बहुत लंबे समय से नहीं खाया था। रबड़ी जलेबी हर किसी के मन में बसती है। पिछली बार मैंने 2021 में खाया था। तो इसलिए बहुत टाइम हो गया था।
सवाल: आपने जैसा कहा कि किसी का भी सफर उसके परिवार से शुरू होता है। शुरू में आपकी मां आपको समझाती थीं कि ऐसे करना है ये करना है, लेकिन अब सुनने में आ रहा कि ये रोलप्ले आप करती हैं। तो समय के साथ ये रोलप्ले कैसे बदला? इस सफर के बारे में बताएं।
जबाव: मुझे शुरू से ही डांट पड़ती है। आज सुबह ही डांट पड़ी कि इतना लेट क्यों उठ रही हो। सबसे ज्यादा डांट पड़ती है लेट सोने पर। फोन क्यों नहीं रखा, सो क्यों नहीं रही है। टाइम हो गया एकेडमी जाओ, टाइम हो गया होमवर्क कर लो। मुझे लगता है कि माता-पिता को इतना स्ट्रिक्ट होना चाहिए। ये कामयाब होने के लिए जरूरी है। आपने रोलप्ले बचपन में मैं मां को कहती थी कि मुझे उस एकेडमी में जाना है। मैं मां को कहती थी कि मुझे ऐसा कोच दो जो मुझपर भरोसा कर सके कि मैं कर सकती हूं। मेरी मां मुझे कोच लाकर देती थीं मुझे उनका नंबर देती थी। अब मैं उन्हें कहता हूं कि आप रिलैक्स करो मैं अब समझदार हो चुकी हूं, लेकिन डांट तो अब भी पड़ती है। आप अपने बच्चो को ये मत बताओ की पढ़ो। आप अपने बच्चों को ये बताओ कि क्यों पढ़ना चाहिए। क्यों जरूरी है लाइफ में करियर होना, क्यों लाइफ में पैसे की जरूरत है। आप डिक्टेट मत करिए, उसे बताइए कि ये क्यों जरूरी है। आप ये मत कहिए कि पैर छुओ। उसे बताओ कि ये क्यों जरूरी है। बच्चों को वैल्यूज सिखाइए और वह करियर खुद बना लेगा।
सवाल: टोक्यो ओलंपिक में आपकी शूटिंग इवेंट के दौरान पिस्टल खराब हो गया था। 14 मिनट ठीक होने में लग गए। ऐसे में आपको 36 मिनट में 44 शॉट लगाने थे। सवाल ये है कि आप उससे कैसे उबरीं?
जबाव: टोक्यो ओलंपिक के बाद मैं दो महीने डिप्रेस थी। हर जगह मैं जानती थी जहां मैं गोल्ड जीतती हूं, सिल्वर-ब्रॉन्ज नहीं गोल्ड जीतती हूं, लेकिन मैं वहां पिस्टल की वजह से चूक गई। लेकिन लाइफ वहां खत्म थोड़ी हो गई। मैंने सोचा कि मैं फिर से वो मोमेंट क्रिएट कर लूंगी। ओलंपिक के बाद एक महीने तक शूटिंग को देखा तक नहीं था। मोरल ये है कि अगर कभी कामयाबी न मिले तो इसको सोचकर हार नहीं मान लेनी चाहिए। आपको ये सोचना चाहिए कि मैं आगे भी कर सकती हूं। आपके लिए लाइफ में सबसे ज्यादा जरूरी होती है आपकी खुशी। अगर आप हार के बाद भी खुश होने की क्षमता रखते हैं तो आप वो मोमेंट आगे चलकर भी दोहरा सकते हैं।
सवाल: हार से कैसे उबरें? ऐसा क्या करें जिससे उबर सकें?
जबाव: आप बायोग्राफी पढ़िए। मैं अभी उसेन बोल्ट की बुक पढ़ रही हूं। मैंने देखा है कि वो हार कर जितनी प्रेरणी मिलती है वो जीत से नहीं मिलती। हारने की प्रेरणा बहुत मजबूत होती है। बोल्ट कितनी बार हारे लेकिन उन्होंने उससे प्रेरणा ली और आज देखिए कोई ऐसी प्रतियोगिता नहीं जिसने उन्होंने नहीं जीती हो।
सवाल: पहला मेडल 25 मीटर में आपकी पिस्टल नहीं थी। मनु ने जो अपना पहला गोल्ड जीता था 25 मीटर में वह उनका पिस्टल नहीं था। पिस्टल किसकी थी और वो कहानी क्या थी थोड़ा सा आप बता पाएं तो?
जबाव: शुरू-शुरू में जब आपके पास लाइसेंस नहीं होता है तो या फिर उतना फाइनेंसली आप स्टेबल नहीं होते हो तो शूटर्स करते हैं कि किराए पर ले लेते हैं। आप मुझे कुछ समय के लिए मैं आपको इस तरीके से रीपे कर दूंगा या दूंगी। वैसे ही मैंने अपना पहला नेशनल खेला था किराए पर पिस्टल लेकर। वह पिस्टल विनीत सर की थी और वह अभी भी शूटिंग करते हैं। तो मैंने उनसे पिस्टल ली थी और नेशनल खेला था। मुझे बकायदा ग्रिप तो बहुत दूर की बात है ये पता भी नहीं था कि ट्रिगर कितना अंदर होता है 10 मीटर और 25 मीटर में कितना फर्क होता है। वैसे ही मैंने वहां से शुरू किया था। धीरे-धीरे जब तक अपनी खुद की पिस्टल नहीं आई तब तक मैं संघर्ष करती रही इसमें ग्रिप नहीं बनी या ये नहीं हुआ। लेकिन मैंने सोचा कि जैसे-तैसे करके मैं चला लूंगी। आपके अदंर एक भूख होनी चाहिए कि कोई भी परिस्थिति आए तो भी मुझे ये करना है। अगर आप उस चीज को जारी रखते हैं तो कुछ भी कर सकते हैं।
सवाल: हम खुद को किसी प्रतियोगिता में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए कैसे प्रेरित करें क्योंकि मैं जब भी किसी प्रतियोगिता में जाता हूं तो मेरा प्रदर्शन गिर जाता है, जबकि प्रैक्टिस में ऐसा नहीं होता है?
जबाव: शूटिंग को लेकर एक गलतफहमी है कि सिर्फ खड़े होकर गोली चलाना है। आप जितना ज्यादा दिमागी तौर पर मजबूत होंगे उतना अच्छा परफॉर्म कर पाओगे। एकाग्रता बहुत जरूरी है। जब तक आप एकाग्र नहीं हो तब तक आप उस लेवल का प्रदर्शन नहीं कर पाओगे जिस लेवल तक आप ट्रेनिंग कर रहे हो। आप बहुत सारे ओपन कॉम्पिटीशन लो। जैसे स्कूल की तरफ से ही आपके सामने बहुत सारे दर्शक को बैठा दिया जाए और उनके सामने मैच खेलना है तो आप फिर उसको फील कर पाओगे कि आपको कैसे खेलना है और क्या करना है। आप वैसे ट्रेनिंग करो जैसे कि मैच में कैसे करना है। मैंने भी वैसा ही किया है कि उस परिस्थिति के मुताबिक खुद की ट्रेनिंग करती हूं। रूटीन के मुताबिक काम करिए और किसी प्रतियोगिता में उसी रूटीन को फॉलो करें और किसी बाहरी चीज से डिस्ट्रैक्ट मत हो।
सवाल: जब आप शॉट लेते हैं कि सभी के मन में एक सवाल रहता है कि ये शॉट कहां जाएगा। हम उस सोच को कभी कभार कंट्रोल नहीं कर पाते। इससे मन विचलित रहता है। तो हम शॉट लेते वक्त अपनी सोच को कैसे कंट्रोल करें?
जबाव: आप किसी भी प्रोफेशन में हो तो अपनी एक डायरी मेंटेन कीजिए। उससे आपको पता चलेगा कि आपने खुद को कितना मेंटेन किया है। जहां आपने अच्छा परफॉर्म किया है वहां आपने क्या क्या चीजें अच्छी की हैं। डायरी जरूर मेंटेन कीजिए। दूसरी चीज आपको फोकस प्रक्रिया पर करो। ये मत सोचो कि नतीजा क्या होगा। योगा करें। योगा में काफी ताकत है।
सवाल: आपके कोच के बारे में हम जानना चाहते हैं। जसपाल राणा किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, लेकिन उन्होंने आपका कैसे ध्यान रखा और उनका आपकी जिंदगी में प्रभाव क्या है?
जबाव: मुझे लगता है कि यहां मौजूद काफी लोग जानते होंगे कि जसपाल राणा कौन हैं। वह खुद एक बहुत बड़े शूटर रह चुके हैं। वह काफी मेडल जीत चुके हैं, चाहे वह कॉमनवेल्थ गेम्स हो या एशियन गेम्स। मैं बहुत यंग थी जब उन्होंने मुझे सिखाना शुरू किया था। मेरा आत्मविश्वास उनसे आता है। मैं आज भी कहती हूं कि अगर मेरे कोच नहीं होते तो मेरा आत्मविश्वास बहुत कम होता। पिछले साल ही मैंने दोबारा उनके साथ काम करना शुरू किया। कुछ लोग होते हैं जिन्हें देखकर आपका आत्मविश्वास आता है। किसी के लिए वह भाई होते हैं, किसी के लिए उनके माता पिता, मेरे लिए वह मेरे कोच हैं। जब भी उनको देखती हूं तो मुझे लगता है कि चाहे नतीजा कुछ भी हो, अच्छा हो बुरा हो, गोल्ड जीतूं या नहीं जीतूं वो सब संभाल लेंगे। हम दोनों का ऐसा बॉन्ड है। वो मेरे गॉड फादर हैं। मैं उनकी हर बात मानती हूं। वो कहते हैं ये मैच खेलना है तो खेलना है, ये मैच नहीं खेलना तो नहीं खेलती हूं। रोज छह बजे उठना है तो उठना है, रोज योगा करना है तो करना है तो मेरी उनसे इसी तरह की बॉन्डिंग है।
आइए जानते हैं उनके बारे में…
मनु 50 से अधिक अंतरराष्ट्रीय और 70 से अधिक राष्ट्रीय पदक जीत चुकी हैं। 2021 में हुए ओलंपिक में वह सातवें स्थान पर रहीं। अब इस साल पेरिस में होने जा रही ओलंपिक गेम्स में स्वर्ण पदक लाना उनका लक्ष्य है। 2023 में मनु ने एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीता।
2018 में मनु ने किया कमाल
मनु कभी कबड्डी के मैदान में उतरीं तो कभी कराटे में हाथ आजमाया। शूटिंग को प्राथमिक रूप से चुनने से पहले मनु ने स्केटिंग, मार्शल आर्ट्स, कराटे, कबड्डी सब खेला। 16 साल की उम्र में मनु ने 2018 में आईएसएसएफ विश्व कप में भारत का प्रतिनिधित्व किया और दो स्वर्ण पदक जीते। उसी साल मनु ने राष्ट्रमंडल खेलों और यूथ ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया। दोनों प्रतियोगिताओं में मनु ने स्वर्ण पदक हासिल किया।
नौवीं तक था डॉक्टर बनने का सपना
मनु के पिता राम किशन भाकर ने उनका हमेशा साथ दिया। पिता ने मनु को पूरा समर्थन दिया। जिस खेल में उन्हें आगे बढ़ने का मन था उसी में बढ़ने दिया। बहुत से विद्यार्थियों की तरह मनु भी नौवीं कक्षा तक डॉक्टर बनना चाहती थीं। वह खेल में शुरू से अच्छी रही लेकिन पढ़ाई पर मुख्य ध्यान रहा।
10वीं में मनु के जीवन का अलग मोड़ आया, जब कक्षा में टॉप करने के साथ उनका चयन शूटिंग के लिए राष्ट्रीय टीम में हुआ। उनके कोच अनिल जाखड़ के कहने पर मनु ने शूटिंग को एक मौका दिया और 11वीं में जब वह 16 साल की थी तब आईएसएसएफ विश्व कप, राष्ट्रमंडल खेल और यूथ ओलंपिक खेल में स्वर्ण पदक जीतकर अपना नाम बनाया।