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Mission Raniganj:जानिए ‘मिशन रानीगंज’ के असली हीरो के बारे में, जान पर खेलकर बचाई 65 खदान मजदूरों की जान – Mission Raniganj Know About The Real Hero Of Akshay Kumar Film Story Of Saving 65 People By Risking Lives

अभिनेता अक्षय कुमार की फिल्म ‘मिशन रानीगंज: द ग्रेट भारत रेस्क्यू’ सिनेमाघरों तक पहुंच चुकी है। यह फिल्म  पश्चिम बंगाल के रानीगंज  में साल 1989 हुए एक हादसे पर आधारित है। इस हादसे में  रानीगंज कोलफील्ड में फंसे 65 खदान श्रमिकों को जसवंत सिंह गिल ने बचाया था। इस फिल्म में अक्षय कुमार ने जसवंत सिंह गिल का किरदार निभाया है। आइए जानते हैं मिशन रानीगंज के असली हीरो जसवंत सिंह गिल के बारे में…



जसवंत सिंह गिल का जन्म अमृतसर के सठियाल मे 22 नवम्बर 1939 को हुआ। गिल की प्रारंभिक शिक्षा उनके गृहनगर  सथियाला में एक उर्दू स्कूल में हुई। उसके बाद खालसा कॉलेज पब्लिक स्कूल के पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से स्नातक किया।  झारखंड के धनबाद स्थित इंडियन स्कूल ऑफ माइंस में खनन इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद उन्हें करम चंद थापर एंड ब्रदर्स (कोल सेल्स) लिमिटेड नामक एक कोयला फर्म में नौकरी मिली। वहां कुछ वर्षों तक  काम किया करने के बाद जसवंत सिंह गिल ने साल 1972 में कोल इंडिया लिमिटेड में एक इंजीनियर के रूप में काम करना शुरू किया। 


कोल इंडिया लिमिटेड में एक इंजीनियर के रूप में कुछ समय तक तक काम करने के बाद जसवंत सिंह गिल को उप-विभागीय अभियंता के रूप में पदोन्नत मिली और फिर वह कोल इंडिया लिमिटेड में कार्यकारी अभियंता के तौर पर कार्यरत रहे। उसके बाद उन्हें रानीगंज में कोल इंडिया लिमिटेड में मुख्य महाप्रबंधक ईडी (सुरक्षा एवं बचाव) के पद पर पदोन्नत किया गया। 13 नवंबर 1989 को उसी क्षेत्र की एक कोयला खदान में दुर्घटना हुई जिसमें 220 खनिक काम कर रहे थे। 


जसवन्त सिंह गिल ने एक स्टील कैप्सूल बनाकर बचाव अभियान की योजना बनाई और खुद कैप्सूल में घुस कर बोरवेल के जरिये वहां गए जहां 65 खनिक फंसे हुए थे। बोरवेल में पहुंचने के बाद जसवंत सिंह ने फंसे हुए मजदूरों को एक-एक करके कैप्सूल के जरिए भेजना शुरू किया। सभी 65 खनिकों को बचाने के बाद सबसे आखिर में जसवंत सिंह बोरवेल से बाहर आए और बचाव अभियान में लगभग छह घंटे लगे। तब से भारत में 16 नवंबर को बचाव अभियान की याद में ‘बचाव दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। खदान में फंसे हुए मजदूरों को एक-एक करके लोहे के कैप्सूल में बाहर निकाला। यहीं वजह है कि उन्हें तब से ‘कैप्सूल गिल’ नाम से जाना जाता है। 


जसवंत सिंह गिल को अपने इस काम के लिए जमकर तारीफें मिली। इसके साथ ही उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमण की तरफ से ‘बेस्ट लाइफ सेवर मेडल’ से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें ‘स्वामी विवेकानंद अवार्ड ऑफ एक्सीलेंस’, ‘प्राइड ऑफ द नेशन’ जैसे कई अवॉर्ड्स भी मिले। साल 1998 में जसवंत सिंह गिल  चीफ जनरल मैनेजर ईडी (सेफ्टी एंड रेस्क्यू) के पद से रिटायर हुए। रिटायर होने के बाद भी वह कई सामाजिक सेवाओं सक्रिय रूप से शामिल रहे। साल 2008 में उन्हें अमृतसर में आपदा प्रबंधन समिति के सदस्य के तौर पर नियुक्त किया गया। 26 अप्रैल 2018 को उन्हें रोटरी इंटरनेशनल के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया था। 26 नवंबर 2019 को जसवंत सिंह गिल का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।


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