मुंबई पत्रकार संघ कार्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान शुक्रवार की शाम बच्चों के उपन्यास ‘नबाब रंगीले’ और आबिद सुरती के लिखे उपन्यास ‘सूफी’ के उर्दू संस्करण का विमोचन हुआ। इस अवसर पर वहां उपस्थित मेहमानों ने इस किताब से जुड़ी बातों पर चर्चा की। बता दें कि इस किताब का उर्दू अनुवाद मीद नाद ने किया, जो अब इस दुनिया में नहीं रहे। कार्यक्रम में मीन नाद के बारे में लोगों ने अपने अपने विचार साझा किए।
उपन्यास ‘सूफी’ आबिद सुरती का लिखा हुआ है। इस उपन्यास को आबिद सुरती ने अपने अंडरवर्ल्ड के अनुभवों के आधार पर लिखा। जिसे उर्दू में मीद नाद ने अनुवाद किया। आबिद सुरती ने मीद नाद को याद करते हुए कहा, ‘मीद नाद से मेरी बहुत अच्छी दोस्ती थी। वह ऐसे शख्स थे, जिन्होंने जिंदगी में किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया। लेकिन बुरे वक्त में मुझसे पैसे उधार मांगने आए, लेकिन मेरा उसूल है कि मैं किसी को पैसे उधार नहीं देता। जब वह मुझसे उधार पैसे मांगने आए तो मैंने मना कर दिया था।’
आबिद सुरती ने आगे बताया, ‘मेरा शुरू से ही उसूल रहा है कि किसी को पैसे उधार नहीं देता। जब भी कोई पैसे मांगने आता है तो उनसे एक ही बात कहता हूं कि इसके बदले क्या काम कर सकते हो? यही बात मैंने मीद नाद से की। उन्होंने कहा, ‘आप के हिंदी उपन्यास को उर्दू में अनुवाद कर देता हूं। उस समय मुझे अपनी पुस्तकों के उर्दू अनुवाद की जरूरत नहीं थी, क्योंकि अगर किसी प्रकाशक के पास जाता तो, उनकी पहली शर्त रहती थी कि एक सौ कॉपी आपको लेनी पड़ेंगी। खैर, मुझे मीद नाद की मदद करनी थी, तो उनको उर्दू में अनुवाद करने के लिए दे दिया और वह वैसे ही पड़ा रहा। वर्षों बीत गए, अब कौशल जोशी का फोन आया और इस पुस्तक को उर्दू में डिजिटल रिलीज करने की इच्छा जताई।’
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‘सूफी’ मुंबई की अंडरवर्ल्ड के बारे में हैं। आबिद सुरती कहते, ‘मेरा बचपन मुंबई में डोंगरी के फुटपाथ पर बीता है। उस समय मुंबई में अंडरवर्ड का नामोनिशान नहीं था। करीम लाला मुंबई के डॉन के रूप में उभर रहे थे। दाऊद इब्राहिम को तो अपने सामने अंडरवर्ल्ड डॉन बनते देखा। उसी दौरान के अपने अनुभवों के आधार पर मैंने ‘सूफी’ लिखी थी।’ यह उपन्यास आबिद सुरती के स्वयं और उनके दोस्त इकबाल रूपानी नामक एक व्यक्ति के बारे में है, जो 1960 और 1970 के दशक में मुंबई अंडरवर्ल्ड का सरगना बन गया था।
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इस कार्यक्रम के दौरान इस बात की भी चर्चा हुई कि आज के समय में किताबें कितनी पढ़ी जाती है। नेशनल बुक ट्रस्ट के संपादक पंकज चतुर्वेदी ने कहा, ‘लोग जो कहते है कि लोग किताब नहीं पढ़ते हैं, वह झूठा है। विश्व पुस्तक मेला अभी फरवरी खत्म हुआ। यदि हर दिन वहां एक लाख लोग आ रहे हैं तो जाहिर सी बात है कि किताबें बिक रही हैं और खरीदी जा रही हैं। हम लोग खुद ही मान लेते हैं कि किताब अब नहीं बिक रही है, यह सही बात है, लेकिन अब किताब बिकने का नजरिया बदल गया है।’
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