अभिनेता परेश रावल रंगमंच के दिग्गज कलाकार हैं। फिल्मों में भी उन्होंने एक से बढ़कर एक किरदार किए हैं, खासतौर पर अपने करियर के शुरुआती दौर में परेश रावल ने केतन मेहता, राहुल रवैल और महेश भट्ट जैसे निर्देशकों की फिल्मों में कमाल के किरदार निभाए हैं। अब वह इस शुक्रवार रिलीज होने वाली फिल्म ‘ड्रीम गर्ल 2’ में भी दिखेंगे। 11 अगस्त को रिलीज हुई अक्षय कुमार, पंकज त्रिपाठी और यामी गौतम स्टारर फिल्म ‘ओएमजी 2’ वह अभी देख नहीं पाए हैं और इसकी वजह भी परेश बताते हैं। गौरतलब है कि ये फ्रेंचाइजी परेश रावल के ही नाटक ‘कांजी विरुद्ध कांजी’ पर आधारित है। उनसे एक खास मुलाकात।
‘ड्रीम गर्ल 2’ के प्रस्ताव में सबसे अधिक आकर्षक आपको क्या लगा, इसकी कहानी या इसका सेटअप?
‘ड्रीम गर्ल 2’ में काम करने की सबसे बड़ी वजह यही रही कि मुझे एकता कपूर की कंपनी में काम करना था। मैं एकता की बहुत इज्जत करता हूं। जिस तरह से उन्होंने अपना साम्राज्य खड़ा किया है, चाहे वह टेलीविजन में हो या फिर फिल्मों में, हिंदुस्तान में किसी अकेली लड़की ने अब तक ऐसा नहीं किया है। आयुष्मान खुराना के साथ काम करने का मौका मिलना भ वजह रही और फिल्म के लेखक-निर्देशक राज शांडिल्य तो खैर हैं ही अच्छे लेखक।
अक्सर कलात्मक, व्यावसायिक और समानांतर सिनेमा को लेकर बातें होती रहती हैं। आपको इसमें मूलभूत अंतर क्या नजर आता है?
जो सब्जेक्ट मैं कर रहा हूं, पहले तो अच्छे सब्जेक्ट लूंगा। उस सब्जेक्ट को तोड़ मरोड़कर गंदा न करूं। अगर सब्जेक्ट में किसी चीज की जरूरत है तो उसको बड़ी ईमानदारी के साथ पेश करूं। होता क्या है कि फिल्म में दो गाने भी डाल लूं, एक्शन सीन डाल दूं और अगर उसमें कुछ और जगह बचा है तो उसमे एक रेप सीन भी डाल दूं। और, एक कॉमेडी ट्रैक डाल कर उसमे डबल मीनिंग वाले डायलॉग भर दूं। इस तरह के तोड़ मरोड़कर सब्जेक्ट को जो हम गंदा करते हैं, वह नहीं करना चाहिए। मैं समझता कि यह बेसिक अंतर है।
केतन मेहता, महेश भट्ट और राहुल रवैल जैसे निर्देशकों संग काम करने के कैसे अनुभव रहे?
केतन भाई मुझे रंगमंच से जानते हैं, उन्होंने मेरे नाटक देखे हैं। मेरे नाटक भी उन्होंने निर्देशित किए है। केतन भाई के साथ मेरा जो समय बीता है वह मेरे लिए बड़ा ही महत्वपूर्ण समय रहा है। एक कलाकार के रूप में मेरा वह स्वर्ण काल रहा, मैने बहुत कुछ सीखा। कभी कभी केतन भाई जो बात बोलते हैं, आपको समझ में नहीं आती है, लेकिन आप के जेहन में वह बातें पड़ी पड़ी आकार ले लेती है और एक दिन समझ में आता है कि अरे, हां इसका मतलब तो यह था। उन्होंने सही दिशा दिखाई। मैं किसी एक्टिंग स्कूल में नहीं गया। जो कुछ सीखा है थियेटर और बड़े कलाकारों को देखकर सीखा है। केतन भाई के साथ मैंने ‘होली’, ‘मिर्च मसाला’ और ‘सरदार’ जैसी फिल्में की, तो वही महेश भट्ट की फिल्म ‘नाम’ और राहुल रवैल की फिल्म ‘डकैत’ से मेरी अलग पहचान बनी।
अपनी सफलता का श्रेय आप किस निर्देशक को देना चाहेंगे?
हर फिल्म के अंदर जहां जहां मेरी तारीफ होती है, उसका पूरा क्रेडिट निर्देशक को जाता है। उसके बाद क्रेडिट अपने सह कलाकारों को देना चाहूंगा। फिल्म में एक्टर आइसोलेशन में रहकर काम नहीं कर सकता है, उसे सबका सपोर्ट चाहिए। थियेटर की बात अलग होती है, वहां जब पर्दा खुला और मैं ही होता हूं। उससे निर्देशक और सह कलाकारों का कोई श्रेय नहीं होता है।