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Pallavi Joshi Interview:लोग स्तरीय फिल्में बनाना भूल गए हैं, महलों में रहने वाले किरदार भारत की बानगी नहीं – Pallavi Joshi Interview The Kashmir Files Actress Says People Have Forgotten To Make Symbolic Films Read


पिछले साल रिलीज हुई फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ की सफलता के बाद अब निर्माता-निर्देशक विवेक अग्निहोत्री एक नॉन फिक्शन सीरीज ‘द कश्मीर फाइल्स अनरिपोर्टेड’ में इसी कहानीको आगे बढ़ाने जा रहे हैं। डाक्यूमेंट्री की तर्ज पर बनी यह सीरीज 11 अगस्त से ओटीटी प्लेटफार्म जी5 पर स्ट्रीम होने जा रही हैं। इस सीरीज को लेकर निर्माता-अभिनेत्री पल्लवी जोशी ने हाल ही में ‘अमर उजाला’ से खास बातचीत की।  



‘द कश्मीर फाइल्स अनरिपोर्टेड’ की शुरुआत कब हुई? क्या इसको ‘द कश्मीर फाइल्स’ बनाते समय ही शुरू कर दिया गया था?

जी हां, इसकी शुरुआत भी उसी समय हो गई थी, जैसा कि आप जानते हैं कि फिल्म में आप सब कुछ नहीं दिखा सकते हैं। हमारी शोध में ऐसी बहुत सारी चीजें थी जो  हम चाह रहे थे कि फिल्म के माध्यम से बाहर आएं, लेकिन मूल विषय से लोगों का ध्यान हट जाता और समय की पाबंदी को ध्यान में रखते हुए आप सारी घटनाओं को दिखा भी नहीं सकते हैं। ‘द कश्मीर फाइल्स’ में हमने कश्मीर घाटी में हुए नरसंहार पर फोकस किया था, इसके अलावा फिल्म के लिए सिर्फ खास घटनाओं को ही चुनना पड़ा। 


फिर ‘कश्मीर फाइल्स अनरिपोर्टेड’ में क्या है, इसको सीरीज के रूप में रिलीज करने की क्या वजह रही है? 

‘द कश्मीर फाइल्स’ के लिए जब हम लोग शोध कर रहे थे तो उस दौरान बहुत लोगों से बात हुई। हर किसी की अपनी एक कहानी थी। उनके ऊपर जो बीता वह सुनकर हम लोग दंग रह गए थे। इस सीरीज में शोध के दौरान के फुटेज और इंटरव्यू शामिल हैं। जिसे आप  कश्मीर के आम लोगों के जरिए जानेंगे। शोध के दौरान हमारे पास बहुत सामग्री इकट्ठी हो गई था। इसे हम लोग और पहले भी ला सकते थे, लेकिन उसको एडिट करके बनाने में काफी समय लग गया। हमारे पास 700 से ज्यादा लोगों के इंटरव्यू के वीडियो क्लिप थे, उसमे से हमें छांटना था कि कौन सा वीडियो क्लिप रखना है और कौन सा  क्लिप नहीं रखना है। इस  सीरीज में कोई एक्टर तो है नहीं सब अपनी आपबीती सुना रहे हैं। इसमें से कुछ के डायलॉग नहीं थे, लेकिन उनका इमोशन रखना जरूरी थी। कुछ चीजें जो फिल्म में दर्शक नहीं देख सके, वे इस सीरीज में देखेंगे।


कश्मीर फाइल्स से पहले आप लोग ‘द ताशकंद फाइल्स’ लेकर आए, इस फिल्म में भी ऐसी घटनाओं का जिक्र किया गया जिसके बारे में लोग बात करने से कतराते हैं, ऐसे संवेदनशील विषय पर फिल्म बनाने की प्रेरणा कहां से मिलती है? 

पता नहीं, इसका जवाब देना सही होगा या नहीं, लेकिन मैं दे देती हूं। एक फिल्मकार के तौर पर हमारी सोच यही रहती है कि सिनेमा के माध्यम से ऐसे विषय को सामने लाना चाहिए, जो अछूते हों। लेकिन हमारे यहां के फिल्मकार सिर्फ औसत फिल्में बनाने के पीछे भागते हैं। हमारे यहां यहां इतनी सारी प्रतिभाएं भरी पड़ी हैं, आज के फिल्मकार उनका इस्तेमाल क्यों नहीं करते। लोग स्तरीय फिल्में बनाना भूल गए हैं। पहले तो ऐसा नहीं था, पहले के दौर की राज कपूर की फिल्में, देवानंद की फिल्में, राजेश खन्ना की फिल्में कमर्शियल होते हुए भी सार्थक होती थीं। उनमें सामाजिक सरोकार की कुछ ना कुछ बातें अवश्य ही होती थीं, लेकिन आज के दौर की फिल्में देखने के बाद तो ऐसा प्रतीत ही नहीं होता है कि सब लोग खुशहाल हैं और महलों में रहते हैं, लंदन और न्यूयॉर्क में जाकर बसते हैं। जैसे हमारे यहां की जैसे समस्याएं ही खत्म हो गई हैं। ये महलों में रहने वाले किरदार भारत की बानगी नहीं हैं।


द कश्मीर फाइल्स बनाने का ख्याल कैसे आया था?   

हमने  एक दिन एक ईरानी फिल्म देखी जिसकी बहुत साधारण कहानी थी। कॉमेडी  फिल्म होते हुए भी फिल्म में ही ईरान के संस्कृति को बहुत अच्छे से दिखाया गया है। उसी दिन मैंने विवेक (अग्निहोत्री) से कहा कि हम ऐसा क्यों नहीं करते? क्या हम ऐसी फिल्में बना नहीं सकते हैं? हमें ऐसी फिल्में बनानी चाहिए जो भारत की मिट्टी और यहां के कल्चर से जुडी हो। हमलोग विषय तलाशने लगे। तभी हमारी मुलाकात कश्मीरी पंडितों से हुई। जब हमने उनकी एक-एक करके कहानी सुनी, तो खुद पर शर्म आने लगी कि हमारे देश में इतनी बड़ी घटनाएं हुईं और हमें इसका इल्म तक कैसे नहीं हुआ? एक-डेढ़ महीने के शोध  के दौरान जो हमने कश्मीर में समय बिताया वे हमारी जिंदगी के सबसे कठिन पल थे।


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