केंद्र सरकार ने मंगलवार को भारी हंगामे के बीच लोकसभा में दिल्ली सेवा अध्यादेश को बदलने के लिए विधेयक पेश किया। गृह मंत्री अमित शाह की ओर से गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने इसे पेश किया। इस मौके पर गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि संसद को दिल्ली के लिए कानून बनाने का अधिकार है। इस पर आपत्ति करना राजनीति से प्रेरित है। वहीं, विपक्षी सांसदों ने इस दौरान सदन के भीतर जमकर हंगामा काटा।
मंगलवार को सदन में हंगामे के कारण इस विधेयक पर चर्चा नहीं हो सकी। लोकसभा में बुधवार को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक पर चर्चा होगी। इसके बाद विधेयक पर वोटिंग हो सकती है। इसको देखते हुए भाजपा ने अपने लोकसभा सांसदों को बुधवार को सदन में मौजूद रहने को लेकर तीन लाइन का व्हिप जारी किया। व्हिप में भाजपा की ओर से कहा गया है कि सरकार के रुख और कुछ विधायी कार्यों का समर्थन करने के लिए दो अगस्त को सभी सांसद पूरे दिन सदन में उपस्थित रहें।
लोकसभा में GNCT (संशोधन) विधेयक 2023 पर बोलते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि संविधान ने सदन को दिल्ली राज्य के संबंध में कोई भी कानून पारित करने की शक्ति दी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने साफ कर दिया है कि दिल्ली राज्य को लेकर संसद कोई भी कानून ला सकती है। सारी आपत्ति राजनीतिक है। कृपया मुझे यह बिल लाने की अनुमति दें।
विपक्षी सांसदों ने शुरू किया विरोध
वहीं, जैसे ही गृह मंत्री शाह ने इस विधेयक पर बोलना शुरू किया, आम आदमी पार्टी के सांसद शुशील कुमार रिंकू ने विरोध जताना शुरू कर दिया। वे वेल में भी आ गए। सरकार के खिलाफ विपक्ष की नारेबाजी के बीच रिंकू ने कहा कि मुझे बोलने का मौका नहीं दिया गया। यह लोकतंत्र की हत्या है। आप भीमराव अंबेडकर का अपमान कर रहे हैं। इस दौरान रिंकू और कांग्रेस सदस्य टी एन प्रतापन को आसन के सामने कागज फेंकते देखा गया।
लोकसभा स्पीकर ने लगाई फटकार
हंगामे के बीच स्पीकर ओम बिरला ने विपक्षी सांसदों को उनके व्यवहार के लिए फटकार भी लगाई। उन्होंने कहा कि सभी को बोलने के लिए समय दिया जाएगा। इस तरह का व्यवहार अच्छा नहीं है। देश देख रहा है।
केंद्र इसके जरिए लोकतंत्र को कमजोर करना चाह रहा- अधीर रंजन चौधरी
वहीं, लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर चौधरी ने बिल पेश करने पर चर्चा करते हुए कहा कि यह विधेयक राज्यों के क्षेत्र में सरकार के अपमानजनक उल्लंघन को सही ठहराता है। यह संघवाद में सहयोग के लिए कब्रिस्तान खोदने के लिए बनाया गया है। इसका उद्देश्य दिल्ली सरकार की शक्तियों पर अंकुश लगाना है। केंद्र इस कदम के माध्यम से लोकतंत्र को कमजोर करना चाहता है।
सरकार को मिला बीजद का साथ
सरकार को दिल्ली सेवा विधेयक पर बीजद का साथ मिला है। बीजद ने एलान किया है कि वह दिल्ली सेवा विधेयक को लेकर सरकार का समर्थन करेगी। वहीं विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का विरोध करेगी। बीजद के राज्यसभा सांसद सस्मित पात्रा ने यह जानकारी दी है। बता दें कि बीजद के राज्यसभा में नौ सांसद हैं। बीजद के एलान से सत्ताधारी एनडीए को राज्यसभा में विधेयक पास कराने में खासी मदद मिलेगी।
प्रेमचंद्रन ने किया विरोध तो प्रह्लाद जोशी बोले- आएं चर्चा करें
इस दौरान आरएसपी नेता एन के प्रेमचंद्रन ने भी बिल का विरोध किया। उन्होंने कहा कि वह तीन आधार पर विधेयक का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैं विधेयक पेश करने में सरकार की विधायी क्षमता पर सवाल उठा रहा हूं। यह भारत के संविधान में परिकल्पित संघवाद के सिद्धांतों के खिलाफ है। दिल्ली में निर्वाचित सरकार का नौकरशाहों पर नियंत्रण नहीं होने का मतलब होगा कि दिल्ली में सरकार नहीं होगी। वहीं प्रेमचंद्रन को जवाब देते हुए संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि संसद विधेयक पारित करने के लिए पूरी तरह सक्षम है। उन्होंने कहा कि अगर वे विधेयक की योग्यता के बारे में बात करना चाहते हैं तो विचार और पारित होने के समय चर्चा करें।
सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने किया विरोध
वहीं, यह कहते हुए कि विधेयक अनुच्छेद 123 का उल्लंघन करता है, आईयूएमएल सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि संविधान में एक साधारण विधेयक के साथ संशोधन नहीं किया जा सकता है।
थरूर ने कही यह बात
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भी विधायी क्षमता पर विधेयक का विरोध किया। उन्होंने कहा कि संसद में आज दिल्ली (NCT) अध्यादेश विधेयक का संक्षिप्त परिचय हुआ, इस पर बहस नहीं हुई। परिचय का विरोध करना हमारा अधिकार है और विपक्ष के 5-6 सदस्यों ने इसका विरोध करने की कोशिश की। इनमें से एक पार्टी ने विपक्ष के रूप में खड़े होकर सरकार का समर्थन किया, लेकिन अन्य ने कहा कि यह अवैध है। यह दिल्ली एनसीटी को कमजोर करता है और यह विधेयक प्रतिनिधि लोकतंत्र के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
विपक्ष कर रहा लोगों को गुमराह- मीनाक्षी लेखी
दिल्ली सेवा विधेयक पर केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी ने कहा कि विपक्ष के तर्क निराधार हैं। वे लोगों को गुमराह कर रहे हैं। दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है इसलिए केंद्र की प्रधानता है। असल में विपक्ष के पास कहने के लिए कुछ नहीं बचा है इसलिए वे लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं।
टीएमसी सांसद सौगत रॉय ने भी बताया कि यह बिल सरकार की विधायी क्षमता से बाहर है। रॉय ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाया और अब इसे खत्म करने के लिए यह विधेयक लाया गया है। यह संविधान के तहत दिल्ली सरकार की विधायी शक्ति का पूरी तरह से हनन है।
दिल्ली सेवा अध्यादेश स्थान लेगा कानून
इस विधेयक के पास होने के बाद बनने वाला कानून दिल्ली सेवा अध्यादेश का स्थान लेगा, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में वरिष्ठ नौकरशाहों की नियुक्ति और तबादले के लिए प्राधिकरण बनाने का प्रावधान है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक के अनुसार, तबादले व तैनाती दिल्ली के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमेटी करेगी। इसमें मुख्य सचिव और प्रधान गृह सचिव सदस्य होंगे। समिति की सलाह पर उपराज्यपाल तबादले और तैनाती करेंगे।
बता दें कि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप सरकार ने भी अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। पिछले कुछ महीनों में, केजरीवाल ने विधेयक के खिलाफ समर्थन जुटाने और इसे राज्यसभा में रोकने के लिए कई विपक्षी नेताओं से भी संपर्क किया है। बता दें कि राज्यसभा में एनडीए के पास पर्याप्त संख्या बल की कमी है। हालांकि, बीजद और वाईएसआर कांग्रेस पहले ही कह चुके हैं कि वे इस विधेयक का समर्थन करेंगे।
वहीं, एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि 26 सदस्यीय विपक्षी दल इंडिया के लगभग 109 सांसदों और कपिल सिब्बल जैसे कुछ निर्दलीय सदस्यों द्वारा विधेयक के खिलाफ मतदान करने की उम्मीद है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंगलवार को ‘राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली क्षेत्र सरकार (संशोधन) विधेयक’ को मंजूरी दी थी। बता दें कि दिल्ली अध्यादेश के जरिए केंद्र सरकार ने दिल्ली में ग्रुप ए के अधिकारियों के तबादले और अनुशासनात्मक कार्रवाई का अधिकार उपराज्यपाल को दे दिया है। इसका दिल्ली सरकार द्वारा विरोध किया जा रहा है।
विधेयक को लेकर क्या है विवाद
- दिल्ली सरकार के अधिकारियों के तबादले और तैनाती का अधिकार एलजी के कार्यकारी नियंत्रण में था, लेकिन 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में दिल्ली पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और जमीन के अलावा अन्य सेवाओं का अधिकार दिल्ली की चुनी हुई सरकार को दिया था।
- सुप्रीम कोर्ट के फैसले के हफ्ते बाद ही केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर अधिकारियों के तबादले का अधिकार वापस एलजी को सौंप दिया था।
- दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार केंद्र के इस अध्यादेश के खिलाफ है और विपक्ष का समर्थन जुटा रही है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों ने इस मुद्दे पर दिल्ली सरकार को समर्थन देने की बात भी कही है। इससे पहले बीते मंगलवार को ही केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दिल्ली अध्यादेश से जुड़े विधेयक को अपनी मंजूरी दे दी थी।