साउथ सिनेमा के दिग्गज अभिनेता नासर न सिर्फ साउथ फिल्म इंडस्ट्री में बल्कि हिंदी सिनेमा के दर्शकों के बीच भी काफी लोकप्रिय हैं। नासर करीब 550 तमिल और करीब 150 तेलुगु फिल्मों में काम कर चुके हैं। इसके अलावा कन्नड़, मलयालम और हिंदी फिल्मों में भी वह नजर आते रहते हैं। कड़े संघर्ष और मेहनत के बल पर नासर ने जो मुकाम बनाया है वह आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा है। सोनी लिव पर 9 अगस्त से प्रसारित होने जा रही वेब सीरीज ‘द जेंगाबुरु कर्स’ में वह एक बहुत ही खास किरदार निभाते नजर आने वाले हैं। ‘अमर उजाला’ की अभिनेता नासर से एक खास बातचीत।
सिनेमा के साथ साथ आपका नाम अक्सर राजनीति में भी सुनने को मिलता है, क्या उधर जाने का कोई विचार है?
राजनीति से मैं नहीं जुड़ा हूं, मेरी पत्नी कमीला नासर राजनीति से जुड़ी हुई है, मेरे नाम नासर से उनका जुड़ा है तो लोग मुझे समझते कि मैं भी राजनीति से जुड़ा हुआ हूं। अभिनय ही मेरा पहला प्यार है और वह हमेशा ही रहेगा। फिल्म निर्देशन से भी मुझे प्यार है, लेकिन फिल्म निर्माण को मैं जोखिम भरा मानता हूं। मेरी पहचान अभिनेता के तौर पर ही रही है, और आगे भी अभिनेता के तौर पर ही रहेगी।
इसे भी पढ़ें- OMG 2: बिना किसी कट के सेंसर बोर्ड से पास हुई ‘ओएमजी 2’, अक्षय कुमार की फिल्म को मिला ‘ए’ सर्टिफिकेट
अभिनय की शुरुआत कहां से हुई?
मेरे पिताजी की शुरू से ही इच्छा रही है कि मैं अभिनेता बनूं। वायु सेना भी गया था भर् होने लेकिन ट्रेनिंग पूरी होने से पहले ही वापस आ गया। मेरी डैडी का सुझाव था कि मुझे अभिनय के क्षेत्र में आना चाहिए। मैंने उनसे कभी पूछा नहीं कि ऐसा वह क्यों चाहते थे। हमारे ऐसे संस्कार हैं कि पिताजी से सवाल नहीं करते हैं। मेरे डैडी ज्वेलरी पॉलिश करने का काम करते थे। उनको सिनेमा देखने का भी शौक नहीं था। लेकिन वह चाहते थे कि मैं अभिनेता बनूं। साउथ इंडियन फिल्म चैंबर ऑफ कॉमर्स के फिल्म इंस्टीट्यूट से एक्टिंग की बारीकियां सीखने के बाद मैंने मद्रास (चेन्नई) में तीन साल तक गुजारे के लिए ताज कोरोमंडल होटल में वेटर की नौकरी की। फिर तमिलनाडु इंस्टीट्यूट फॉर फिल्म एंड टेलीविजन टेक्नोलॉजी ज्वाइन किया। उसके बाद थियेटर से जुड़ा गया और काफी लंबे समय तक थियेटर करता रहा।
कैमरे के सामने आने से पहले आपने सहायक निर्देशक के तौर कैमरे के पीछे भी काम किया है…
उस समय हालात ऐसे थे कि जहां खाना मिल रहा है, वहां जाकर काम कर लेना है। कोई बोलता था कि एक शेड्यूल का काम है, पैसे नहीं मिलेंगे तो सिर्फ खाना मिलेगा, मैं चला जाता था। और, क्लैप मारता था। इस तरह से मैंने पांच फिल्मों में सहायक निर्देशक के तौर पर काम किया। कहीं से पैसे मिलते थे और कहीं से नहीं मिलते थे। पैसे से ज्यादा जरूरी मेरे लिए यह था कि किसी न किसी तरह से खुद को सिनेमा से जोड़े रखना।
मणि रत्नम की फिल्म ‘नायकन’ को आपके करियर का टर्निंग प्वाइंट माना जा सकता है?
मणि सर की ‘नायकन’ मेरी पांचवीं फिल्म थी। जब ‘नायकन’ की शूटिंग शुरू होने वाली थी तो उस समय तमिल के सारे एक्टर उसमें काम करना चाह रहे थे। मैंने भी कोशिश की लेकिन कुछ रिस्पॉन्स नहीं मिला जबकि फिल्म का एसोसिएट डायरेक्टर मेरा दोस्त था। फिल्म की शूटिंग शुरू हो गई और मैंने उम्मीद ही छोड़ दी थी। फिल्म के अंतिम शेड्यूल में एसोसिएट डायरेक्टर के सुभाष ने बुलाया और रोल दिया। यहां से मणि सर और कमल हासन से अच्छी ट्यूनिंग हो गई और लगभग इनकी हर फिल्म में मै रहता ही हूं।