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Johnny Walker Son Interview: डैडी बोले, मैं तुम्हारा पिता हूं, खुदा नहीं कि तुम्हारी किस्मत लिख सकूं… – Johnny Walker Death Anniversary Son Nasir Khan Interview Guru Dutt Dev Anand Badrudding Kazi Dilip Kumar


हिंदी सिनेमा में एक जमाना ऐसा भी रहा है जब फिल्म वितरकों का ध्यान फिल्मों के मुख्य कलाकारों की बजाय उनमें काम करने वाले हास्य कलाकारों पर रहा है। सिर्फ उनके नाम पर ही तब फिल्में बिक जाया करती थीं। अभिनेता जॉनी वॉकर भी ऐसे ही कलाकार रहे हैं जिनके नाम की हिंदी सिनेमा में तूती बोला करती थी। उनकी तारीखों के लिए लिए निर्माता, निर्देशक इंतजार किया करते थे। लेकिन जब जॉनी का करियर शिखर पर था तो फिल्में न करने के उनके फैसले ने सबको चौका दिया। 29 जुलाई 2003 को इस दुनिया को अलविदा कह गए जॉनी वॉकर के बेटे नासिर खान ने ‘अमर उजाला’ से इस खास बातचीत में अपने पिता से जुड़ी तमाम रोचक यादें साझा की हैं।  



आपके डैडी इंदौर से मुंबई कब आए और उनको अभिनेता बनने की प्रेरणा कहां से मिली

डैडी के वालिद जमालुद्दीन काजी इंदौर के एक मिल में मैनेजर थे। लेकिन हालात कुछ ऐसे हुए कि मिल बंद हो गई। आगे भी किस्मत ऐसी रही कि जिस भी मिल में काम करने जाते, तीन -चार महीने काम करते और मिल बंद हो जाती। परिवार बड़ा था, दादा जी के 10-12 बच्चे थे।  इंदौर से निकल कर कोलार, संगम, नासिक जैसे कई छोटे -छोटे शहरों से होते हुए वह मुंबई (बॉम्बे ) पहुंचे। मुंबई पहुंचते-पहुंचते उनकी माली हालत बहुत खराब हो गई। डैडी ने 12-13 साल की ही उम्र में ही घर की जिम्मेदारी उठा ली। कभी आइसक्रीम बेचते तो कभी फल, पतंग का मांजा या कभी मंजन बनाकर बेचते थे। डैडी साल 1945 में मुंबई पहुंचे तब उनकी उम्र 17-18 साल ही हो गई थी। 

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फिर?

डैडी बताते थे कि ऐसा कोई काम नहीं बचा था जो उन्होंने न किया हो। मुंबई के माहिम मेले में साइकिल पर करतब दिखाते थे। उस समय माहिम के मेले में स्लो साइकिल की रेस होती थी, जो सबसे धीरे साइकिल चलाएगा उसे इनाम मिलता था। डैडी ने वह रेस भी जीती। दो साल तक वह बस में कंडक्टर भी थे। वह किस्सा तो सबको पता है कि किस तरह से बलराज साहनी जी से मुलाकात हुई और उन्होंने गुरु दत्त साहब को शराबी की एक्टिंग करके परेशान किया, फिर बाहर फेंके गए। बलराज साहनी साहब ने गुरु दत्त को बताया कि यह तो एक्टिंग कर रहा था, इसको ‘बाजी’ में काम दे दो। साल 1952 में डैडी को फिल्म ‘बाजी’ में देव आनंद साहब के साथ एक सीन करने को मिला। किस्मत की बात है कि फिल्म हिट हो गई और वह सीन फिल्म का टर्निंग पॉइंट था। देव आनंद साहब के ऑफिस की घंटियां यह जानने के लिए बजने लगी कि शराबी की एक्टिंग किसने की?


बदरुद्दीन जमालुद्दीन काजी से जॉनी वॉकर बनने के तो कई किस्से सुनने को मिलते हैं, आप इस बारे में क्या कहना चाहेंगे?

फिल्म ‘बाजी’ हिट हुई तो गुरु दत्त साहब ने सोचा कि और फिल्में बनाते है। गुरु दत्त साहब ने अपनी प्रोडक्शन कम्पनी खोल दी। नवकेतन ने और फिल्में बनानी शुरू कर दी। देव आनंद साहब, चेतन आनंद साहब बहुत बड़े नाम थे। तब तक डैडी का नाम बदरुद्दीन था और देव साहब उन्हें  बदरू कहकर बुलाते थे। ‘आर पार’, ‘मिस्टर एंड मिसेज 55, ‘टैक्सी ड्राइवर’ जैसी फिल्में शुरू होने लगी। सब फिल्मों में डैडी का अच्छा रोल था। लेकिन डैडी का नाम सबको खटक रहा था। क्योंकि वह  फिल्मी नाम नहीं लग रहा था। फिर तय हुआ कि सब शराबी -शराबी पूछ रहे हैं तो अपना नाम जॉनी वॉकर रख लो। गुरु दत्त और चेतन आनंद साहब ने कहा कि हम और फिल्में बना रहे हैं, उसमें तुम्हारा अच्छा काम है, ‘बाजी’ के टाइटल में तो नाम आया नहीं, लेकिन अब नाम आएगा। सब शराबी के बारे में पूछ रहे हैं तो तुम जॉनी वॉकर नाम रख लो। डैडी ने सोचा की जॉनी तो बच्चा भी बोल सकता है, बहुत सहज नाम है। और, वॉकर मतलब चलने वाला। तो  हो सकता है, मैं चल पड़ूं। वहां से डैडी का नाम जॉनी वॉकर पड़ गया। ‘बाजी’ से पहले भी डैडी ने कुछ फिल्में जूनियर आर्टिस्ट के तौर पर की थी। दिलीप कुमार अंकल  की फिल्म ‘हलचल’ में भी डैडी थे। फिर डैडी की ‘आर पार’, ‘टैक्सी ड्राइवर’ आई। फिल्में हिट रहीं और करियर चलने लगा ।


फिल्म ‘प्यासा’ के गाने ‘सर जो तेरा चकराए’ से जुड़ा कोई किस्सा, जो डैडी ने आप से शेयर किया हो?

यहां भी किस्मत की ही बात आती है। फिल्म की जो कहानी थी उसमे यह किरदार नहीं था। अबरार अल्वी साहब ने वह फिल्म लिखी थी। गुरु दत्त, अबरार अल्वी, रहमान और डैडी, ये चारों की चौकड़ी हुआ करती थी। इनका हमेशा साथ में उठना बैठना था। गुरु दत्त साहब ने कहा कि अगर ‘प्यासा’ में जॉनी वॉकर नहीं है, तो मैं यह फिल्म नहीं बना सकता। अबरार अल्वी ने कहा कि इसमें कॉमेडी का कोई स्कोप नहीं, यह हैवी फिल्म  है। अगर आप जबरदस्ती किरदार घुसाएंगे तो मेरी कहानी खराब हो जाएगी। गुरु दत्त साहब ने कहा कि निर्माता निर्देशक मैं हूं, और फिल्म में  मुझे जॉनी चाहिए। इस बात पर दोनों के बीच खूब बहस हुई। उन दिनों किसी फिल्म की शूटिंग के लिए कलकत्ता (कोलकाता) गए हुए थे। चारों की चौकड़ी होटल में ठहरी हुई थी, तय यह हुआ कि शाम को होटल के नीचे जाकर चाय पीते हैं, लेकिन काम की बात नहीं होगी। बेंच पर बैठकर सभी चाय पी रहे थे कि तभी पीछे से आवाज आई तेल मालिश। गुरु दत्त साहब पलटे और बोले, जॉनी ये कैरेक्टर पकड़ो। इस तरह से उस फिल्म में वह किरदार पैदा हुआ और फिर यह गाना बना।


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