1999 में हुए कारगिल युद्ध को कल 24 साल हो जाएंगे। इस युद्ध में भारतीय वीर जवानों ने पाकिस्तान सेना के कब्जे से कारगिल की ऊंची चोटियों को आजाद कराया था। इस जंग में कई जवान शहीद हो गए लेकिन कारगिल युद्ध में विजय देश के नाम कर गए। भारत की गौरवशाली विजय और भारतीय जवानों की शहादत इतिहास के पन्नों पर हमेशा के लिए दर्ज हो गयी।
इस युद्ध के नेतृत्व की कमान उस वक्त के सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक के हाथों में थी। मालिक बताते हैं कि युद्ध से पहले दुश्मन देश की ओर से तरह-तरह की साजिशें रची गई थीं। उनके मुताबिक, खुफिया एजेंसियों से सेना के सेना के पास इनपुट आ रहे थे कि कश्मीर घाटी में घुसपैठिए अलग-अलग रास्तों से घुसपैठ करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दुश्मन ‘काली सलवार और कमीज’ पहनकर कश्मीर और लद्दाख की दुर्गम पहाड़ियों से चढ़े। सेना के लिए चुनौतियां बहुत थी। कहीं ऊंचाई पर हथियार पहुंचाने में दिक्कत आ रही थी, तो कहीं जवानों को तुरंत भेजने में भौगोलिक परिस्थितियां का सामना करना पड़ रहा था। लेकिन मई के आखिरी हफ्ते में जो प्लान बना, उसके बाद दुश्मनों के सिर धड़ से अलग होते रहे और 26 जुलाई को भारतीय सेना ने कारगिल पर विजय प्राप्त कर ली।
कारगिल युद्ध के दौरान थल सेना अध्यक्ष रहे जनरल वीपी मलिक कहते हैं कि युद्ध कठिन तो बिल्कुल नहीं था क्योंकि सेना को अपने जवानों-अधिकारियों पर पूरा भरोसा था। लेकिन निश्चित तौर पर बहुत चैलेंजिंग था। हमारे पास अप्रैल में ऐसी कोई सूचना नहीं थी कि पाकिस्तानी सेना इस तरीके से योजना बना रही है। जो इनपुट सेना के पास खुफिया विभाग से आए थे, वह थे कि कश्मीर घाटी में घुसपैठिए घुसपैठ की फिराक में हैं।
मई में पता चला कि काली सलवार-कमीज पहनकर कुछ लोग घुस आए हैं
मलिक बताते हैं कि सेना को मई में इस बात का पहली बार पता चला कि काली सलवार-कमीज पहनकर कुछ लोग बटालिक और द्रास सेक्टर में घुस आए हैं। सेना ने इंटेलिजेंस के लोगों को इस बात की इत्तला दी थी कि यह घुसपैठिए नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना है। खैर सेना दुश्मनों का मुकाबला करने और खदेड़ने के लिए तैयार हो चुकी थी। चूंकि खुफिया सूचना तो घाटी में घुसपैठ की थी वह भी घुसपैठियों की। लेकिन पाकिस्तानी सेना के लोग भारतीय सीमा में घुस आए थे। इसलिए तैयारियों के तौर पर सेना को बहुत जल्दी और बहुत बड़े बड़े फैसले लेने पड़े। बटालिक और द्रास सेक्टर में सेना के कमांडरों को न सिर्फ तैनात कर फ्रंट पर भेजा गया। बल्कि अलग-अलग डिवीजन से सेना के अधिकारियों और जवानों को दुश्मन प्रभावित इलाकों में रवाना किया गया। इस दौरान लगातार सेना केंद्र और कैबिनेट के संपर्क में रही।
दुश्मन सैनिकों की संख्या का अंदाजा नहीं था, ये रणनीति आई काम
मलिक के मुताबिक, इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि द्रास और बटालिक सेक्टर से जो पाकिस्तानी सेना के लोग ऊपर बढ़ रहे थे या आ चुके थे उनकी संख्या कितनी थी। इसलिए सेना हर तरीके से तैयार थी। बाद में जब इस बात का पता चला कि उनकी संख्या तीन से चार हजार के करीब है तो फिर सेना ने बड़ी रणनीति बनाई और दुश्मनों के ठिकानों से लेकर उनके सभी नापाक मंसूबों को नाकाम करना शुरू कर दिया।
मई के आखिरी हफ्ते में कैबिनेट के साथ बैठक
इतने दुश्मनों का मुकाबला करने के लिए सेना ने एक बड़ी योजना बनाई। मई के आखिरी हफ्ते में कैबिनेट के साथ बैठक हुई और उसके बाद तय हुआ कि भारतीय सेना के सभी अंग जिसमें थल सेना, वायु सेना और जल सेना मिलकर इस पूरे ऑपरेशन को अंजाम देगी। बस फिर क्या था…सेना के सभी तीनों प्रमुख अंगों के जवान दुश्मन का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए मैदान-ए-जंग में निकल पड़े थे। असली लड़ाई तो मैदान में पहाड़ी इलाकों पर हो रही थी। इसलिए थल सेना के जवान और अधिकारी सबसे आगे उस हर मोर्चे पर खड़े थे जहां से दुश्मनों को मार गिराया जाना था।
दुश्मन ऊंचाई पर थे फिर भी उन्हें खदेड़ दिया गया
भौगोलिक दृष्टिकोण से पाकिस्तान की सेना के लोग ऊंचाई वाले इलाकों में थे। उस पर कंट्रोल करने के लिए भी सेना ने खास रणनीति तैयार की थी। मलिक का कहना है कि यह रूर है कि ऊंचाई वाले क्षेत्रों में युद्ध के दौरान तमाम तरीकों की मुश्किलों का सामना जरूर करना पड़ा। मसलन सैनिकों को हथियारों को कैसे पहुंचाना है। सैनिकों की पूरी-पूरी टुकड़िया विपरीत परिस्थितियों वाले पहाड़ी और बर्फीले मैदानों में कैसे भेजनी है। लेकिन यह चैलेंज दुश्मनों को पीछे खदेड़ने में कभी आड़े नहीं आए। और यही सैनिकों और हमारे अधिकारियों का जज्बा जुनून था कि पाकिस्तान की सेना को नाक रगड़ने पर मजबूर कर दिया और उनको खदेड़ दिया।