‘चंद्रयान 3’, की सफल लॉंचिंग के बाद अब चंद्रमा की सतह पर उसकी सुरक्षित एवं सॉफ्ट लैंडिंग की ओर दुनिया के अनेक देशों की निगाहें टिकी हैं। चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग, अभी तक यह मुकाम तीन देशों रूस, अमेरिका और चीन को हासिल है। सितंबर 2019 में चंद्रयान 2 की जब चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की कोशिश की गई, तो विक्रम लैंडर से संपर्क टूट गया था। उस दौरान जो कुछ हुआ, उसके मद्देनजर इस बार भारतीय वैज्ञानिकों ने उन सभी विकल्पों को अपने साथ लिया है, जिनका इस्तेमाल किसी भी आपात स्थिति में सुरक्षित लैंडिंग के लिए किया जा सकता है। इसके लिए इसरो में कोई एक-दो नहीं, बल्कि अनेकों ‘ब्रेन स्टॉर्मिंग’ सत्र आयोजित किए गए। इन्हीं सत्रों में चंद्रयान 3 की सुरक्षित लैंडिंग की स्क्रिप्ट लिखी गई। अगर चंद्रमा की सतह पर उतरते वक्त अगर कोई भी बाधा आई तो उसे दूर कर दिया जाएगा। सामने पत्थर आया तो भी चंद्रयान 3 संभल जाएगा। वैज्ञानिकों ने इस बार कई विकल्प अपने पास रखे हैं।
पूर्व वैज्ञानिक एवं प्रमुख रेडियो कार्बन डेटिंग लैब, बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान, लखनऊ, डॉ. सीएम नौटियाल का कहना है कि चंद्रयान 3 की सफल लैंडिंग को लेकर इस बात कोई चिंता नहीं करनी चाहिए। इसरो के वैज्ञानिकों ने अपने ‘ब्रेन स्टॉर्मिंग’ सत्रों में हर उस बात पर विचार किया है, जो अंतिम समय में हो सकती है। भारत, चंद्रयान 3 की सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग के मिशन में कामयाब होगा। रोवर, चांद की सतह पर चलेगा और वैज्ञानिक परीक्षण भी करेगा। हमारे वैज्ञानिकों ने 2019 की घटना से बहुत कुछ सीखा है। चंद्रयान 2 के उतरने के लिए जितना क्षेत्र निर्धारित किया गया था, अब उसमें काफी इजाफा किया गया है। पहले वह क्षेत्र साीमित था। इस दफा बड़े एरिया का चयन हुआ है। अगर लैंडिंग के लिए एक जगह उपयुक्त नहीं लगी, तो दूसरी जगह भी तैयार रहेगी। इतना ही नहीं, सॉफ्ट लैंडिंग का मिशन बिना किसी दिक्कत के पूरा हो, इसके लिए तीसरा विकल्प भी तैयार रहेगा।
एक किलोमीटर के क्षेत्र में लैंडिंग करा सकते हैं
चंद्रयान 3 को टारगेट स्थल से आगे-पीछे ले जाने की व्यवस्था रहेगी। एक किलोमीटर के दायरे में उसकी सुरक्षित लैंडिंग हो सकती है। अगर एक जगह ठीक नहीं है, तो दूसरे स्थान पर लैंडिंग हो जाएगी। चंद्रयान 2 में पांच इंजन लगे थे, इस बार चार इंजन रखे गए हैं। ऐसा इसलिए किया गया है, ताकि चंद्रयान 3 का वजन कम रहे। डॉ. सीएम नौटियाल कहते हैं, चंद्रमा पर गुरुत्वाकर्षण बल कम होता है। पृथ्वी के मुकाबले वहां पर वजन 1/6 कम रहता है। वहां पर वही बल विपरित दिशा में काम करता है। वजन कम रखने से कई बातें आसान हो जाती हैं। चंद्रयान 3 से लगातार संपर्क बना रहे, इसके लिए पावरफुल सेंसर लगाए गए हैं। वेट और उंचाई मापने के लिए तुंगतामापी (अल्टीमीटर) यंत्र का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके जरिए हमें पता लगेगा कि चंद्रमा की सतह से चंद्रयान 3 की उंचाई कितनी है। वेट मापने का यंत्र डॉप्लर के सिद्धांत पर काम करेगा। इसके माध्यम से लगातार उंचाई और वेट का पता चलता रहेगा। जिस जगह पर चंद्रयान 3 उतरेगा, उसका दायरा बढ़ा दिया गया है।
संतुलन न बिगड़े, इसका ध्यान रखा गया है
चंद्रमा की सतह पर पर्यावरण स्वच्छ होता है। वहां प्रदूषण की कोई गुंजाइश नहीं है। अगर ऐसा कोई कण होता है, तो वह हवा में जल जाता है। इस वजह से वहां जो भी वस्तु आती है, वह सीधे ही चंद्रमा की सतह से टकराती है। जब सीधे ही कोई वस्तु टकराती है, तो वह इधर-उधर छिटक भी सकती है। वहां पर पहले से धंसी हुई मिट्टी से चट्टान बाहर आ जाती है। चंद्रमा पर बहता हुआ पानी तो है नहीं, इसलिए वहां मौजूद गड्ढे भरते नहीं हैं। चट्टान या क्रेटर, सब वैसे ही रहते हैं। चंद्रयान 3 के लिए समतल जगह का चयन किया गया है। अगर उस वक्त कोई पदार्थ बीच राह में आया, तो भी चंद्रयान का संतुलन नहीं बिगड़ने दिया जाएगा। उस वक्त की फोटोग्राफी होती रहेगी। इससे भी अधिक कोई बाधा आती है तो चंद्रयान 3 की दिशा बदली जाएगी। हमारे वैज्ञानिकों ने लंबे समय तक केवल वही अभ्यास किया है कि गड़बड़ कहां हो सकती है। उसका निदान क्या होगा, इन सभी बातों को पहले ही सोचा गया है। यही वजह है कि पत्थरों के बीच चंद्रयान की दिशा बदलने का विकल्प पास रखा गया है। ये सभी कमांड, पूर्णत: स्वचालित रहती हैं। ऑर्बिटर वहीं से कंट्रोल करेगा। लैंडर में सेंसर लगाए गए हैं। ‘चंद्रयान-3’ की कामयाबी भारत को पृथ्वी से बाहर यानी चंद्रमा पर एक स्टेशन तैयार करने का अवसर प्रदान करेगी। यहां से दूसरे ग्रहों पर जाना आसान हो जाएगा।
कई द्वार खोलेगी ‘चंद्रयान-3’ की सफलता
डॉ. सीएम नौटियाल के मुताबिक, ‘चंद्रयान-3’ की सफलता हमारे लिए कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण है। इससे चंद्रमा पर भारत की सुरक्षित लैंडिंग की क्षमता का प्रदर्शन होगा। साल 2019 में चंद्रयान-2 मिशन के अंतर्गत लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग में सफलता नहीं मिल सकी थी। एक असफलता के चार साल बाद ‘चंद्रयान-3’ भेजने का साहस करना, ये बड़ी बात रही है। इसकी सफलता पर हर कोई गर्व करेगा। लॉन्चिंग क्षमता, पे लोड उपलब्धि और सुरक्षा के मोर्चे पर, भारत की ताकत बढ़ जाएगी। भारत की मिसाइल तकनीक में एक बड़ी मदद मिलेगी। उपग्रह भेजने के लिए भारत क्षमता बढ़ेगी। मौसम की सटीक भविष्यवाणी करना आसान होगा। भारी उपग्रह भेजने की क्षमता में अपेक्षित सुधार आएगा। इसके अलावा अंतरिक्ष की मैंपिंग के क्षेत्र में भी बड़े परिवर्तन देखने को मिलेंगे। प्राकृतिक संसाधनों की मैपिंग भी आसान हो जाएगी। चंद्रमा पर हीलियम-3 की अच्छी खासी क्षमता है। अगर इसका इस्तेमाल हुआ तो दुनिया में ऊर्जा का संकट टल जाएगा। डॉ. सीएम नौटियाल बताते हैं, परमाणु रिएक्टरों में हीलियम-3 का इस्तेमाल करने से रेडियोएक्टिव ‘कचरा’ पैदा नहीं होता।
नाभिकीय संलयन पर काम चल रहा है
सूरज से आने वाली किरणें ‘सौर पवन’, चंद्रमा की मिटी में घुसी हुई हैं। इसके चलते वहां हीलियम-3 की मात्रा बढ़ती रहती है। हीलियम-3, नाभकीय संलयन के लिए ईंधन का काम करेगा। यह हीलियम-4 से ज्यादा कुशल होता है। इसके जरिए ज्यादा एनर्जी विकसित होती है। पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय तापनाभिकीय प्रायोगिक संयंत्र ‘आईटीईआर’ का प्रयोग हो रहा है। इसमें नाभिकीय संलयन पर काम चल रहा है। इसके माध्यम से प्रदूषण मुक्त ऊर्जा पैदा हो सकेगी। भले ही उसमें एक दो या दो दशक का समय लगे। दुनिया के तमाम देशों की इस ओर निगाहें हैं। ‘चंद्रयान-3’ की सफलता का भू राजनीतिक महत्व है। इसकी कामयाबी के बाद हमें दूसरे ग्रहों पर जाने के लिए एक स्टेशन मिल जाएगा। अभी तक पृथ्वी से ही यह सब होता है। चंद्रयान 3 की कामयाबी हमें पृथ्वी के बाहर एक स्टेशन बनाने का अवसर देगी। चंद्रमा पर एक प्रयोगशाला बना सकेंगे।
लैब वर्किंग के लिए बेहतर माहौल रहेगा
डॉ. सीएम नौटियाल कहते हैं, चंद्रमा पर गुरुत्वाकर्षण बल कम होता है। पृथ्वी के मुकाबले वहां पर वजन 1/6 कम रहता है। ऐसे में वहां पर नए प्रयोग संभव हैं। लैब वर्किंग के लिए वहां पर बेहतर माहौल होता है। वजह, चंद्रमा पर प्रदूषण नहीं होता। इसके चलते हम सेमी कंडक्टर पर तेजी से काम कर सकते हैं। अभी तक हम पृथ्वी से देखते थे कि कोई वस्तु तो टकराएगी। अब उसे चंद्रमा से मॉनिटर कर सकते हैं। वहां से कोई भी वस्तु जैसे उल्का पिंड आदि बहुत स्पष्ट नजर आते हैं। चंद्रमा से हर समय ऐसी गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती हैं। पृथ्वी पर चूंकि दूषित वातावरण रहता है तो ऐसे में कोई भी पदार्थ धुंधला नजर आता है। चंद्रमा पर वातारण साफ रहता है तो वहां से उल्का पिंड आसानी से नजर आ जाएंगे। उसका साइज और दिशा के बारे में अहम जानकारी हासिल की जा सकेगी। चंद्रयान 3 की सफलता से भारत को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा भी अर्जित होगी। अधिक से अधिक देश, भारत से अपने उपग्रह लांच कराने के लिए संपर्क करेंगे। फरवरी 2017 में भारत ने PSLV-C37 लॉन्च किया था। उसके साथ 104 सैटेलाइट्स को प्रक्षेपित किया गया था। उन उपग्रहों में से भारत के तीन उपग्रह थे। बाकी के सैटेलाइट्स, नीदरलैंड, इजराइल, कजाकिस्तान, स्विट्जरलैंड और अमेरिका के थे।