वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने से संबंधित याचिकाओं पर जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। शीर्ष अदालत ने बुधवार को कहा कि संवैधानिक पीठों द्वारा कुछ सूचीबद्ध याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करने के बाद तीन न्यायाधीशों की पीठ वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंग ने सुनवाई के लिए मामले का उल्लेख किया जिसके बाद मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, हमें वैवाहिक दुष्कर्म से संबंधित मामलों को हल करना होगा। वरिष्ठ वकील ने कहा, मेरा मामला बाल यौन शोषण मामले से संबंधित है। इसपर सीजेआई ने कहा कि इन मामलों की सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा की जानी है और पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा कुछ सूचीबद्ध मामलों की सुनवाई समाप्त करने के बाद इन्हें सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा।
वर्तमान में सीजेआई की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ मोटर वाहन अधिनियम के तहत विभिन्न प्रकार के वाहनों के लिए ड्राइविंग लाइसेंस देने के नियमों से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। साथ ही पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से संबंधित याचिकाएं भी सुनवाई के लिए निर्धारित हैं।
शीर्ष अदालत ने 22 मार्च को वैवाहिक दुष्कर्म से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के लिए नौ मई की तारीख तय की थी। इससे पहले, शीर्ष अदालत ने 16 जनवरी को वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने और आईपीसी प्रावधान से संबंधित याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था, जो पत्नी के वयस्क होने पर जबरन यौन संबंध के लिए अभियोजन के खिलाफ पति को सुरक्षा प्रदान करता है।
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि इस मुद्दे के कानूनी के साथ-साथ सामाजिक निहितार्थ भी हैं और सरकार याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करना चाहेगी। इस मुद्दे पर 11 मई, 2022 के दिल्ली उच्च न्यायालय के खंडित फैसले के संबंध में एक याचिका दायर की गई है। यह अपील दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ताओं में से एक महिला द्वारा दायर की गई है। हालांकि हाईकोर्ट के दो न्यायाधीशों- न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की अनुमति का प्रमाण पत्र देने पर सहमति व्यक्त की थी क्योंकि इस मामले में कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल थे, जिसके लिए शीर्ष अदालत से निर्णय की आवश्यकता थी।
जबकि खंडपीठ का नेतृत्व करने वाले न्यायमूर्ति शकधर ने असंवैधानिक होने के कारण वैवाहिक दुष्कर्म अपवाद को खत्म करने का समर्थन किया था और कहा कि यह दुखद होगा अगर आईपीसी के लागू होने के 162 साल बाद भी एक विवाहित महिला की न्याय की गुहार नहीं सुनी गई। न्यायमूर्ति शंकर ने कहा कि दुष्कर्म कानून के तहत अपवाद असंवैधानिक नहीं है और एक समझदार अंतर पर आधारित है।
एक अन्य याचिका एक व्यक्ति ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर की है, जिसने उसकी पत्नी के साथ कथित तौर पर दुष्कर्म करने के लिए उसके खिलाफ मुकदमा चलाने का रास्ता साफ कर दिया है। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पिछले साल 23 मार्च को कहा था कि पति को अपनी पत्नी के साथ दुष्कर्म और अप्राकृतिक यौन संबंध के आरोप से छूट देना संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) के खिलाफ है।
अन्य याचिकाएं आईपीसी प्रावधान के खिलाफ दायर की गई जनहित याचिकाएं हैं और उन्होंने आईपीसी की धारा 375 (दुष्कर्म) के तहत वैवाहिक दुष्कर्म अपवाद की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी है कि यह उन विवाहित महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करता है जिनका उनके पतियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता है। आईपीसी की धारा 375 में दिए गए अपवाद के तहत किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन कृत्य दुष्कर्म नहीं है, यदि पत्नी नाबालिग न हो।