राजनीति में कोई प्रयोग नाजायज नहीं होता। महाराष्ट्र की राजनीति नई आशंकाओं के बीच इसे साबित कर रही है। महाराष्ट्र के मंत्रालय में इसकी चर्चा तेज है कि कहीं शरद पवार और पवार परिवार की मंशा दोनों घोड़ों (इंडिया और एनडीए) पर सवारी करके महाराष्ट्र के राजनीतिक चूल्हे पर दोनों तरफ रोटी सेंकने की तो नहीं है? शिवसेना (उद्धव ठाकरे) के नेता फिलहाल खामोश हैं। महाराष्ट्र के कांग्रेस के नेता और एक पूर्व मुख्यमंत्री का भी कहना है कि सही समय आने पर बोलना ठीक होता है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी अशोका होटल में बड़े विश्वास से कहते दिखे कि अब स्थितियां बदल गई हैं।
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि अजित पवार हमारे साथ हैं। शिंदे की शिवसेना, भाजपा और अजित पवार की एनसीपी मिलकर 2024 के चुनाव में महाराष्ट्र की 48 में से 45 लोकसभा सीटें जीतेगी। एनसीपी शरद पवार गुट के नेता अनिल देशमुख का दावा भी इससे कमजोर नहीं है। उस गुट में भी कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) और एनसीपी मुख्य राजनीतिक दल रहेंगे।
शरद पवार बेंगलुरु में विपक्ष की बैठक में हिस्सा लेने गए तो प्रफुल्ल पटेल के साथ उपमुख्यमंत्री अजित पवार दिल्ली के अशोका होटल में एनडीए की बैठक में शामिल हुए। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी थे। दोनों नेताओं ने अशोका होटल में 10-10 मिनट अपनी बात भी रखी। इससे पहले अजित पवार और उनके साथ गए नेताओं ने पिछले तीन दिन में लगातार तीन बार शरद पवार से भेंट की। माफी और आशीर्वाद मांगा। किसी ने शरद पवार को अपना भगवान बताया तो किसी ने उनके पैर पकड़ लिए और एनसीपी को एकजुट बनाए रखने का मार्गदर्शन मांगा।
एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने भी उत्तर में कहा कि उन्हें जो कहना था, सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं। वह आगे भी धर्मनिरपेक्षता की ही राजनीति करते रहेंगे। शिवसेना (उद्धव) और कांग्रेस के साथ मिलकर महाराष्ट्र में चुनाव लड़ेंगे। विपक्ष के साथ रहेंगे।
इससे दो चीजें साफ हो रही हैं। पहली तो यह कि शरद पवार और अजित पवार फिलहाल अलग रास्ते पर हैं। लौटने और चाचा की सदारत में एनसीपी का हिस्सा बनने की न तो अजित पवार की मंशा है और न उनके साथ के प्रमुख विधायकों, मंत्रियों की। दूसरी तरफ एनसीपी प्रमुख शरद पवार पार्टी के बागियों के खिलाफ अभी तक किसी सख्त कार्रवाई अथवा उन्हें विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित कराने का कदम नहीं उठा रहे हैं। अभी सबकुछ चेतावनी तक सीमित है।
संजय राउत ने जाहिर की मंशा तो देशमुख बोले- सबसे जरूरी जनता का समर्थन
शिवसेना (उद्धव ठाकरे) के नेता संजय राउत ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार से एनसीपी के बागियों के लिए दरवाजे बंद करने की मंशा जता दी है। राउत ने कहा कि जैसे शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे और बागियों के खिलाफ सख्त कदम उठाया, सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित कराने की कार्रवाई शुरू की, उसी तरह एनसीपी को भी कदम उठाना चाहिए। महाराष्ट्र में एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल ने भी अभी तक इस तरह की कार्रवाई शुरू करने का संकेत नहीं दिया है। शरद पवार ने भी नहीं। अनिल देशमुख समेत अन्य ने भी शरद पवार से इस संदर्भ में अभी किसी से चर्चा का प्रयास नहीं किया है। एनसीपी के सभी नेता इसके लिए शरद पवार के मार्गदर्शन का इंतजार कर रहे हैं। इसके सामानांतर एनसीपी के नेता अजित पवार और उनके साथ गए नेताओं की घबराहट का हवाला देकर अपना पक्ष मजबूत कर रहे हैं।
अनिल देशमुख कहते हैं कि शरद पवार महाराष्ट्र का दौरा कर रहे हैं। उन्हें भारी जन समर्थन मिल रहा है। इससे उनको छोड़कर जाने वालों की घबराहट बढ़ रही है और सब पवार साहब के आगे नत मस्तक हो रहे हैं। लेकिन एक सवाल का जवाब एनसीपी का कोई नेता नहीं देता। सवाल यह कि इन बागियों के विरुद्ध सख्त कदम पार्टी कब उठाएगी? जवाब में अनिल देशमुख केवल इतना कहते हैं कि 8-9 महीने बाद चुनाव होना है। अब तो केवल आगामी चुनाव मायने रखता है। मौजूदा सरकार तो बस कुछ महीनों की मेहमान है।
क्या दोनों घोड़ों पर सवारी करेगा पवार परिवार?
सुप्रिया सुले ने पिता शरद पवार पर एनसीपी के बागियों की टिप्पणी से आहत होकर कहा था कि मुझे जो कहना है कहो, लेकिन बाबा को मत बोलना। यह संदेश महाराष्ट्र में जंगल में आग की तरह फैला। लेकिन अपनी चाची प्रतिभा ताई को देखने गए अजित पवार ने जिस तरह से बाद के दो दिन अपने सहयोगियों के साथ शरद पवार के सामने परेड की है, अब इसके तरह-तरह के मायने निकाले जा रहे हैं। दो दिन की परेड के बाद दिल्ली में बैठे भाजपा के एक बड़े नेता को 2019 की तरह अजित पवार समेत अन्य के वापसी की आशंका भी सताने लगी थी। राजनीति के तमाम धुरंधरों को लग रहा था कि कहीं अजित पवार के साथ गए विधायक तेजी से एनसीपी में लौटना न शुरू कर दें?
महाराष्ट्र विधानसभा में मानसून सत्र के पहले दिन एनसीपी के दो दर्जन से अधिक विधायक अनुपस्थित थे। इसने भी तमाम आशंकाओं को बढ़ाया है। वहीं एक आशंका और जोर पकड़ रही है कि कहीं शरद पवार का परिवार (शरद और अजित) दोनों घोड़ों पर सवारी करके दोनों तरफ रोटियां सेंकने की रणनीति पर तो नहीं चल रहे हैं।