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राहुल गांधी मानहानि केस:21 जुलाई को सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट, मोदी सरनेम पर टिप्पणी को लेकर मिली है सजा – Supreme Court Rahul Gandhi Modi Surname Defamation Case Gujarat High Court Conviction News And Updates

मोदी सरनेम मामले में सजा पाए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने उनकी इस याचिका पर सुनवाई के लिए हामी भर दी है। कोर्ट ने कहा है कि वह 21 जुलाई को इस मामले में सुनवाई करेगी।

गौरतलब है कि राहुल गांधी को गुजरात की सूरत कोर्ट ने मोदी सरनेम को लेकर टिप्पणी करने के मामले में मानहानि का दोषी पाया था और उन्हें दो साल की जेल की सजा सुनाई थी। इस मामले में उन्हें गुजरात हाईकोर्ट से भी राहत नहीं मिली थी। इसी फैसले के खिलाफ राहुल ने अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। 

पूरा मामला जान लीजिए

दरअसल, 2019 में मोदी उपनाम को लेकर की गई टिप्पणी के मामले में 23 मार्च को सूरत की सीजेएम कोर्ट ने राहुल को दो साल की सजा सुनाई थी। हालांकि, कोर्ट ने फैसले पर अमल के लिए 30 दिन की मोहलत भी दी थी। 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक के कोलार की एक रैली में राहुल गांधी ने कहा था, ‘कैसे सभी चोरों का उपनाम मोदी है?’ इसी को लेकर भाजपा विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज कराया था। राहुल के खिलाफ आईपीसी की धारा 499 और 500 (मानहानि) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

23 मार्च को निचली अदालत ने राहुल को दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई थी। इसके अगले ही दिन राहुल की लोकसभा सदस्यता चली गई थी। राहुल की अपना सरकारी घर भी खाली करना पड़ा था। निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ दो अप्रैल को राहुल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। जस्टिस प्रच्छक ने मई में राहुल गांधी की याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था। पिछले दिनों हाईकोर्ट ने भी इस मामले में फैसला सुनाया और राहुल की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने राहुल की निंदा भी की। 

न्यायमूर्ति हेमंत प्रच्छक ने कहा कि राहुल के खिलाफ कम से कम 10 आपराधिक मामले लंबित हैं। मौजूदा केस के बाद भी उनके खिलाफ कुछ और केस भी दर्ज हुए। ऐसा ही एक मामला वीर सावरकर के पोते ने दायर किया है। न्यायमूर्ति ने आगे कहा कि दोषसिद्धि से कोई अन्याय नहीं होगा। दोषसिद्धि न्यायसंगत एवं उचित है। पहले दिए गए आदेश में हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसलिए आवेदन खारिज किया जाता है।

अब जानिए राहुल ने सुप्रीम कोर्ट में क्या-क्या दलीलें दी हैं? 

1. ‘मोदी’ एक अपरिभाषित अनाकार समूह: IPC की धारा 499/500 के तहत मानहानि का अपराध केवल एक परिभाषित समूह के मामले में लगता है। ‘मोदी’ एक अपरिभाषित अनाकार समूह है जिसमें लगभग 13 करोड़ लोग देश के विभिन्न हिस्सों में रहते हैं और विभिन्न समुदायों से संबंधित हैं। ऐसे में आईपीसी की धारा 499 के तहत ‘मोदी’ शब्द व्यक्तियों के संघ या संग्रह की किसी भी श्रेणी में नहीं आता है। 

2. टिप्पणी शिकायतकर्ता के खिलाफ नहीं थी: रैली में ललित मोदी और नीरव मोदी का जिक्र करने के बाद ‘सभी चोरों का उपनाम एक जैसा क्यों होता है?’ कहा गया था। ये टिप्पणी विशेष रूप से कुछ निर्दिष्ट व्यक्तियों को संदर्भित कर रही थी और शिकायतकर्ता, पूर्णेश ईश्वरभाई मोदी को उक्त टिप्पणी से बदनाम नहीं किया जा सकता है। मतलब ये टिप्पणी पूर्णेश मोदी को लेकर नहीं की गई थी। इसलिए उनके आरोप गलत हैं। 

 

3. शिकायतकर्ता ने यह नहीं बताया कि वह इस बयान से कैसे प्रभावित हुए: शिकायतकर्ता के पास केवल गुजरात का ‘मोदी’ उपनाम है, जिसने न तो दिखाया है और न ही किसी विशिष्ट या व्यक्तिगत अर्थ में पूर्वाग्रहग्रस्त या क्षतिग्रस्त होने का आरोप लगाया है। तीसरा, शिकायतकर्ता ने स्वीकार किया कि वह मोढ़ वणिका समाज से आता है। यह शब्द मोदी के साथ विनिमेय नहीं है और मोदी उपनाम विभिन्न जातियों में मौजूद है।

 

4. बदनाम करने का कोई इरादा नहीं: टिप्पणी 2019 के लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान दिए गए एक राजनीतिक भाषण का हिस्सा थी। इसके जरिए शिकायतकर्ता को बदनाम करने का कोई इरादा नहीं था। इसलिए अपराध के लिए मानवीय कारण का अभाव है।

 

5. उच्च न्यायालय ने यह मानने में गलती की कि अपराध के लिए कठोरतम सजा की आवश्यकता है: लोकतांत्रिक राजनीतिक गतिविधि के दौरान आर्थिक अपराधियों और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने वाले एक राजनीतिक भाषण को नैतिक अधमता का कार्य माना गया है। इसमें कठोर सजा मिलना गलत है। राजनीतिक अभियान के बीच में खुलकर बोलने की आजादी होनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो लोकतंत्र के लिए यह खतरा होगा। 

6. अपराध में कोई नैतिक अधमता शामिल नहीं: अपराध में कोई नैतिक अधमता शामिल नहीं है। शब्द “नैतिक अधमता” प्रथम दृष्टया ऐसे अपराध पर लागू नहीं हो सकता जहां विधायिका ने केवल दो साल की अधिकतम सजा का प्रावधान करना उचित समझा। यह अपराध जमानती और गैर-संज्ञेय भी है और इसलिए इसे “जघन्य” नहीं माना जा सकता।

7. याचिकाकर्ता और उसके निर्वाचन क्षेत्र को हुई अपूरणीय क्षति: अधिकतम दो साल की सजा मिलने के चलते याचिकाकर्ता को संसद से अयोग्य ठहरा दिया गया है। वायनाड लोकसभा क्षेत्र में 4.3 लाख से अधिक वोटों याचिकाकर्ता ने जीत हासिल की है। ऐसे में इस फैसले से जनता को भी नुकसान हुआ है। दो साल की सजा मिलने से अगले आठ सालों तक याचिकाकर्ता चुनाव भी नहीं लड़ सकेगा। इससे प्रमुख विपक्षी आावाज को रोका जाएगा। 

 8. उच्च न्यायालय ने दोषसिद्धि पर रोक लगाने के लिए बुनियादी मानदंडों की अनदेखी की: सजा के निलंबन के दो मजबूत आधार बन सकते हैं। (1) इसमें कोई गंभीर अपराध शामिल नहीं है जो मौत, आजीवन कारावास या एक अवधि के कारावास दस साल से कम दंडनीय है। (2) शामिल अपराध में नैतिक अधमता शामिल नहीं होनी चाहिए। याचिकाकर्ता के मामले में ये दोनों शर्तें पूरी होती हैं। फिर भी उच्च न्यायालय ने अपराध को नैतिक अधमता से जुड़ा हुआ मानकर दोषसिद्धि को निलंबित नहीं करने का निर्णय लिया।

 

 

9. उच्च न्यायालय का आदेश स्वतंत्र भाषण, लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करता है: यदि लागू फैसले पर रोक नहीं लगाई गई, तो यह “स्वतंत्र भाषण, स्वतंत्र अभिव्यक्ति, स्वतंत्र विचार और स्वतंत्र बयान का गला घोंट देगा”। यह “लोकतांत्रिक संस्थाओं को व्यवस्थित, बार-बार कमजोर करने और इसके परिणामस्वरूप लोकतंत्र का गला घोंटने में योगदान देगा जो भारत के राजनीतिक माहौल और भविष्य के लिए गंभीर रूप से हानिकारक होगा”। यदि राजनीतिक व्यंग्य को आधार उद्देश्य माना जाए, तो कोई भी राजनीतिक भाषण जो सरकार की आलोचनात्मक हो, नैतिक अधमता का कार्य बन जाएगा। “यह लोकतंत्र की नींव को पूरी तरह से नष्ट कर देगा।”

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