Supreme Court:सुप्रीम कोर्ट ने कहा- बिना सुनवाई भूमि के कब्जे का पर्याप्त अधिकार नहीं, पढ़िए पूरी रिपोर्ट – Supreme Court Said There Is Not Enough Right To Occupy The Land Without Hearing
सुप्रीम कोर्ट।
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सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि आदिवासियों और पिछड़े समुदाय के अलावा अन्य लोग भी वनवासी समुदायों के अभिन्न अंग हैं, जिन्हें आमतौर पर इस रूप में मान्यता नहीं दी जाती है। साथ ही, शीर्ष अदालत ने यह भी माना कि सक्षम अथॉरिटी की ओर से सुनवाई के बिना किसी को भी भूमि के कब्जे का पर्याप्त अधिकार नहीं दिया जा सकता या अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
वन भूमि से बेदखल करने का निर्देश
जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने फैसले में कहा, वन समुदायों में केवल मान्यता प्राप्त आदिवासी और अन्य पिछड़े समुदायों के लोग ही शामिल नहीं हैं, बल्कि उक्त भूमि में रहने वाले अन्य समूह भी शामिल हैं। ये अन्य समूह को कुछ सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक कारणों से कानून के तहत वनवासी समुदाय के रूप में मान्यता नहीं मिलती है, जबकि वे भी वन समुदायों का एक अभिन्न अंग हैं और उनके कामकाज के लिए आवश्यक हैं। शीर्ष अदालत ने आगे यह भी कहा, ऐसे भी कई उदाहरण हो सकते हैं कि लोग पैतृक रूप से वनवासी रहे हों, लेकिन दस्तावेज के अभाव में वे इसे साबित नहीं कर पाते हैं।
पीठ ने चार फरवरी, 2013 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ हरि प्रकाश शुक्ला और अन्य की ओर से दायर अपील को स्वीकार कर लिया, जिसमें अपीलकर्ताओं को वन भूमि से बेदखल करने का निर्देश दिया गया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि चूंकि अपीलकर्ता पिछड़े समुदाय से नहीं हैं और न ही वे ऐसा होने का दावा करते हैं, लेकिन अगर 1986 में दिए गए एक फैसले की व्याख्या केवल कुछ मान्यता प्राप्त वन समुदायों को लाभ पहुंचाने के संकीर्ण तरीके से की जाती है तो इससे कई अन्य समुदायों को बहुत नुकसान होगा।