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Capf:दो केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में सिपाही से सहायक कमांडेंट तक क्यों हैं परेशान? लंबा हुआ पदोन्नति का इंतजार – Capf: Crpf And Bsf Personnel Worried For Long Wait For Promotion

केंद्रीय अर्धसैनिक बल, बीएसएफ और सीआरपीएफ में खासतौर पर सिपाही से लेकर सहायक कमांडेंट तक के रैंक वाले परेशान हैं। वजह, इन्हें समय पर पदोन्नति नहीं मिल रही। केंद्र सरकार के कई विभागों में कैडर समीक्षा लंबित है। नियमानुसार, हर पांच साल में कैडर समीक्षा की प्रक्रिया पूरी हो जानी चाहिए। सीआरपीएफ और बीएसएफ में सिपाही को पहली पदोन्नति, 18 से 20 साल में मिल रही है। सीधी भर्ती के जरिए सेवा में आने वाले सहायक कमांडेंट को मौजूदा समय में डिप्टी कमांडेंट बनने में 13 से 15 साल लग रहे हैं। अगर कोई निरीक्षक है, तो उसे सहायक कमांडेंट के पद पर पहुंचने में लगभग 15 वर्ष लग जाते हैं। दो साल से कैडर अधिकारियों की समीक्षा फाइल एक टेबल से दूसरी टेबल पर घूम रही है। कभी तो मामला अदालत में होने की बात कह दी जाती है, तो कभी विचार विमर्श या जरुरी कमेंट्स मांगने के लिए फाइल विशेषज्ञों की मेज पर पहुंच जाती है। नतीजा, पिछले पांच वर्ष में सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ और असम राइफल्स में 50155 कर्मियों ने जॉब छोड़ दी है।

पहली पदोन्नति में ही लग रहे दो दशक

सीएपीएफ से जुड़े कार्मिकों का कहना है कि बीएसएफ जैसे बड़े सीमा रक्षक बल में पदोन्नति की स्थिति ठीक नहीं है। बल में जो युवा 1989 में सिपाही भर्ती हुए थे, वे अब एएसआई बन रहे हैं। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बल में पदोन्नति को लेकर क्या स्थिति है। सिपाही को पहली पदोन्नति मिलने में ही बीस साल लग जाते हैं। सीआरपीएफ में भी ऐसी ही हालत है। यहां भी सिपाही से हवलदार बनने में लगभग 18 साल लगते हैं। सामान्य ड्यूटी वाले हवलदार से सहायक उप निरीक्षक बनना है, तो इसमें भी कम से कम आठ साल लगेंगे। एएसआई से एसआई बनना है तो उसके लिए छह सात साल इंतजार करना होगा। एसआई को निरीक्षक बनने के लिए भी इतना ही समय लगेगा। सीआईएसएफ में सिपाही ‘कार्यपालक’ से हवलदार बनने में 16 वर्ष लग रहे हैं। वहां दूसरे रैंक की पदोन्नति को लेकर भी स्थिति ठीक नहीं है। सीआरपीएफ में निरीक्षक ‘जीडी’ को सहायक कमांडेंट बनना है, तो उसके लिए 15 वर्ष का इंतजार करना पड़ता है। सीआरपीएफ का पिछला कैडर रिव्यू 2016 में हुआ था। बल के लिए कैडर रिव्यू कमेटी ‘सीआरसी’ की बैठक 15 दिसंबर 2015 को हुई थी, जबकि उसे 29 जून 2016 को कैबिनेट की मंजूरी मिली थी। इसी तरह बीएसएफ के कैडर रिव्यू को 12 सितंबर 2016 को कैबिनेट की स्वीकृति प्रदान की गई थी।

कहां पर है दो केंद्रीय सुरक्षा बलों की फाइल

कैडर रिव्यू प्रपोजल को बिना किसी देरी के पूरा करने के लिए डीओपीटी भी समय-समय पर दिशा-निर्देश जारी करती रहती है। स्टेटस रिपोर्ट भी मांगी जाती है। देखने में आया है कि कई विभागों की रिपोर्ट अभी तक डीओपीटी को नहीं मिली है। कुछ विभाग ऐसे भी देखे गए हैं, जिनके कैडर रिव्यू की सिफारिश वित्त मंत्रालय को भेजी गई थी, लेकिन वहां से उसे स्वीकृति नहीं मिल सकी है। कुछ विभागों का कैडर रिव्यू प्रपोजल, कैडर रिव्यू कमेटी के पास पेंडिंग है। कैडर समीक्षा की ताजा रिपोर्ट में बीएसएफ और सीआरपीएफ के रिव्यू की क्या स्थिति है, फाइल किसकी टेबल पर है, इसकी जानकारी नहीं है। नियमानुसार, इन दोनों बलों की कैडर रिव्यू प्रक्रिया दो साल पहले ही पूरी हो जानी चाहिए थी। 50155 कर्मियों ने सीएपीएफ जॉब छोड़ दी थी, गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने इस बात को बहुत गंभीरता से लिया है। इन बलों में आत्महत्या के केस भी बढ़ रहे हैं। समिति ने अपनी 242वीं रिपोर्ट में साफतौर पर कहा है कि जवानों और अधिकारियों द्वारा जॉब छोड़ना, इसका सीधा असर फोर्स के मनोबल पर पड़ता है। केंद्रीय गृह मंत्रालय को चाहिए कि जो लोग जॉब छोड़कर जा रहे हैं, उनका साक्षात्कार ले, सर्वे रिपोर्ट तैयार करे। इसके जरिए उन कारणों का पता चल सकेगा कि जिसके चलते जवान और अधिकारी, नौकरी छोड़ रहे हैं। इसके बाद सीएपीएफ में वे सभी जरुरी बदलाव किए जाएं, जिससे जॉब छोड़ने वालों की संख्या कम होने लगे।

पांच साल में 654 जवानों ने की आत्महत्या

केंद्रीय अर्धसैनिक बलों सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ, असम राइफल्स और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड में जवानों व अधिकारियों द्वारा आत्महत्या करने के मामले कम नहीं हो पा रहे हैं। गत पांच वर्ष में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के 654 जवानों ने आत्महत्या कर ली है। आत्महत्या करने वालों में CRPF के 230, बीएसएफ के 174, सीआईएसएफ के 89, एसएसबी के 64, आईटीबीपी के 51, असम राइफल के 43 और एनएसजी के 3 जवान शामिल हैं। संसदीय समिति ने कहा है कि आत्महत्या के केस, बल की वर्किंग कंडीशन पर असर डालते हैं। सेवा नियमों में सुधार की गुंजाइश है। जवानों को प्रोत्साहन दें। रोटेशन पॉलिसी के तहत पोस्टिंग दी जाए। लंबे समय तक कठोर तैनाती न दें। ट्रांसफर पॉलिसी ऐसी बनाई जाए कि जवानों को अपनी पसंद का ड्यूटी स्थल मिल जाए। अगर ऐसे उपाय किए जाते हैं तो नौकरी छोड़कर जाने वालों की संख्या कम हो सकती है।

‘समूह ए’ अधिकारियों की सेवाएं 1986 से संगठित

पांच केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल/सीएपीएफ, जिसमें बीएसएफ, सीआरपीएफ, एसएसबी, सीआईएसएफ और आईटीबीपी शामिल हैं। इन बलों में ‘समूह ए’ अधिकारियों की सेवाएं 1986 से संगठित हैं, मगर अधिकारियों को उसका लाभ नहीं मिल सका। 2006 के दौरान जब छठे केंद्रीय वेतन आयोग ने आईएएस, आईपीएस व आईआरएस सहित अन्य सभी संगठित समूह ए सेवाओं ‘ओजीएएस’ के लिए गैर कार्यात्मक वित्तीय उन्नयन ‘एनएफएफयू’ योजना शुरू की तो कैडर अधिकारियों ने भी इसका लाभ देने की मांग की।

हालांकि तब ‘सीएपीएफ’ को संगठित समूह ‘ए’ सेवा के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया गया। इसके बाद कैडर अफसरों ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद 3 सितंबर 2015 के दिन अदालत ने अपने फैसले में सीएपीएफ को 1986 से ‘संगठित समूह ए सेवा’ घोषित कर दिया। दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सर्वोच्च न्यायालय ने 5 फरवरी 2019 को दिए अपने फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 3 जुलाई 2019 को अपनी एक घोषणा के जरिए ‘सीएपीएफ संगठित सेवा ए’ को मंजूरी प्रदान कर दी। अब कैडर अफसरों में भी यह उम्मीद जगी कि उन्हें एनएफएफयू के परिणामी लाभ मिल जाएंगे।  

रेल मंत्रालय ने दिया, मगर गृह मंत्रालय ने नहीं

रेलवे सुरक्षा बल ‘आरपीएफ’ भी सीएपीएफ के साथ न्यायालय में सह-याचिकाकर्ता था। केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद रेल मंत्रालय ने न्यायालय के आदेश को अक्षरश: लागू कर दिया। आरपीएफ को संगठित सेवा का दर्जा मिल गया। उन्हें एनएफएफयू के सभी लाभ मिल गए और साथ ही उनकी सेवा का नाम बदलकर ‘आईआरपीएफएस’ कर दिया। जानकारों का कहना है कि सीएपीएफ में पुराने सेवा नियमों की आड़ में खंडित एनएफएफयू को न्यायालय के आदेश की व्याख्या कर लागू किया गया है। नतीजा, इससे सीएपीएफ कैडर अफसरों की एक बहुत छोटी संख्या को ही उसका लाभ मिल सका। अधिकांश अफसरों की पदोन्नति से जुड़ी समस्याएं जस की तस बनी रही। एक ही न्यायालय के आदेश की विभिन्न मंत्रालयों द्वारा अलग-अलग व्याख्या कर दी गई। अधिकारियों के मुताबिक, जब तक ओजीएएस ‘संगठित सेवा’ पैटर्न के अनुसार, भर्ती नियमों/सेवा नियमों में संशोधन नहीं किया जाता है, तब तक ओजीएएस का लाभ नहीं दिया जा सकता। सीएपीएफ के अधिकारियों की मांग है कि ओजीएएस पैटर्न के अनुसार, संशोधित भर्ती नियम/सेवा नियमों के साथ कैबिनेट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पूर्ण कार्यान्वयन किया जाए। अनेकों बार मांग करने के बाद भी उनके सेवा नियम/भर्ती नियम संशोधित नहीं किए गए।

क्यों दोहरी मार झेल रहे हैं कैडर अधिकारी

कैडर अफसरों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी वे दोहरी मार झेल रहे हैं। सरकार ने सर्वोच्च अदालत के फैसले को मनमर्जी से लागू कर दिया है। एनएफएफयू का फायदा देने के लिए पदोन्नति का नियम लागू कर दिया। जब पदोन्नति का लाभ नहीं मिल रहा था तो ही सरकार, एनएफएफयू लाई थी। अब जिसकी पदोन्नति हो रही है, उसे ही एनएफएफयू दिया जा रहा है। कैडर अधिकारियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना का नोटिस, सर्वोच्च अदालत में फाइल किया गया है। कैडर रिव्यू को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट का जो आदेश आया था, वह भी सुप्रीम कोर्ट में है। सर्वोच्च अदालत ने इन दोनों केसों को एक साथ क्लब कर दिया है। मौजूदा स्थिति में अधिकांश कैडर अफसरों को न तो एनएफएफयू का फायदा मिल सका और न ही समय पर उनका कैडर रिव्यू हो सका है। कैडर रिव्यू नहीं होने के कारण सीएपीएफ के ग्राउंड कमांडर व अन्य रैंक वाले अधिकारी पदोन्नति के मोर्च पर बुरी तरह पिछड़ गए हैं। सीधी भर्ती के माध्यम से विशेषकर सीआरपीएफ और बीएसएफ में आने वाले सहायक कमांडेंट को पहली पदोन्नति लगभग 15 वर्ष में मिल रही है। इससे आगे के करियर का अंदाजा लगाया जा सकता है। डिप्टी कमांडेंट तक पहुंचने में डीसी 22 साल और कमांडेंट के लिए 27 साल लग रहे हैं। डीआईजी, आईजी व एडीजी के बारे में सोच सकते हैं।

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