Penaz Masani Exclusive:एक रुपये ने मुझे समझाई मेरे गाने की अहमियत, राजेश रोशन ने दिया पहला फिल्मी ब्रेक – Penaz Masani Exclusive Interview Ghazal Doordarshan Dev Anand Rajesh Roshan Jaidev Madh Rani

अस्सी का दशक गजल गायकों के लिए स्वर्णिम काल कहा जा सकता है। इसी दौरान गजल गायकी में एक नाम बहुत तेजी से पीनाज मसानी का उभरा। वह ऐसा दौर था जब पंकज उधास, अनूप जलोटा जैसे गायक गोल्ड और प्लेटिनम डिस्क जीत रहे थे। उस दौर में पीनाज के भी दर्जनों एलबम आए और वह भी प्लेटिनम डिस्क की हकदार बनीं। साल 2009 में उन्हें पद्मश्री सम्मान से विभूषित किया। 23 जून 1961 को मुंबई पारसी जनरल हॉस्पिटल में जन्मी पीनाज मसानी ने अपने जन्मदिन पर अमर उजाला से खास बातचीत की।
संगीत मिला विरासत में
पीनाज मसानी के पिता डॉली मसानी शास्त्रीय संगीत गायक थे। पीनाज मसानी कहती हैं, ‘मेरी मां पीलू मसानी को भी संगीत का शौक था। मेरे पिता जी आगरा घराने के उस्ताद फैयाज साहब के शागिर्द थे। डैडी गुजरात के नवसारी में रहते थे, उनको स्कॉलरशिप मिली और वडोदरा कला भवन कॉलेज में वह इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढाई के लिए चले गए। वहां कॉलेज में एक कार्यक्रम हुआ था जहां पर मुख्य अतिथि उस्ताद फैयाज खान साहब आए थे। पापा ने स्टेज पर उन्हीं का गाया ‘बाजू बंद खुल खुल जाए’ सुनाया। फैयाज साहब बहुत खुश हुए और स्टेज पर आए और पापा को अपने पास आकर गाने की तालीम हासिल करने को कहा। पापा लक्ष्मी विलास पैलेस में जाते थे, वहां फैयाज साहब राज गायक थे। पांच दशक के बाद उसी महल के उसी दरबार में मैंने गाया। और पापा मेरे सामने बैठे थे। यह मेरी जिंदगी का सबसे यादगार क्षण रहा।’
पहली बार गाने के लिए मिला एक रुपया
घर में संगीत का माहौल होने के बाद भी पीनाज ने उस समय नहीं सोचा था कि करियर किस क्षेत्र में बनाना है। वह कहती हैं, ‘बच्चों को तो यह नहीं पता होता है कि करियर किस क्षेत्र में बनाना है। लेकिन जब मैं आठ साल की थी, तब हम गाड़ी से पूना जा रहे थे। गाड़ी में मेरे पीसी अंकल थे। उन्होंने मुझे कुछ गुनगुनाने के लिए कहा, तो मैंने उनको कुछ सुनाया और मुझे एक रुपया दिया । तब मुझे लगा कि मैं भी गा सकती हूं। फिर मैंने गाना सीखना शुरू किया। मेरी बड़ी बहन नाजनीन मुझसे 10 साल बड़ी हैं। वह उस समय आगरा घराने से संगीत सीख रही थी। गाना बजाने का माहौल तो घर में रहा ही। फिर मैंने भी सीखना शुरू किया।’
दूरदर्शन पर गाने का मिला मौका
दूरदर्शन पर सबसे पहले गाना गाने का मौका पीनाज मसानी को संगीतकार जयदेव ने दिया। वह कहती हैं, ‘दूरदर्शन में पहली बार 1979 में सूरदास का भजन ‘जब जब जमुना’ और ‘ओ मोरे कान्हा’ गाया था। वह बहुत ही मशहूर हुआ था। स्कूल खत्म करके कॉलेज गई तो एक प्रतियोगिता के जरिए मेरी मुलाकात संगीतकार जयदेव जी से हुई। उस समय लोकल ट्रेन से दादर से चर्चगेट सिडनेम कॉलेज जाती थी। ट्रेन में मुझे सब ‘जब जब जमुना गर्ल’ कहकर पुकारते थे। मेरा ऑटोग्राफ लेने आते थे।’
इस तरह हुई गजल गायकी में शुरुआत
जब पीनाज मसानी ने दूरदर्शन के लिए पहली बार गाया तब तक उन्हें गजल गायकी का आभास नहीं था। पीनाज कहती हैं, ‘जयदेव जी ने मेरी मुलाकात मधुरानी जी से करवाई। मधुरानी जी को ‘मलिका-ए-गजल’ कहा जाता है। यहां से मेरी पहचान गजल से हुई। मुझे बहुत अच्छा लगा और वहां से मेरी पूरी दुनिया खुल गई। पहली बार मुझे टेलीविजन पर दो गजलें ‘दिल नादान तुझे हुआ क्या है’ और ‘रोया करेंगे’ गाने का मौका मिला। इन्हें सुनकर म्यूजिक इण्डिया के संजीव कोहली मेरे घर पर आए और उन्होंने मुझे अल्बम के लिए साइन किया। संजीव कोहली जी मदन मोहन जी के बेटे हैं। तब म्यूजिक इंडिया का नाम पॉलिडोर हुआ करता था। इस तरह से साल 1981 में मेरा पहला गजल अल्बम ‘आपकी बज़्म में पीनाज मसानी’ निकला।’