Exclusive:लंदन ओलंपिक में कैसे पदक जीतने से चूक गए थे रोंजन सोढ़ी? खेल मंत्री की एक जिद पड़ गई थी भारी – Indian Double Trap Shooter Ronjan Sodhi Narrates How He Lost Olympic Medal In 2012 In Amar Ujala Samvad 2023
रोंजन सोढ़ी
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
2024 ओलंपिक का आयोजन अगले साल पेरिस में 26 जुलाई से 11 अगस्त के बीच किया जाएगा। सभी देशों के एथलीट खेलों के इस महाकुंभ में कमाल करने के लिए तैयारी कर रहे हैं। भारत को नीरज चोपड़ा के अलावा कुश्ती और शूटिंग में मेडल की आस सबसे ज्यादा है। अबकी बार शूटिंग में मेडल कौन लाएगा, यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन साल 2012 में ऐसा नहीं था। 2012 में रोंजन सोढ़ी से सभी को पदक की उम्मीद थी। उनका रिकॉर्ड ही कुछ ऐसा था, जो इस बात की गवाही दे रहा था कि उनका मेडल जीतना तय है। हालांकि, ऐसा हुआ नहीं औरडबल ट्रैप इवेंट में शुरुआती राउंड में पहले स्थान पर रहने के बावजूद वह बढ़त को कायम नहीं रख पाए। दूसरे राउंड में वह 11वें स्थान पर रहे और पदक से चूक गए।
अमर उजाला संवाद में रोंजन सोढ़ी ने ओलंपिक को याद करते हुए अपने करियर से जुड़ी कई बड़ी बातें साझा कीं। इस दौरान उन्होंने यह भी बताया कि कैसे वह अहम मौके पर पदक जीतने से चूक गए थे। रोंजन ने बताया कि कैसे एक खेल मंत्री की जिद उन्हें भारी पड़ गई थी। उन्होंने अमर उजाला के मंच से यह भी कहा कि यह किस्सा आज तक उन्होंने किसी से भी साझा नहीं किया और पहली बार ही वे इसका खुलासा कर रहे हैं।
किस तरह पदक से चूके थे रोंजन?
2012 ओलंपिक के मुकाबले को याद करते हुए उन्होंने बताया, “ओलंपिक में तीन राउंड होते हैं और शुरुआती राउंड में मैं सबसे आगे था। ऐसे में खेल मंत्री आए। हम जहां बैठते थे, वहां खिलाड़ियों और कोच के अलावा किसी को भी आने की अनुमति नहीं होती है। मैच के बीच कोई भी आपसे नहीं मिल सकता है। मेरे कोच आए और उन्होंने कहा कि खेल मंत्री आपसे मिलना चाहते हैं। मैंने मना कर दिया फिर कोच दूसरी बार आए और बताया कि वह किसी और का मैच देखने जा रहे हैं। मैंने कहा कि जाने दो, लेकिन कोच ने कहा कि एक बार मिल लो। कोच के कहने पर मैं चला गया, यह मेरी गलती थी। मुझे नहीं जाना चाहिए था। जब मैं बाहर गया तो वहां मीडिया थी। उनमें से किसी ने जोर से कहा कि रोंजन के घर में ओबी वैन भेजिए, मेडल पक्का है। शूटिंग ऐसा खेल है, जिसमें दिमाग पर बहुत कुछ निर्भर करता है। ध्यान भटका तो गेम भी हार जाओगे। बस वही एक एक खामी रह गई। मेरा ध्यान उसी पल से हट गया था, प्रेशर में आ गया था। मैं सबसे आगे था और जीतने के लिए तैयार था, लेकिन मीडिया का दबाव झेलने के लिए और घर में ओबी वैन देखने के लिए तैयार नहीं था। मैं यह दबाव नहीं झेल पाया और पदक जीतने से चूक गया। इसका अफसोस मुझे हमेशा रहेगा।”
‘ओलंपिक क्रिकेट की तरह नहीं है’
2012 ओलंपिक को याद करते हुए रोंजन ने अपने खेल की तुलना क्रिकेट से की। उन्होंने कहा, “ओलंपिक का खेल क्रिकेट की तरह नहीं है। यह काफी मुश्किल है। क्रिकेट में आप एक सीरीज हार जाते हैं तो कुछ दिन बाद ही दूसरी सीरीज होती है। आपके पास जीतने के कई मौके होते हैं। यहां चार साल में एक ओलंपिक होता है और आपके पास तीन मेडल होते हैं- सोना, रजत और कांस्य। अगर आपके पास ओलंपिक में मेडल नहीं है तो आपको कोई नहीं पूछता है। क्रिकेट में रिटायर होने के बाद भी आपके साथ कमेंटेटर या कोच बनने का मौका होता है।”
‘अगर आपके पास ओलंपिक पदक नहीं तो कुछ नहीं’
अपने पदक नहीं जीत पाने का दर्द बयां करते हुए उन्होंने कहा, “भारत में ऐसा ही है, आपके पास ओलंपिक पदक नहीं है तो आपने कुछ भी नहीं किया। विश्व कप, एशियन गेम्स, कॉमनवेल्थ गेम्स सब जीत लिया। विश्व रैंकिंग में पहले स्थान पर भी रहे, लेकिन ओलंपिक मेडल नहीं है।”
2012 लंदन ओलंपिक के डबल ट्रैप इवेंट में क्या हुआ था?
मेंस डबल ट्रैप इवेंट में दो क्वालिफायर राउंड थे और एक फाइनल। हर एक शूटर को 50 शॉट के तीन सेट ट्रैप शूटिंग करने थे। एक साथ दो टारगेट को लॉन्च किया जाना था। क्वालिफाइंग राउंड के शीर्ष छह शूटर फाइनल में पहुंचते। फाइनल में 50 राउंड और फायर करने को मिलता। कुल 200 शॉट्स में से टोटल स्कोर से विजेता मिलता। हालांकि, पहले राउंड में शीर्ष पर रहने के बाद दूसरे राउंड में रोंजन पिछड़ गए। दूसरे क्वालिफाइंग राउंड के बाद रोंजन का स्कोर 134 रहा था और वह 11वें स्थान पर रहे। रोंजन शीर्ष छह में जगह नहीं बना पाए थे। ग्रेट ब्रिटेन के पीटर विल्सन (स्कोर 188) ने स्वर्ण, स्वीडन के हकान डहाल्बी (स्कोर 186) ने रजत और रूस के वासिली मोसिन (स्कोर 185) ने कांस्य पदक अपने नाम किया था।
कौन हैं रोंजन सोढ़ी?
2010 राष्ट्रमंडल खेलों में दो रजत और उसी साल एशियाई खेलों में एक स्वर्ण पदक जीतने वाले रोंजन सोढ़ी भारत में जन्में सबसे बेहतरीन शूटर में से एक हैं। 2011 में वह विश्व कप खिताब का सफलतापूर्वक बचाव करने वाले पहले भारतीय बने थे। डबल ट्रैप में अपनी किस्मत आजमाने वाले रोंजन सोढ़ी लगातार बेहतर प्रदर्शन करने के लिए जाने गए। यहां तक कि उन्हें रोंजन सोढ़ी नहीं, बल्कि ‘मिस्टर कंसिस्टेंट रोंजन सोढ़ी’ बुलाया गया। सोढ़ी नवीनतम इंटरनेशनल शूटिंग स्पोर्ट फेडरेशन (ISSF) की विश्व रैंकिंग में शीर्ष स्थान हासिल करने वाले एकमात्र भारतीय निशानेबाज बने। वह ओलंपियन भी बने।
रोंजन के छोटे भाई बिरेनदीप सोढ़ी भी ट्रैप शूटर हैं। उनके पिता मालविंदर सिंह सोढ़ी ने रंजन को घर में प्रतिस्पर्धा से बचने के लिए ट्रैप से डबल ट्रैप में जाने के लिए कहा। एक बड़े भाई के रूप में रोंजन ने त्याग किया। जब वह 10वीं कक्षा में थे, तब उनके पिता उन्हें पहली बार करणी सिंह के पास ले गए। रोंजन के पिता पंजाब के फिरोजपुर में एक किसान थे।
पिता को भी निशानेबाजी पसंद थी, लेकिन बुनियादी सुविधा की कमी के कारण इस खेल को पेशेवर रूप में नहीं अपना सके। गांव में उचित स्कूली शिक्षा की कमी ने उनके माता-पिता को रोंजन सोढ़ी को पढ़ने के लिए दिल्ली भेजने के लिए मजबूर किया था। रोंजन ने दिल्ली में ही शूटिंग की यात्रा शुरू की थी। घर से उन्हें इसके लिए हमेशा समर्थन मिला।
रोंजन सोढ़ी की उपलब्धियां
- 2010 में रोंजन ने इटली में आयोजित विश्व कप में स्वर्ण पदक हासिल किया। उन्होंने 195 के स्कोर के साथ एक नया विश्व रिकॉर्ड बनाया।
- 2011 में चीन में आयोजित विश्व कप में उन्होंने स्वर्ण और उसी साल स्लोवेनिया में विश्व कप में कांस्य पदक जीता था।
- 2010 एशियाई खेलों में रोंजन ने एक स्वर्ण और एक कांस्य पदक अपने नाम किया।
- 2010 में ही राष्ट्रमंडल खेलों में दो रजत पदक रोंजन ने देश को दिलाए।