सुनील शेट्टी अपने जमाने के दिग्गज कलाकारों में से एक हैं। उन्होंने एक से बढ़कर एक फिल्मों में काम किया है लेकिन अब वह बड़े पर्दे पर बहुत ही कम नजर आते हैं। 1992 में अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता ने हेरा फेरी, फिर हेरा फेरी, बॉर्डर, धड़कन जैसी कई बेहतरीन फिल्में दी हैं। फैंस में सुनील शेट्टी को लेकर दीवानगी देखते ही बनती थी। इतने बड़े कलाकार होने के बाद भी सुनील शेट्टी में कभी भी एटीट्यूड नहीं रहा है और वह हमेशा जमीन से जुड़े रहे। हाल ही में अभिनेता ने इस बारे में खुलकर बात की है।
सुनील शेट्टी ने लिंक्डइन पर काफी लंबी चौड़ी पोस्ट साझा की है। इस पोस्ट में उन्होंने मिडिल क्लास वैल्यूज और पैसे के साथ अपने रिश्ते के बारे में बात की है। अभिनेता ने कहा, ‘आज मैं आपसे पैसे के साथ अपने रिश्ते के बारे में बात करना चाहता हूं। जब मैं बड़ा हुआ तब मेरे परिवार का जीवन स्तर बहुत ही बुनियादी था। हमारे पास बहुत कुछ नहीं था, लेकिन सब काफी था। हमारे पास निश्चित रूप से वैसी सुख-सुविधाएं भी नहीं थीं, जिन्हें आज हम हल्के में लेते हैं। हालांकि मेरे माता-पिता ने जिस तरह से वे रहते थे और काम करते थे उन्होंने मेरी बहनों और मुझे आगे की जिंदगी के लिए बचत का महत्व बताया।’
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सुनील शेट्टी ने कहा, ‘लगता है कि बचत हमारी डिफॉल्ट सेटिंग थी और अब भी ऐसी ही बनी हुई है। पापा अपने करियर में काफी अच्छा कर रहे थे फिर भी हमारी लाइफस्टाइल में कोई बड़े बदलाव नहीं आए। वो उस समय हमें बेहतर संस्कार देने के लिए लग्जरी लाइफ से अलग हो चुके थे, बस इसके बाद हमारी लाइफ में एक ही बदलाव हुआ और वो ये था कि हमें हमारा घर मिल गया था और हम उसमें शिफ्ट हो गए थे।’
सुनील शेट्टी आगे कहते हैं, अब जब मैं अब पीछे मुड़कर देखता हूं, तो मुझे एहसास होता है कि मेरे माता-पिता पैसे को लेकर अपने नजरिये को लेकर कितने स्पष्ट थे। उन्होंने यह देखा कि उनके पास जो कुछ भी ज्यादा था, वह ज्ञान और अनुभवों के माध्यम से अपने बच्चों की लाइफ को आगे ले जाने, व्यवसाय बढ़ाने और लोगों की मदद करने में लगा। जब मैंने फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री ली और ज्यादा पैसे कमाना शुरू किया, तब तक मैं पैसे की बचत करना सीख चुका था। मुझे लग्जरी लाइफस्टाइल जीने का कभी-कभी लालच होता था, लेकिन मेरे मिडिल क्लास लाइफस्टाइल ने मुझे यह सोचने पर मजबूर किया कि मैं भविष्य का निर्णय सोच समझकर लूं।’
अभिनेता ने लिखा, माना की भी सोच ऐसी थी, इससे मुझे काफी मदद मिली, हम काफी नियमों में रहते थे। हम खर्च और निवेश सोच-समझकर करते थे। हम बीच-बीच में कुछ ऐशो-आराम की चीजों में भी पड़ जाते थे, लेकिन आज तक हमारा सबसे बुद्धिमानी भरा निवेश हमारा घर और बच्चों की पढ़ाई रहा। माना और मैं कम समय में की गई फिजूलखर्ची से ज्यादा भविष्य को महत्व देता हूं। मैं अपनी सीमाएं जानता हूं और हर उस चीज से दूर रहता हूं जो मेरे लिए जरूरी नहीं है।’