20 देशों के वैज्ञानिकों ने भारत सहित दुनिया के 15 देशों में वैश्विक स्तर की कंपनियों के 700 से ज्यादा ऐसे उत्पादों की पहचान की है, जो विज्ञापनों के सहारे नौनिहालों को धीमा जहर परोस रही हैं। इन कंपनियों ने शिशु पोषण के रूप में तरह-तरह का दावा कर बाजार में अपनी पहचान बनाई।
किसी ने इम्यूनिटी बूस्ट तो किसी ने मस्तिष्क विकास में सहायक औषधियों से निर्मित उत्पाद होने का दावा किया है। ऑस्ट्रेलिया में औसतन एक और अमेरिका में कम से कम चार तरह के दावे एक ही उत्पाद को लेकर किए जा रहे हैं। मेडिकल जर्नल बीएमजे में प्रकाशित अध्ययन में बताया कि सालाना करोड़ों रुपये की कमाई करने वाली इन कंपनियों की नजर भारतीय बाजार पर है, जहां पहले से ही इनके उत्पाद मौजूद हैं।
शोधकर्ताओं के अनुसार, मां का दूध शिशु पोषण का अहम स्रोत है, लेकिन जिन माताओं को कम या लंबे समय के लिए स्वास्थ्य जोखिम रहते हैं उनके शिशुओं को फार्मूला आधारित उत्पादों का सेवन कराने की सलाह दी जाती है, लेकिन बाजार में बिक रहे उत्पादों में अधिकांश के दावे वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित नहीं है।
जिनसे बने उत्पाद उनका कोई डाटा नहीं
अप्रैल 2020 से जुलाई 2022 के बीच हुए इस अध्ययन के दौरान विश्लेषण में पता चला कि 757 उत्पादों में कम से कम दो दावे किए गए। इन दावों की सच्चाई पता करने के लिए शोधकर्ताओं ने जब उत्पादों को बनाने में इस्तेमाल सामग्री पर जानकारी जुटाना शुरू किया तो पाया कि 307 सामग्री और दावों के बीच कोई संबंध नहीं है।
- इन सामग्रियों को लेकर क्लीनिकल ट्रायल और अन्य वैज्ञानिक अध्ययनों की तलाश की गई, जिनमें अधिकांश का कोई डाटा नहीं मिला।
इन देशों में बिक रहे उत्पाद
इन उत्पादों की सच्चाई जानने के लिए शोधकर्ताओं ने 15 देश ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, भारत, इटली, जापान, नाइजीरिया, नॉर्वे, पाकिस्तान, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका में बिक रहे 757 उत्पादों का चयन किया।
लालची विज्ञापनों के खिलाफ निगरानी जरूरी
नई दिल्ली स्थित बाल रोग विशेषज्ञ व पोषण वकालत करने वाली संस्था एनएपीआई के सदस्य डॉ. अरुण गुप्ता का कहना है कि अरबों रुपये की कमाई करने वाली कंपनियों के लालची फॉर्मूला हमेशा स्तनपान को कमजोर करते हैं।
डब्ल्यूएचओ, यूनिसेफ ने भी किया सतर्क
विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष (यूनिसेफ) ने हाल ही में एक बहुराष्ट्रीय शोध के जरिए इस बात पर जोर दिया है कि कैसे शिशु फार्मूला का विपणन व्यापक, व्यक्तिगत और शक्तिशाली हो सकता है?
भारत में इसलिए जरूरी निगरानी…
आंकड़े बताते हैं कि देश में 6 से 23 माह की आयु के मात्र 10% बच्चों को ही पर्याप्त आहार मिल पाता है जबकि 0-5 वर्ष की आयु के 35.7% बच्चे अल्प-भार वाले हैं। वहीं, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, भारत में केवल 55% बच्चों को ही जन्म के छह माह तक स्तनपान कराया जाता है। यानी हर साल 40 फीसदी नौनिहालों को पर्याप्त आहार के लिए या तो इन उत्पादों पर रहना पड़ता है या फिर इन्हें आहार नहीं मिल पाता है।