साल 2002 में गुजरात के गोधरा कांड ने पूरे देश को झकझोर के रख दिया। इस घटना की पृष्ठभूमि पर अब तक ‘चांद बुझ गया, ‘परजानिया’, ‘फिराक’ जैसी फिल्में और डाक्यूमेंट्री फिल्में बन चुकी है। इस घटना के 21 साल के बाद अब फिल्म ‘एक्सीडेंट ऑर कॉन्सपिरेसी गोधरा’ का निर्माण हुआ है जिसका टीजर शनिवार को मुंबई में लांच हुआ।
फिल्म ‘एक्सीडेंट ऑर कॉन्सपिरेसी गोधरा’ गोधरा कांड की जांच के लिए गठित नानावती-मेहता आयोग की रिपोर्ट पर आधारित फिल्म है। इस फिल्म में दिखाया गया है कि गोधरा कांड की सच्चाई क्या थी? गोधरा में हुए ट्रेन अग्निकांड के पीछे की कहानी क्या है? एक ही दिन आवेश में आकर कुछ लोगों ने ट्रेन में आग लगा दी, या फिर यह पहले से नियोजित कोई साजिश थी।
इस बारे में बातचीत के दौरान फिल्म के निर्देशक एम के शिवाक्ष ने कहा, ‘इस विषय पर फिल्म बनाने के लिए हम पिछले चार वर्षो से काम कर रहे हैं। इन वर्षों में रिसर्च के दौरान हमें जो जानकारी मिली, उसी के आधार पर हमने यह फिल्म बनाई है। ट्रेन पर हुए हमले की योजना पूर्व निर्धारित थी या नहीं, अगर पूर्व निर्धारित थी तो वह किस स्तर पर की गई? इन तमाम सवालों के जवाब इस फिल्म ‘एक्सीडेंट ऑर कॉन्सपिरेसी गोधरा’ में देखने को मिलेंगे।’
फिल्म के निर्माता बी जे पुरोहित ने बताया, ‘लोग गोधरा कांड को 2002 में हुए हिन्दू और मुस्लिम दंगे के रूप में जानते हैं। इसके पहले का गोधरा क्या था? ऐसा कौन सा सच है, जिसे गुजरात दंगों तले दबाया गया है? ऐसा करने के पीछे किस तरह की मानसिकता रही होगी और गोधरा कांड की सच्चाई को लोगों के सामने दुर्घटना या त्वरित झगड़ा साबित करके क्या छुपाया जाता हैं? इस कांड में मारे गए 59 लोगों की वेदना को जनमानस तक क्यों नहीं पहुंचने दिया गया? ऐसे तमाम सवालों का जवाब फिल्म ‘एक्सीडेंट ऑर कॉन्सपिरेसी गोधरा’ में देखने को मिलेगा।’
फिल्म निर्माता और निर्देशक के मुताबिक फिल्म ‘एक्सीडेंट ऑर कॉन्सपिरेसी गोधरा’ नानावती-मेहता आयोग की रिपोर्ट के तथ्यों पर आधारित है। कमीशन की कार्यवाही में जो तथ्य और जानकारियां सामने आई, उसी को आधार बनाकर इस फिल्म का निर्माण किया गया है। बातचीत के दौरान फिल्म के निर्देशक ने इस बात का दावा किया, ‘गोधरा कांड को लेकर अब तक जो बातें मीडिया के माध्यम से सामने आई हैं। उनका सच कुछ और है। उन्होंने कहा कि दंगा कभी भी सही नहीं होता और न ही इसे हिंदू और मुस्लिम जाति में बांटा जा सकता है। दंगों में दोनों तरफ के लोग मरते हैं और दंगा फैलाने वाले बचकर निकल जाते हैं।’
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