अमर उजाला की खास पेशकश खबरों के खिलाड़ी की नई कड़ी में एक बार फिर हम आपके सामने प्रस्तुत हैं। हफ्ते की बड़ी खबरों और राजनीतिक घटनाक्रम के सधे हुए विश्लेषण को आप अमर उजाला के आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर लाइव हो चुकी है। इसे आप रविवार सुबह 9 बजे भी देख सकते हैं।
इस हफ्ते जो बड़ी खबरें रहीं, उनमें पहली है कि 2000 का नोट चार महीने का मेहमान रह गया है और 30 सितंबर तक उसे बैंकों में जमा या बदलवाया जा सकता है। इसके अलावा हफ्ते की दूसरी बड़ी खबर कर्नाटक में शपथ ग्रहण समारोह है, जिसमें कांग्रेस ने कई विपक्षी नेताओं को बुलाया और इस बहाने शक्ति प्रदर्शन किया। इन अहम मुद्दों पर चर्चा के लिए हमारे साथ प्रेम कुमार, कपिल कुमार, रास बिहारी, रेणु मित्तल, हर्षवर्धन त्रिपाठी, शिवम त्यागी और सुमित अवस्थी जैसे वरिष्ठ विश्लेषक मौजूद रहे। यहां पढ़िए चर्चा के कुछ अहम अंश….
सुमित अवस्थी
‘दो हजार के नोटों को चलन से बाहर करने का फैसला किया गया है। इससे पहले सरकार ने 2016 में भी नोटबंदी की थी, जिसके बाद 2000 के नोट चलन में आए। क्या सरकार ने इन्हें सर्कुलेशन में लाकर तब गलती की थी, जिसे अब सुधारा जा रहा है! नोटबंदी के समय सरकार ने कहा था कि कालेधन पर रोक लगाने के लिए 2000 का नोट लाया गया, लेकिन अब फिर से इसे बंद करने की तैयारी है। क्या सरकार की रणनीति में कोई खामी थी? हमारे देश में अभी भी लोग आम आदमी शादी-ब्याह के कामों में कैश में डील करते हैं। क्या आरबीआई के ताजा फैसले से इन लोगों को परेशानी नहीं होगी? कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद शपथ ग्रहण समारोह हुआ। इस समारोह के जरिए कांग्रेस ने शक्ति प्रदर्शन किया। लेकिन कई नेता ऐसे भी हैं, जिन्हें न्योता नहीं भेजा गया। ऐसे में आने वाले दिनों में विपक्षी एकता का ऊंट किस करवट बैठता है, इस पर सभी की नजरें रहेंगी।’
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कपिल कुमार
‘2000 के नोट को चलन से बाहर करने के कदम से मैं खुश हूं। जब 2000 का नोट आया था, हमें तभी अंदाजा था कि यह एक जाल है और उसमें काले धन वाले खूब फंसेंगे। अब काला धन कमाने वाले फंस गए हैं। यह सोची-समझी नीति के तहत किया गया है। नोटबंदी के समय भी बिजनेस कम्युनिटी प्रभावित हुई थी, अब भी होगी।’ कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियां सरकार के इस फैसले का विरोध कर रही हैं। इस पर कपिल कुमार ने कहा कि ‘इस देश में 1947 के बाद काला धन इतना बना तो कैसे बना? इतने साल कांग्रेस की सरकार ने काले धन को रोकने के लिए क्या किया? कांग्रेस ने देश में काले धन की जड़ें जमाई हैं। देश में भ्रष्टाचार कांग्रेस की ही देन है। भाजपा को स्थानीय नेतृत्व पर फोकस करना होगा। कर्नाटक में यही गलती हुई। पहले भी देश में गठबंधन हुए हैं, लेकिन जनता क्या सोचती है, ये बहुत अहम है। गठबंधन में अखिलेश यादव हैं, लालू यादव हैं, जो परिवारवाद की राजनीति का चेहरा हैं और जनता ये सब देख रही है।’
प्रेम कुमार
‘कर्नाटक से 40 प्रतिशत रिश्वत का नारा देशव्यापी होने जा रहा है। यह नोटबंदी-2 है, जब पहली बार नोटबंदी हुई थी, तब पीएम मोदी ने इसका एलान किया था, लेकिन इस बार वह नदारद हैं क्योंकि अब वह नोटबंदी का नाम भी अपनी जुबान पर नहीं लाना चाहते हैं। जब नोटबंदी पहली बार हुई थी तो प्रधानमंत्री ने कहा था कि 50 दिन के बाद सबकुछ ठीक हो जाएगा लेकिन सात साल बाद भी सबकुछ ठीक नहीं हो पाया है। जिन लोगों ने उस वक्त नोटबंदी का विरोध किया वो कालेधन के समर्थक थे और जो आज विरोध कर रहे हैं वो भी काले धन के समर्थक हैं। सरकार तीन कृषि कानून लाई तो वो तब भी सही थे, लेकिन जब सरकार ने कानून वापस ले लिए तो वो भी सही था! मतलब जो सवाल उठा रहा है, उसे देश विरोधी बताया जा रहा है। विपक्षी एकता एक इमोशन है। जो लोग कर्नाटक के शपथ ग्रहण में शामिल नहीं हो रहे हैं, वो भी भाजपा के खिलाफ ही स्टैंड ले रहे हैं। हालांकि विपक्ष की एकता अभी है ही नहीं, जो कर्नाटक शपथ ग्रहण में शामिल हो रहे हैं, वो समान विचारधारा के लोग हैं।’
हर्षवर्धन त्रिपाठी
‘देश को दीमक की तरह भ्रष्टाचार ने खोखला किया, जिस देश में काला धन अकल्पनीय मात्रा में था, 2016 की नोटबंदी के बाद उस पर लगाम लगी। नोटबंदी के बाद ही देश में डिजिटल ट्रांजैक्शन बढ़ा। यानी 20-50 रुपए भी सरकार के रिकॉर्ड में हैं। सरकार ने यह बहुत बेहतर फैसला लिया है। साथ ही सरकार ने सदन में पहले ही बता दिया था कि 2000 के नोट की छपाई बंद कर दी गई है। जब 2000 के नोट चलन में आए तो उसकी वजह ये थी बाजार में पैसों का सर्कुलेशन बढ़ाना था। पिछले तीन साल से सरकार ने खुद ही 2000 के नोट को परोक्ष रूप से चलन से बाहर कर दिया था।’
रेणु मित्तल
‘भाजपा के जो समर्थक हैं, उन्हें मोदी जी का हर काम बढ़िया लगता है। अब क्या देश की अर्थव्यवस्था 500 के नोट पर चलेगी? फिर से नया नोट लाया जाएगा, उसे छापने पर पैसा बर्बाद होगा। पिछली बार पीएम मोदी नोटबंदी को लेकर आलोचना के घेरे में आ गए थे तो इस बार जब वह विदेश में हैं तो यह फैसला लागू किया गया है। कर्नाटक को लेकर भाजपा में घबराहट का माहौल है। तीन राज्यों में भी भाजपा की हालत ठीक नहीं है। उसके बाद लोकसभा का चुनाव आ रहा है। यही वजह है कि भाजपा दूसरी पार्टियों की फंडिंग रोकना चाहती है, इससे लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं बचेगा। विपक्ष ये जानता है कि अगर हम इकट्ठे नहीं हुए तो सब खत्म हो जाएगा। यह बेहद अहम समय है। शरद पवार के साथ कांग्रेस का गठंबधन था और अब भी समान विचारधारा वाली पार्टियां इकट्ठा हो रही हैं लेकिन इसमें वक्त लगेगा।’
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शिवम त्यागी
‘इस देश की सच्चाई ये है कि देश का 80 प्रतिशत आदमी दिन में सिर्फ 100 रुपए खर्च करता है। इससे समझ सकते हैं कि इस फैसले से किसको परेशानी है। 2000 के नोट ज्यादा सर्कुलेशन में नहीं हैं तो ज्यादा परेशानी नहीं होनी चाहिए। 2016 में जब नोटबंदी हुई थी तो तब लोगों के पास नगदी नहीं थी, जिसके चलते परेशानी हुई। अब ऐसी स्थिति नहीं है। जो ईमानदार हैं, वो आराम से बैंक से पैसे बदल सकते हैं। जिसने छिपाकर रखा है, उसे परेशानी होगी। हर पार्टी के पास फंडिंग के अपने-अपने स्त्रोत हैं। तो इसे लेकर सरकार के फैसले पर सवाल खड़ा करना गलत है। तीसरी मोर्च की स्थिति तो ये है कि अरविंद केजरीवाल ने बीते दिनों तीसरे मोर्चे के लिए डिनर रखा था लेकिन सात मुख्यमंत्रियों ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत ने तीसरे मोर्चे को और जटिल बना दिया है क्योंकि अब कांग्रेस ज्यादा डिमांड करेगी। विपक्षी नेताओं की महत्वकांक्षाएं इतनी ज्यादा हैं कि विपक्षी गठबंधन की संभावनाएं बेहद कम हैं। क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस से 200 सीटें मांग रही हैं तो वो सीटें कहां-कहां दी जाएंगी। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव के बाद भी हालात बदलेंगे।’
रास बिहारी
‘आज हमारा 80 प्रतिशत लेनदेन ऑनलाइन है। जिसकी वजह से सरकार के ताजा फैसले से कोई परेशानी नहीं होगी। कर्नाटक चुनाव में बड़ी संख्या में काला धन पकड़ा गया है। अन्य जगह भी छापेमारी में अधिकतर 2000 के नोट पकड़े गए हैं। इसलिए सरकार का फैसला सही है। विपक्षी एकता की बात है तो 2019 से पहले भी मंच सजे थे। कोलकाता में भी मंच सजा था लेकिन बाद में क्या हुआ? हाल ही में पश्चिम बंगाल के एक उपचुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद ममता बनर्जी ने उस सीट पर अपनी पार्टी का पूरा कैडर बदल दिया था। ऐसे में क्या वह कांग्रेस की लोकसभा जीत को पचा पाएंगी? मुसलमानों के मुद्दे को हर पार्टी ने छला है।’