अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों से समय निकालकर अभिनेत्री मधु शाह इन दिनों फिल्मों से लेकर ओटीटी तक खूब सक्रिय हैं। हाल ही फिल्म ‘शाकुंतलम’ में वह अभिनेता सामंथा की मां का किरदार करती नजर आईं। ये किरदार अप्सरा मेनका का है। अब चर्चा में हैं अपनी आने वाली वेब सीरीज ‘फायरफ्लाइज’ को लेकर। इस सीरीज में मधु ने नानी का किरदार निभाया है। कैसे मिली मधु को मणिरत्नम की फिल्म ‘रोजा’, 30 साल बाद किस तरह याद करती हैं मधु अपनी पहली हिंदी फिल्म के हीरो अजय देवगन को और अपनी कजिन हेमा मालिनी को लेकर क्या हैं उनकी तमन्नाएं, पढ़िए मधु से हमारी इस खास बातचीत में।
तो ‘फूल और कांटे’ की हीरोइन नानी बनने जा रही है?
मैं अपने आपको किसी भी तरह से नानी नहीं महसूस कर सकती हूं। इस वजह से मुझे इस किरदार समझने के लिए एक दो दिन का समय लगा। मैं आम तौर पर बहुत तेज चलती हूं लेकिन नानी एक बूढ़ी महिला हैं तो उनको थोड़ा धीरे से चलना पड़ता है और आराम-आराम से बात करना पड़ता है। ऐसी बहुत सी चीजें मैंने इस किरदार के लिए सीखी हैं और अब इस किरदार से जो सीखा वह मैं जीवन भर अपने साथ रखूंगी। अपने व्यक्तित्व में मुझे यह सहजता लानी थी और मैं इस किरदार की वजह से वह ला पाई।
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30 साल हो गए आपको अभिनय करते करते, पीछे मुड़ कर देखती हैं तो कैसा महसूस होता है?
जब हम जीवन में आगे बढ़ रहे होते हैं तो कई बार हम बहुत खुश होते हैं, कभी दुखी होते है, कभी डर लगता है और कभी लगता है कि पता नहीं मैं कुछ कर भी पाऊंगी या नहीं। यह सारी चीजें महसूस होती हैं लेकिन अब जब मैं यहां खड़ी होकर अपने पिछले 30 साल देखती हूं तो सब अच्छा लगता है। कभी कभी करियर बहुत अच्छा और तेज चला है और कभी उतना तेज नहीं चला। कभी बहुत तारीफें मिली और कभी लोग भूल भी गए। मैं बहुत ही संतुष्टि महसूस करती हूं क्योंकि मैंने जीवन में हर तरह समय देखा हैं।
आपने ‘फूल और कांटे’ से हिंदी फिल्मों में कदम रखा लेकिन उसके पहले क्या आप किसी और फिल्म के लिए ऑडिशन देने गई थीं?
मैंने अपना एक पोर्टफोलियो फोटो शूट कराया था। मेरी बिल्डिंग के जो सेक्रेटरी थे वह मेरे पापा के दोस्त थे। वह कहते रहते थे कि आपको फिल्मों के लिए कोशिश करना चाहिए पर मैंने कभी ध्यान नहीं दिया। मुझे याद है मैं एक ही बार ऑडिशन देने गई थी एक प्रोडयूसर के पास। उसने मुझसे कहा था कि इस तरह से कपड़े पहन कर दिखाओ कि तुम कैसी दिखती हो, तो वहां से जो मैं बाहर निकली उसके बाद कभी ऑडिशन देने नहीं गई। हर भाषा में मेरी जितनी भी पहली फिल्में हैं वे सारी ही फिल्में मैंने बिना ऑडिशन के पाई हैं।
और, आपको मणि रत्नम की फिल्म रोजा कैसे मिली?
रोजा पहली फिल्म है जिसके लिए मैंने ऑडिशन दिया था। दरअसल मैं जब ‘अजगन’ की शूटिंग कर रही थी तब के बालचंदर सर ने कहा कि तुम रविवार को मणि रत्नम के ऑफिस जाओ। मैं मणि सर से मिलने गई तो मेरे बाल एकदम फैशन में कटे हुए थे क्योंकि मैं मुंबई की लड़की थी। उनके हेयर ड्रेसर ने मेरे बालों में एक लंबी सी चोटी लगाई क्योंकि जो किरदार मेरा था वह एक गांव की लड़की का था। उसके बाद एक सीन मुझे पढ़ने के लिए दिया जो मैंने पढ़ा। थोड़ी देर बाद उन्होंने मेरे पापा के साथ मेरी शूटिंग के तारीखें भी निर्धारित कर लीं और मुझे पता भी नहीं चला कि मैं ऑडिशन देने गई थी।