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Remembering Murad:रामपुर से मिला शहर निकाला, अंग्रेजों ने किया सैल्यूट, रजा से जानिए मुराद के अनसुने किस्से – Raza Murad Remembers Father Murad Rampur Expulsion Mehboob Amanullah Khan Zeenat Aman Birthday Death Ashok

मौजूदा दौर के फिल्म दर्शक अभिनेता रजा मुराद को अच्छे से पहचानते हैं। लेकिन, उनके पिता मुराद भी अपने दौर के दिग्गज अभिनेता रहे हैं, ये बात अब कम लोग ही जानते हैं। मुराद का जन्म 24 सितंबर 1911 को उत्तर प्रदेश के रामपुर में हुआ था और 86 वर्ष की आयु में 24 अप्रैल 1997 को वह चल बसे। मुराद ने अपने करियर में 550 से ज्यादा फिल्मों में काम किया जिसमें से करीब 300 फिल्मों में उन्होंने अदालत के अंदर बैठे जज की भूमिका निभाई। मुराद का रामपुर से बंबई (अब मुंबई) आना भी महज एक इत्तेफाक ही रहा। अपने पिता मुराद की 26 वीं बरसी पर अभिनेता रजा मुराद ने अमर उजाला से खास बातचीत की और पिता मुराद की जिंदगी से जुड़े कई दिलचस्प किस्से शेयर किए।



एक्टर बनने का इरादा नहीं था 

मेरे वालिद (पिताजी) साल 1938 में मुंबई आए थे। उस समय रामपुर रियासत के नवाब थे रजा अली खान। वालिद साहब ने उनके  के खिलाफ कोई जुलूस निकाला था तो उन्होंने 24 घंटे के अंदर रामपुर खाली करने का फरमान जारी कर दिया। बंबई आने पर उनकी दोस्ती जीनत अमान के पिता अमानउल्ला खान से हुई। वालिद साहब को कहानियां लिखने का बहुत शौक था। उस जमाने में निर्माता, निर्देशक महबूब खान साहब का बहुत बड़ा नाम था। वह महबूब खान को कहानी सुनाने गए। महबूब देर तक कहानी सुनते रहे और कहानी सुनने के बाद बोले, ‘तुम ये कहानी वहानी रहने दो, ये बताओ, एक्टर बनोगे?’ तमाम ना नुकुर के बाद वालिद साहब अभिनेता बनने को राजी हो गए। ये साल 1942 की बात है, उस समय महबूब साहब फिल्म ‘नजमा’ बना रहे थे। उसमें अशोक कुमार हीरो और वीना हीरोइन थीं। वालिद साहब ने उस फिल्म में अशोक कुमार के  पिता का रोल किया। उस समय वह अशोक कुमार से महज कुछ ही दिन बड़े थे।


मदर इंडिया में नहीं मिला काम 

फिल्म ‘नजमा’ के बाद वालिद साहब ने महबूब खान की फिल्मों के परमानेंट एक्टर बन गए। उन्होंने महबूब खान की ‘अनमोल घड़ी’, ‘अनोखी अदा’, ‘अंदाज’, ‘अमर’, ‘आन’ और ‘सन ऑफ इंडिया’ जैसी सभी फिल्मों में काम किया। सिर्फ ‘मदर इंडिया’ में काम नहीं किया क्योंकि उस फिल्म में उनके लायक कोई रोल नहीं था। महबूब खान ने जब ‘मदर इंडिया’ का ट्रायल रखा तो वालिद साहब को बुलाया और फिल्म दिखाने के बाद बोले कि अब बताओ कि तुम्हारे लायक इसमें क्या रोल था? महबूब खान मेरे वालिद को बादशाह कहते थे क्योंकि उन्होंने उनकी फिल्म ‘आन’ में बादशाह का रोल किया था। इसके अलावा और भी बहुत अच्छी अच्छी फिल्में उन्होंने की, इनमें बिमल रॉय की ‘दो बीघा जमीन’, देवदास, सोहराब मोदी की ‘मिर्जा गालिब और दिलीप कुमार साहब के साथ ‘दीदार’ शामिल हैं। दिलीप साहब की क्लासिक फिल्म ‘मुगल -ए -आजम’ में मेरे वालिद राजा मान सिंह बने।


शाही घराने में हुई शादी 

जीनत अमान के वालिद अमानउल्ला खान को लोग प्यार से अमान साहब कहकर बुलाते थे। उन्होंने ‘पाकीजा’ और ‘मुगल -ए आजम’ के जैसी फिल्में लिखी हैं। अमान साहब का ताल्लुक भोपाल के शाही घराने से रहा। एक बार अमान साहब के साथ मेरे वालिद भोपाल गए। अमान साहब के परिवार, उनके संस्कार से वालिद साहब बहुत प्रभावित हुए। वालिद साहब ने कहा कि आपके ही खानदान में शादी करना चाहता हूं, तो अमान साहब की छोटी बहन लियाकत जहां बेगम के साथ उनकी शादी हुई। अमान साहब के साथ जो दोस्ती थी वह रिश्ते में बदल गई। इस हिसाब से जीनत अमान मेरी सगी ममेरी बहन है। भोपाल के नवाब हमीद उल्ला खान मेरी नानी के मौसेरे भाई थे। वालिद साहब को शेरो शायरी का बहुत शौक था, उन्हें फारसी के उमर खय्याम के पांच हजार शेर याद थे।


पिता से मिले संस्कार 

हमारे पिताजी ने हमको बहुत अच्छे संस्कार दिए, उस जमाने में हमारे पास गाड़ी नहीं थी। हम बसों में सफर करते थे। कहते थे कि अगर कोई महिला आती है और आप सीट पर बैठे हैं तो उन्हें अपनी जगह दे दें। उन्होंने कहा कि अगर किसी बुजुर्ग या महिला से आप का परिचय होता है और वह खुद से हाथ बढ़ाए, तभी हाथ बढ़ाइए, खुद से पहले हाथ मत बढ़ाइए क्योंकि यह बदतमीजी होती है। वक्त की पाबंदी क्या होती है, मैंने वालिद साहब से सीखी। जब सुबह सात बजे की मेरी कोई शूटिंग होती थी, तो वह सुबह मुझे छह बजे चाय के साथ उठाते थे और साढ़े छह बजे कहते थे कि अब तुम्हारा काम पर जाने का समय हो गया है। शूटिंग पर पहुंचकर कभी यह मत पूछना कि मेरा काम कब से है। प्रोड्यूसर ने तुमको एक शिफ्ट के लिए बुक किया हैं और उसके पैसे दे रहे हैं, तो इस बात की शिकायत कभी मत करना कि दिन भर बैठाकर शाम को तुमसे काम ले रहे हैं।


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