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खबरों के खिलाड़ी:अतीक-अशरफ की हत्या का कर्नाटक चुनाव पर कितना पड़ेगा असर, विपक्ष को कैसे जवाब देगी Bjp? जानें – Khabron Ke Khiladi Impact Of Atiq-ashraf Murder In Karnataka Elections 2023 Bjp Congress Fight

अमर उजाला की खास पेशकश ‘खबरों के खिलाड़ी’ की नौंवी कड़ी में एक बार फिर हम आपके सामने प्रस्तुत हैं। इस शो को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बेहद पसंद किया जा रहा है, उसके लिए सभी पाठकों का बहुत आभार। इस साप्ताहिक कार्यक्रम में हम हफ्ते की बड़ी खबरों और राजनीतिक घटनाक्रम का सधा हुआ विश्लेषण करते हैं। इस दिलचस्प चुनावी चर्चा को अमर उजाला के यूट्यूब चैनल पर शनिवार रात नौ बजे और रविवार सुबह नौ बजे देखा जा सकता है।  

इस हफ्ते अतीक अहमद-अशरफ की हत्या, कर्नाटक चुनाव, नरोदा केस के सभी आरोपियों का बरी होना, विपक्षी एकता समेत तमाम मुद्दे काफी हावी रहे। कहा जा रहा है कि यूपी की घटनाओं का असर कर्नाटक चुनाव में भी देखने को मिलेगा। अतीक-अशरफ की हत्या का मुद्दा चुनाव में गर्म होगा। ऐसे ही अहम मुद्दों पर चर्चा के लिए इस बार हमारे साथ पूर्णिमा त्रिपाठी, सुमित अवस्थी, देश रतन, शिवम त्यागी, प्रेम कुमार जैसे वरिष्ठ विश्लेषक मौजूद थे। यहां पढ़िए चर्चा के कुछ अहम अंश….

सुमित अवस्थी 

‘तीन सिरफिरों ने यूपी के प्रयागराज में माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को खुलेआम गोली मार दी। दूसरी तरफ भाजपा सरकार कहती है कि योगी आदित्यनाथ के आने के बाद से सूबे में कानून राज कायम है। ये कैसा कानून राज है, जहां पुलिस की मौजूदगी में दो लोगों की हत्या हो जाती है? क्या इसका असर कर्नाटक चुनाव में भी देखने को मिलेगा? क्या उमेश पाल और फिर अतीक-अशरफ की हत्या ये बताती है कि यूपी में कानून व्यवस्था खत्म हो गई है? भाजपा के लोग बोल रहे हैं कि इतने लंबे समय तक अतीक-अशरफ को कोर्ट से भी सजा नहीं मिल पाई, क्योंकि तब की सरकारें नहीं चाहती थीं। अब तो भाजपा की सरकार है। फिर तो कानून व्यवस्था और न्याय व्यवस्था के जरिए इन अपराधियों को सजा दिलाना चाहिए?’ 

‘कांग्रेस के लोग नरोदा, बिलकिस बानों का मुद्दा उठाकर कहते हैं कि कोर्ट को सरकार चला रही है। इसलिए ऐसे बड़े कांड के आरोपियों को भी बरी कर दिया गया। ऐसे में तो जगदीश टाइटलर का भी मुद्दा उठना चाहिए। वे सिख दंगे के आरोपी रहे। कोर्ट ने टाइटलर को बरी कर दिया, तो इसका क्या मतलब है? आप कैसे कोर्ट के फैसलों पर सवाल खड़े कर सकते हैं? उधर, कांग्रेस ने पहली बार जातिगत जनगणना का समर्थन किया है। खुलकर राहुल गांधी ने कहा कि जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी करने चाहिए। कांग्रेस ओबीसी कार्ड खेल रही है। ऐसा अचानक क्या हो गया कि कांग्रेस को जातिगत जनगणना का समर्थन करना पड़ा?’

देश रतन 

‘जिस तरह से कांग्रेस नेताओं ने माफियाओं का महिमामंडन किया, इससे साफ समझ में आ रहा है कि विपक्ष किस तरफ जा रहा है। इमरान प्रतापगढ़ी जैसों को कांग्रेस ने स्टार प्रचारक बनाया। इससे साफ हो रहा है कि कांग्रेस ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस इसके जरिए मुस्लिम वोटों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है। ये लोग इमरान प्रतापगढ़ी की तुलना योगी आदित्यनाथ से कर रहे हैं। योगी आदित्यनाथ शुरू से ही कर्नाटक के स्टार प्रचारक रहे हैं। योगी नाथ संप्रदाय से आते हैं और इस संप्रदाय का कर्नाटक से गहरा नाता है। योगी आदित्यनाथ की इस वक्त काफी डिमांड है। वह लगातार माफियाओं और गुंडों पर एक्शन ले रहे हैं। बुलडोजर चलवा रहे हैं। बुलडोजर की कार्रवाई को कोर्ट ने भी गलत नहीं बताया है। इससे उनकी लोकप्रियता काफी अधिक बढ़ गई है।’ 

‘कुछ लोग कहते हैं कि डबल इंजन की सरकार आने के बाद नरोदा, बिलकिस बानो या अन्य केस के आरोपियों, जिसमें भाजपा से जुड़े लोगों को आरोपी बनाया गया था, उन्हें बरी कर दिया गया। ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि डबल इंजन की बात विकास के मुद्दों पर की जा सकती है, लेकिन न्याय व्यवस्था को इसमें शामिल करना गलत है। ये स्वतंत्र संस्था है। अगर अतीक-माफिया की मौत से यूपी की जनता खुश होती है तो इसे जंगलराज नहीं कहते। ये माफियाओं के लिए जंगलराज हो सकता है।’ 

‘जातिगत जनगणना की बात करें तो इससे समाज में बंटवारा होगा। हिंदुत्व समाज को जोड़ता है और जातिगत जनगणना इसे तोड़ने का काम करती है। संविधान भी जातिगत भेदभाव खत्म करने के लिए कहता है, लेकिन उसी संविधान का हवाला देकर जातिगत जनगणना हो रही है। जातिगत जनगणना नहीं होनी चाहिए। लेकिन कुछ लोग राजनीतिक फायदे के लिए ऐसा कर रहे हैं।’ 

 

पूर्णिमा त्रिपाठी 

‘ये तो साफ है कि कर्नाटक चुनाव में ध्रुवीकरण हो रहा है। फिर वह कांग्रेस करे या भाजपा। इमरान प्रतापगढ़ी को कर्नाटक चुनाव में स्टार प्रचारक बनाकर भेजना इसे साबित करता है। अतीक और अशरफ की हत्या के मुद्दे का फायदा दोनों तरफ से लिया जाएगा। अब इसे संयोग कहा जाए या कोई साजिश… क्योंकि एक तरफ अतीक-अशरफ की हत्या का शोर कर्नाटक चुनाव में गूंजने लगा है तो दूसरी ओर उमेश पाल हत्याकांड का आरोपी और अतीक के खास गुड्डू मुस्लिम की लोकेशन भी कर्नाटक में मिली है। ये सब चीजें कहीं न कहीं इसका इशारा कर रही हैं कि ये कर्नाटक चुनाव से जुड़ा है।’ 

‘दूसरी बात ये उमेश पाल और फिर अतीक-अशरफ की बीच सड़क पर हत्या होना इस बात का सबूत है कि यूपी में जंगलराज कायम होने लगा है। नरोदा में 11 लोगों को जिंदा जलाकर मारा गया। 81 लोग इसमें आरोपी बनाए गए, लेकिन सारे बारी हो गए। बिलकिस बानो का गैंगरेप मामले में दोषियों को छोड़ दिया गया। उन्हें फूल देकर सम्मानित किया गया। ये कुछ ऐसे फैसले हैं, जो न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रहे हैं। जातिगत जनगणना की बात करें तो हर पार्टी अपने फायदे के लिए जाति का मसला उठाती है। आज ये तब उठाया जा रहा है तो लोगों को इसका फायदा दिख रहा है। जैसे बिहार में भाजपा नेताओं ने जातिगत जनगणना का समर्थन किया था। लेकिन नेशनल लेवल पर ये उसका विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस भी फायदे को ही देख रही है। आज जिस तरह से भाजपा और उनके नेता हाथ धोकर राहुल गांधी के पीछे पड़े हैं, उससे साफ लगता है कि उनका रूतबा बढ़ रहा है।’ 

शिवम त्यागी

‘एक परिवार जिसके ऊपर 160 से ज्यादा मुकदमे रहे, जो राजनीतिक घेरे की बदौलत हमेशा न्याय व्यवस्था से भी खुद को ऊपर मानता रहा। हत्या, रेप जैसे बड़े अपराधों को अंजाम देने के बवजूद आजाद रहा। 11000 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति बना ले गया। तब इन लोगों ने क्यों नहीं यूपी के कानून व्यवस्था की बात की? उस वक्त को अतीक-अशरफ को पार्टी से जोड़कर लोग राजनीतिक फायदा उठाने में जुटे थे। उस वक्त इन माफियाओं का खौफ इस कदर था कि इनकी बेल पर सुनवाई के मामले से 10 जजों ने खुद को अलग कर लिया था। ये दौर था 2008 का। मैं इन दोनों की हत्या को सही नहीं मानता हूं, लेकिन ये भी कहना चाहूंगा कि जब 44 साल तक लोगों को न्याय नहीं मिला तो आज जिस भी कारण से लोग खुश हैं, उसे स्वीकार करना चाहिए। 44 साल सभी ने न्याय व्यवस्था को दिए हैं, अब 44 दिन पुलिस की जांच को भी दे देना चाहिए। सबकुछ सामने आ जाएगा।’

‘अतीक-अशरफ की हत्या का कर्नाटक चुनाव पर पड़ने वाले असर की बात करें तो ये पड़ना भी चाहिए। हर अच्छी चीज का असर चुनाव पर होना चाहिए ताकि लोग उसे देखकर अच्छी सरकार का चयन कर सकें। जातीय जनगणना की बात करें तो आखिर कांग्रेस ने 2011 में जब जातीय जनगणना करवाई थी, तब उसके आंकड़े क्यों नहीं जारी किए गए? आज अचानक से क्यों उन्हें इसकी याद आ गई?’

‘राहुल गांधी के राजनीतिक भविष्य पर नजर डालें तो दिखता है कि वह सिर्फ गढ्ढे खोद सकते हैं। उसे भर नहीं सकते हैं। क्या कोई सावरकर को गाली देकर महाराष्ट्र की सियासत में फायदा ले सकता है क्या? जिस सावरकर की महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी तक ने तारीफ की, उसे राहुल गांधी क्यों बार-बार गाली दे रहे हैं?’ 

प्रेम कुमार 

‘अतीक-अशरफ की हत्या एक गंभीर चलन की तरफ इशारा कर रहा है। कुछ लोग तर्क दे रहे हैं कि अगर अतीक को इतने साल सजा नहीं मिली तो उन्हें मार दिया गया। अभी नरोदा केस में भी यही हुआ। इतने लोग रिहा हुए। न्याय नहीं मिला। तो क्या सबको गोली से उड़ा दिया जाए? आज इस तरह के कई आरोपी बरी हो रहे हैं। तो क्या इसका मतलब है कि कोई क्राइम ही नहीं हुआ क्या? ये चिंता का विषय है कि अगर अदालत सजा नहीं दे रही है तो सरकार किसी क्रिमिनल से मरवा देगी। ये सब प्रायोजित है।’ 

‘जातिगत आधार पर गिनती का मुद्दा कांग्रेस ने उठाया है। ये मुद्दा अभी इसलिए आया है कि क्योंकि कोर्ट ने 50 प्रतिशत आरक्षण के बैरिकेडिंग को तोड़ दिया है। इसलिए अब जनसंख्या के आधार पर आरक्षण की मांग होने लगी। बाकियों को तो संख्या के आधार पर आरक्षण दिया गया था, लेकिन ओबीसी को इसलिए नहीं दिया था गया क्योंकि तब 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं हो सकता था। अब कोर्ट के फैसले के बाद ये संभव हो गया है।’ 

‘राहुल गांधी की लोकप्रियता की बात करें तो भारत जोड़ो यात्रा के बाद माहौल बदल चुका है। राहुल गांधी की लोकप्रियता बढ़ी है। राहुल गांधी को खूब समर्थन मिला है। वहीं, जो लोग ये बोल रहे हैं कि महात्मा गांधी जी ने सावरकर की तारीफ की तो उन्हें ये समझना चाहिए कि ये कोई सर्टिफिकेट नहीं हो सकता है।’ 

डॉ. प्रवीण कुमार 

‘नरोदा के आरोपियों का कोर्ट से बरी होना, अतीक-अशरफ की हत्या का मुद्दा तो कर्नाटक चुनाव में होगा, लेकिन इससे कहीं ज्यादा ज्यादा लिंगायत, वोक्कालिगा… दलित का मुद्दा हावी रहेगा। कर्नाटक समेत देश के कई राज्यों में योगी आदित्यनाथ की डिमांड बढ़ी है। बुलडोजर और एनकाउंटर वाली सरकार की छवि ने उन्हें काफी प्रसिद्ध कर दिया है। यही कारण है कि वह कर्नाटक चुनाव में भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं। इससे ये भी साफ है कि हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है। भाजपा जानती है कि अगर जातिगत मुद्दे हावी हुए तो भाजपा को नुकसान होगा। ऐसे में हिंदुत्व के मुद्दे को आगे रखने की कोशिश में भाजपा है। भाजपा चाहती है कि ओबीसी, दलित, लिंगायत, वोक्कालिगी छोड़कर सारे हिंदू एक तरफ आ जाएं… ताकि कांग्रेस और जेडीएस को नुकसान हो सके।’ 

‘राहुल गांधी की लोकप्रियता की बात करें तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि राहुल गांधी के सामने बहुत सी चुनौतियां रहीं हैं। अभी राहुल गांधी के खिलाफ भी जो लोग थे, वो अब उनके समर्थन में हैं। ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल… अब सब राहुल का समर्थन कर रहे हैं। पीएम मोदी के सामने अभी कोई बड़ा चेहरा नहीं बन पा रहा है। राहुल गांधी की कामयाबी यही है कि वह पीएम मोदी के सामने चर्चा का विषय रहते हैं।’

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