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100 Years Of Mukesh:देवमानुस मुकेश की जन्मशती पर बेटे का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू, पापा के साथ गाईं ये आखिरी लाइन – 100 Years Of Mukesh Nitin Mukesh Exclusive Interview With Pankaj Shukla Emotional Stories Talk About Last Show


हिंदी सिनेमा की मशहूर गायकत्रयी मुकेश, रफी और किशोर कुमार में मुकेश ने सबसे कम गीत गाए हैं। लेकिन, दिलचस्प ये भी है कि इसके बावजूद उनके लोकप्रिय गीतों की संख्या सबसे अधिक है। मुकेश आज होते तो सौ साल के हो जाते। उनके सौंवे जन्मदिन पर उनके बेटे नितिन मुकेश से ये एक्सक्लूसिव बातचीत की ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल ने। इस बातचीत में नितिन ने न सिर्फ अपने पापा से रिश्तों पर लंबी बातचीत की बल्कि उन गानों पर भी खुलकर चर्चा की जो मुकेश के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में शुमार हैं। मुकेश के अंतिम शो के बारे में बताते हुए इस दौरान नितिन मुकेश कई बार भावुक भी हुए।

 

 



नितिन जी, आपके पास आपके पापा की पहली पहली यादें कौन सी हैं?

जब मैं बच्चा तो मुझे तो ख्याल भी नहीं आता था कि मैं इतने बड़े महान पिता का बेटा हूं। और, वह इसलिए कि उन्हें खुद भी महसूस ही नहीं होता था कि मैं इतनी बड़ी हस्ती हूं। वह बहुत ही सादा मिजाज के आदमी थे। जैसे हनुमानजी को उनकी शक्ति के बारे में याद दिलाना पड़ा था, वैसे ही हमें पापा को याद दिलाना पड़ता था कि आप इतने बड़े स्टार या इतने बड़े गायक हो। वह अक्सर बस की लाइन में खड़े हो जाते थे। टैक्सी में ही कहीं भी चले जाते थे। हम कुछ इस बारे में कहते तो वह बस एक उंगली दिखाते कि बेटा आज तो कह दिया अब फिर कभी न कहना। मैं जैसा हूं, वैसा खुश हूं। मुझमें औरों से अलग कोई बात नहीं है।

 


गायकी के गुर तो आपने भी उन्हीं से सीखे होंगे?

वह कहते थे कि मुझमें इतना ज्ञान नहीं है कि मैं तुमको कुछ सिखाऊं, बेटा। उनके जो गुरु थे पंडित जगन्नाथ प्रसाद जी, उनसे उन्होंने मुझे तालीम दिलवाई। लेकिन, मेरी आत्मा में मैंने उनको ही गुरु स्वीकारा अपने जीवन में। न ही सिर्फ गाने में, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में उनसे मुझे सब कुछ सीखने को मिला। मैं उनकी शैली में गाता था और गाता हूं और आगे भी गाऊंगा उनकी शैली में। मेरे लिए उनसे आगे कुछ दुनिया दिखती ही नहीं। मेरे लिए सर्वप्रथम वह ही हैं। उनके साथ के और भी गायक हैं जो अच्छे रहे हैं और अच्छा गाते रहे हैं, लेकिन मेरे पसंदीदा गायक तो मेरे पापा ही रहे हैं।, बैठकर उन्होंने कभी मुझे कुछ नहीं सिखाया। लेकिन मैंने उनको देखकर औऱ सुनकर बहुत कुछ सीखा। उन्होंने हमें जो भी सिखाया करके सिखाया। इस लिहाज से मेरे गुरु तो मेरे पापा ही रहे।

 


फिल्म अनाड़ी का गाना किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार, जब पहली बार आपने सुना तो पहली प्रतिक्रिया क्या थी आपकी? क्योंकि परदे पर ये गाना भले राजकपूर पर फिल्माया गया लेकिन ज्यादा नजदीक ये गाना मुकेश की शख्सियत के है..

मैं नौ साल का था जब ‘अनाड़ी’ फिल्म आई थी। ये गीत अगर लिखा गया किसी के लिए तो वह थे पापा, ‘किसी की मुस्कुराहटों में हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार.. ’वो दुनिया जहान का दर्द अपने दिल में समेट लेते थे। और, ‘किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार… ’, तो वो दुनिया जहान को अपना प्यार बांटते थे। इसीलिए लगता है कि ये गीत उनके लिए ही लिखा गया था। इसी फिल्म के गाने ‘सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी’ के लिए उन्हें पहला फिल्मफेयर अवार्ड मिला था।


फिल्मफेयर अवार्ड की बात छिड़ी है तो मुझे साल 1972 भी याद आता है जब मुकेश जी के ही तीन गाने सर्वश्रेष्ठ गायक की श्रेणी में एक दूसरे से मुकाबला कर रहे थे..

फिल्म ‘मेरा नाम जोकर का’ का गाना ‘जाने कहां गए वो दिन’, फिल्म ‘आनंद’ का गाना ‘कहीं दूर जब दिन ढल जाए’ और फिल्म ‘बेईमान’ का गाना ‘जै बोलो बेईमान की’ मुकाबले में थे। पुरस्कार फिल्म ‘बेईमान’ के गाने को मिला। तीनों गाने उनके लिए तो तीन बच्चे ही थे लेकिन ‘मेरा नाम जोकर’ का गीत ‘जाने कहां गए वो दिन’ इन तीनों गीतों में से… (नितिन मुकेश एकदम से रुक जाते हैं), इस गाने के बारे में मैं आखिर में बात करता हूं। याद दिलाइएगा मुझे। अभी आप अपने बाकी सवाल कर लीजिए।

 


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